इसके पीछे और भी कई कारण
आजादी के बाद, भारत ने अपने कॉन्स्टिट्यूशन फ्रेमवर्क या संवैधानिक ढांचे के लिए ब्रिटीश संसदीय प्रणाली (Parliamentary System) को अपनाया, जो हमें ब्रिटेन से विरासत में मिली है। इस प्रणाली में सरकार को टीकाऊ और लंबे समय तक की योजनाएं बनाने पर जोर दिया जाता है। इसके अलावा, भारतीय संविधान के तहत, संसद के निचला सदन यानी लोकसभा का कार्यकाल भी 5 साल का होता है। लोकसभा के लीडर को प्रधानमंत्री के रूप में चुने जाते हैं, जो सरकार का नेतृत्व करते हैं और सरकार के सभी जरुरी फैसलों में मुख्य भूमिका निभाते हैं। इसलिए, प्रधानमंत्री का 5 साल का कार्यकाल न केवल सरकार को एक मजबूत आधार देता है, बल्कि उसे देश की उन्नति के लिए बड़ी योजनाओं को पूरा करने का समय भी देता है।
दूसरे देशों में
दूसरी ओर, अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों में राष्ट्रपति का कार्यकाल 4 साल का होता है। इन देशों ने अपने संविधानों और राजनीतिक सिस्टम को इस तरह से डिजाइन किया है कि उनमें तेजी से बदलाव और नए विचारों को प्राथमिकता दी जा सके। 4 साल के इस कार्यकाल में राष्ट्रपति को अपनी नीतियों और योजनाओं को तेजी से लागू करना होता है, ताकि वे अपने कार्यकाल के दौरानअच्छे नतीजे दिखा सकें। यह व्यवस्था नेताओं को ज्यादा जिम्मेदार बनाती है, क्योंकि उन्हें कम समय में ही अपने वादों को पूरा करने का दबाव होता है।
इतिहास और परंपरा
भारत में प्रधानमंत्री का कार्यकाल 5 साल का तय करने के पीछे एक जरुरी कारण हमारा इतिहास और संस्कृति है। भारतीय समाज में लंबे समय तक सोचने और टिकाऊपन को बहुत महत्व दिया जाता है। इस तरह, सरकारें अपने विकास कार्यों को अच्छे से पूरा कर सकती हैं और देश को आगे बढ़ाने में मदद कर सकती हैं।