script.. तो चीन को मात देकर हिंदुस्तान बन जाएगा ‘सिरमौर’, लेकिन हमारे लिए ये ताजपोशी अच्छी नहीं- पढ़ें खबर | World Population Day report suggests India to beat China till 2024 | Patrika News

.. तो चीन को मात देकर हिंदुस्तान बन जाएगा ‘सिरमौर’, लेकिन हमारे लिए ये ताजपोशी अच्छी नहीं- पढ़ें खबर

Published: Jul 09, 2017 12:57:00 pm

Submitted by:

Nakul Devarshi

संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2024 में भारत जनसंख्या के लिहाज से चीन से आगे निकल जाएगा। चीन की मौजूदा आबादी एक अरब 40 करोड़ है जबकि भारत की एक अरब 30 करोड़ है।

देश में परिवार नियोजन के सघन प्रयासों से प्रजनन दर में गिरावट के बावजूद महज सात सालों में भारत चीन को पछाड़ कर दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश हो जाएगा। विश्व जनसंख्या दिवस 11 जुलाई के उपलक्ष्य में संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2024 में भारत जनसंख्या के लिहाज से चीन से आगे निकल जाएगा। 
चीन की मौजूदा आबादी एक अरब 40 करोड़ है जबकि भारत की एक अरब 30 करोड़ है। जनसंख्या विस्फोट के खतरों को भांपते हुए ही इस बार विश्व जनसंख्या दिवस का विषय ‘परिवार नियोजन: लोगों का सशक्तिकरण और देशों का विकास’ रखा गया है। 
जनसंख्या दिवस के साथ ही परिवार नियोजन पर एक बडा वैश्विक सम्मेलन भी आयोजित किया जा रहा है जिसके तहत 2020 तक दुनियाभर में और 12 करोड़ महिलाओं को स्वैच्छिक परिवार नियोजन के लिए प्रोत्साहित करने तथा उसके लिए आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है क्योंकि ऐसा माना गया है कि दुनिया में 22 करोड़ से ज्यादा ऐसी महिलाएं है जो गर्भधारण करने की इच्छा नहीं रखने के बावजूद गर्भ निरोधक उपायों का इस्तेमाल नहीं करती हैं। 
भारत ने भी इस दिशा में बड़ी पहल की है और जनसंख्या की बेतहाशा वृद्धि से जनहित से जुड़ी कई योजनाओं के पटरी से उतरने के खतरे को देखते हुए नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के तहत घरेलू स्तर पर परिवार नियोजन के लिए ‘मिशन परिवार विकास’ के नाम से व्यापक अभियान चलाया है। नई नीति के तहत देश में सबसे ज्यादा करीब तीन प्रतिशत की प्रजनन दर वाले सात राज्यों के 146 जिलों को चिन्ह्नित करके वहां लोगों को परिवार नियोजन के लिए प्रोत्साहित करने के वास्ते कई कार्यक्रम शुरु किए हैं। इन राज्यों में प्रजनन दर 2025 तक घटाकर 2.1 प्रतिशत पर लाने का लक्ष्य रखा गया है। 
अभियान के तहत उन कारणों का बारीकी से पता भी लगाया जा रहा है जो जनंसख्या वृद्धि की वजह बन रहे हैं। इनमें परिवार नियोजन सुविधाओं का अभाव, पर्याप्त चिकित्सा केन्द्रों और वहां डाक्टरों और चिकित्साकर्मियों की कमी तथा ढांचागत सुविधाओं का अभाव जैसे कारणों के समाधान के लिए ठोस नीति पर काम हो रहा है। 
इस बीच, परिवार नियोजन जागरूकता अभियान के तहत कई नयी पहल भी की गई है। नवविवाहित जोड़ों को नियोजन पहल किट उपलब्ध कराई जा रही है और परिवारों में सास-बहू के बीच बेहतर संवाद की व्यवस्था के लिए दरबार आयोजित किए जा रहे हैं, जिनमें छोटा परिवार रखने के महत्व को समझाया जा रहा है। ग्राम पंचायतों में हर जगह परिवार नियोजन से संबंधित सुविधाएं देने की तैयारी की गई है। परिवार नियोजन के तरीके अपनाने वालों को प्रोत्साहन राशि देने की व्यवस्था की गई है। इस महत्वाकांक्षी अभियान में विश्व स्वास्थ्य संगठन और कई निजी संस्थायें भी सहयोग कर रही हैं।
संयुक्त राष्ट्र जनंसख्या कोष की रिपोर्ट में हालांकि यह माना गया है कि भारत समेत दुनिया के सभी क्षेत्रों में प्रजनन दर में लगातार गिरावट का रुझान है और यह 2.5 प्रतिशत के औसत स्तर पर उतर चुकी है। इसके बावजूद इस बात पर चिंता भी जताई गई है कि विश्व जनसंख्या में हर साल करीब आठ करोड़ तीस लाख की दर से इजाफा हो रहा है और बढ़ोतरी की यह रफ्तार थमने वाली नहीं है। 
रिपोर्ट के अनुसार 1987 में जब विश्व जनसंख्या दिवस की शुरुआत हुई थी तब दुनिया की आबादी 5 अरब के आसपास थी जो अब सात अरब पर पहुंच चुकी है। वर्ष 2024 तक इसके 8 अरब 60 करोड,2050 तक 9 अरब 80 करोड़ और 2100 तक 11 अरब 20 करोड़ पर पहुंच जाने का अनुमान है। 
भारत, नाइजीरिया, कांगो, पाकिस्तान, इथियोपिया, तंजानिया,अमेरिका, यूगांडा और इंडोनेशिया का इसमें सबसे ज्यादा योगदान रहेगा। वैश्विक जनंसख्या वृद्धि में करीब 50 फीसदी हिस्सा इन्हीं देशों का होगा। इसमें भी आबादी बढऩे की रफ्तार सबसे ज्यादा अफ्रीकी क्षेत्र में देखी जाएगी जहां संसाधनों की कमी के कारण पहले से ही बेरोजगारी और भुखमरी के हालात हैं। 
आबादी के लिहाज से यूरोप से कुछ सकारात्मक संकेत देखने को मिलने की बात कहीं गई और अनुमान व्यक्त किया गया है कि आने वाले कुछ दशकों में इस क्षेत्र में जनसंख्या में खासी गिरावट दर्ज होगी क्योंकि इस क्षेत्र में प्रजनन दर दुनिया में सबसे कम यानी की 1.6 प्रतिशत है जबकि अफ्रीकी देशों में यह सबसे ज्यादा 4.7 प्रतिशत है। 
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