विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस की शरूआत वर्ष 2003 में इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (IASP) ने की थी। IASP के अनुसार, ‘प्रत्येक आत्महत्या विनाशकारी है और इससे आसपास के लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ता है। इसको लेकर जागरूकता बढ़ाने से, आसपास के लोगों से बात करके, दुनियाभर में आत्महत्या की घटनाओं को कम किया जा सकते हैं।’
इसके जरिए आत्महत्या को रोकने के लिए लोगों को खासकर युवाओं को जागरूक करना है। इसके जरिए अधिक से अधिक लोगों को जागरूक करने के साथ-साथ बातचीत कर उसे रोकने के प्रयास के रूप में देखा जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य आत्महत्या करने वाले शख्स के व्यवहार में में आने वाले बदलाव से जुड़े आँकड़े इकट्ठा करना, उसपर शोध करना और फिर लोगों को जागरूक करना है।
आत्महत्या रोकने टॉस्कफोर्स बनी, हेल्पलाइन भी लाएगी सरकार
आत्महत्या रोकथाम दिवस के लिए इस बार Creating hope through action का थीम रखा गया है। इसका अर्थ है अपने एक्शन के जरिए उम्मीद पैदा करना है। आज इसी थीम पर सभी कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे। इस थीम का उद्देश्य ये संदेश देना है कि किसी भी परिस्थिति में जीने की उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए
वहीं, WHO के अनुसार भारत में पिछले डो दशकों में आत्महत्या की दर 7.9 से बढ़कर 10.3 प्रति 100,000 हो गई है। भारत में ज्यादातर सुसाइड (37.8%) 30 वर्ष से कम उम्र के लोगों द्वारा किया जाता है। 71 फीसदी आत्महत्या 44 वर्ष से कम आयु के लोगों द्वारा किया जाता है।
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