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जन्म लेने वाले बच्चे को न हो थैलेसिमिया

locationनीमचPublished: Jan 21, 2018 10:48:48 pm

Submitted by:

harinath dwivedi

-थैलेसिमिया को जड़ से मिटाने की पहल-पहली बार हुई जिला मुख्यालय पर थैलेसिमिया की जांच

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शिविर में ब्लड सेम्पल लेते हुए।

नीमच. थैलेसिमिया मेजर रोग के कारण बच्चा थका हुआ, खून की कमी से ग्रसित, सूखता चेहरा, लगातार बीमार रहना, वजन न बढऩा आदि समस्या से ग्रसित रहता है। क्योंकि थैलेसिमिया के कारण बच्चे के शरीर में हिमोग्लोबिन नहीं बनता है। इस कारण उसे जिंदगी भर रोग अनुसार २ से ४ सप्ताह में खून चढ़ाना पड़ता है। इस प्रकार की बीमारी से जिले में करीब ७२ लोग ग्रस्ति है। जिसे जड़ से समाप्त करने के लिए जिला मुख्यालय पर पहली बार जांच शिविर का आयोजन किया गया, ताकि जन्म लेने वाले बच्चा थैलेसिमिया से पीडि़त न हो।
भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी ब्लड बैंक व नीमच थैलेसिमिया सोसायटी के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को रेडक्रास भवन पर थैलसिमिया माइनर की जांच परीक्षण शिविर का आयोजन किया गया। थैलेसिमिया जांच का शिविर जिले में पहली बार लगाया गया है। ताकि बच्चे में जन्म से ही थैलेसिमिया की बीमारी नहीं हो साथ ही लोगों में भी थैलेसिमिया के प्रति जागरूकता आए। क्योंकि अभी तक अधिकतर लोगों को थैलेसिमिया क्या है इसके बारे में भी विस्तृत जानकारी नहीं है।
जानकारी देते हुए शिविर संयोजक सत्येंद्रसिंह राठौर ने बताया कि थैलेसीमिया रोगियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया है। ताकि कोई थैलेसिमिया रोगी बच्चा जन्म ही न ले। इसके लिए सभी को थैलेसीमिया माइनर जांच करवाना अनिवार्य है। जांच के पश्चात अगर कोई व्यक्ति थैलेसीमिया माइनर पाया जाए, तो वह शादी करते वक्त अपने होने वाले पार्टनर का भी परीक्षण कराएं कि वह भी माइनर न हो दोनों के माईनर होने से थैलेसिमिया मेजर रोगी बच्चा होने की संभावना रहती है। अत: थैलेसीमिया से बचने के लिए जीवन में केवल एक बार परीक्षण करना जरूरी होता है। थैलेसीमिया माइनर का परीक्षण तोलानी सेवा संकल्प फाउंडेशन के सहयोग से किया गया। जिसमें रविवार को करीब १८१ लोगों ने ने जांच के लिए सेम्पल दिया। इन सभी सेम्पलों को बाम्बे भेजा जाएगा। जहां से करीब ४५ दिन बाद जांच रिपोर्ट आएगी।
जिले में ७२ थैलेसिमिया के रोगी
बतादें की जिले में करीब ७२ थैलेसिमिया से पीडि़त रोगी है। इन रोगियों को उनके रोग के अनुसार किसी को दो से चार सप्ताह में तो किसी को १५ से २० दिन में ब्लड चढ़वाना पड़ता है। थैलेसिमिया बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्त रोग है। इस रोग के होने पर शरीर की हिमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है जिसके कारण रक्त क्षीणता के लक्षण प्रकट होते हैं। इसकी पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है। इसमें रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है जिसके कारण उसे बार-बार खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है।

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