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जानिए… आखिर इस शहर से क्यों मज़दूर पलायन कर रहे

locationनीमचPublished: May 01, 2017 11:38:00 am

Submitted by:

Avinash Kewaliya

पिछले चार दशक से पाली की ‘जीवनरेखाÓ पर प्रदूषण का दाग लगा हुआ है। लेकिन, एनजीटी में मामला जाने के बाद पिछले आठ माह से ये जीवनरेखा थम गई है।

अविनाश केवलिया . पाली

पिछले चार दशक से पाली की ‘जीवनरेखाÓ पर प्रदूषण का दाग लगा हुआ है। लेकिन, एनजीटी में मामला जाने के बाद पिछले आठ माह से ये जीवनरेखा थम गई है। इस कलंक का दंश देने वाले जितने प्रभावित नहीं है, उससे कई गुना अधिक प्रभावित श्रमिक तबका है। बेरोजगारी से तंग आकर हजारों की संख्या में श्रमिक पलायन कर चुके हैं। अब जो कुछ स्थानीय लोग इस व्यापार से जुड़े हैं, वे भी बमुकिश्कल अपना खर्च निकाल पाते हैं।
उत्तर प्रदेश और बिहार के साथ ही बाड़मेर व मेवाड़ के कई श्रमिकों की शरथस्थली रहा पाली शहर अब खाली हो रहा है। जो कुछ श्रमिक अब औद्योगिक गलियारों में दिख जाते हैं, वे या तो स्थानीय है या फिर किसी फैक्ट्री में स्थायी कार्यरत है। लेकिन, इनकी संख्या भी पहले के मुकाबले 10 या 20 प्रतिशत ही है। एेसा ही हाल ऑटो व लोडिंग चलाने वाले श्रमिकों का है। यही नहीं, चाय की थडि़यां और किराणे की दुकान लगाने वालों तक पर बेरोजगारी का खतरा मंडरा रहा है। मामला एनजीटी में है इसलिए सड़कों पर भी श्रमिकों का शोर नहीं सुना जा सकता, लेकिन औद्योगिक गलियारों की चीखती खामोशी बहुत कुछ कहती है।
एक नजर आंकड़ों पर

– 600 रंगाई-छपाई की इकाइयां हैं पाली में

– प्रदूषण के दंश के चलते 8 माह से बंद है इकाइयां

– 25 हजार से अधिक प्रत्यक्ष रूप से श्रमिकों को रोजगार मिलने का दावा किया जाता रहा
– अब औरेंज श्रेणी की मात्र 100 इकाइयां ही संचालित हो रही

– इनमें सिर्फ 5-7 हजार श्रमिकों को ही रोजगार मिल रहा है

– 15 हजार से अधिक श्रमिक जो बाहर से आकर रह रहे थे, पलायन कर चुके हैं
(आंकड़े अलग-अलग औद्योगिक संगठनों के पदाधिकारियों से बातचीत के आधार पर )

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सरकारी आंकड़ों की अलग कहानी

– 26119 कुल औद्योगिक श्रमिक पाली जिले में

– 18370 औद्योगिक श्रमिक गांवों में
– 7749 श्रमिक शहरों में रहते हैं

– शहरी उद्योग पाली में कपड़े का है

– लेकिन 25 हजार के श्रमिक के मुकाबले सरकारी आंकड़े सिर्फ साढ़े सात हजार ही है

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श्रमिकों के पलायन का असर यहां भी

श्रमिकों के पलायन का असर सिर्फ उन श्रमिकों के परिवार या निजी जीवन पर ही नहीं पड़ा है, बल्कि शहर की अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है। एेसा माना जा रहा है कि सीधे तौर पर 15 हजार श्रमिकों के पलायन से 10-15 लाख का प्रतिदिन का पैसा जो मार्केट में आता था, वह भी रुक चुका है। इस बात का प्रमाण छोटे दुकानदार व व्यापारियों से बातचीत पर पता चला है।
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इनकी पीड़ा…

1. एक इंतजार कि कभी तो शुरू होगी

शहर की एक फैक्ट्री में काम करने वाले किशोर सिंह बताते हैं कि घरों की स्थिति काफी पीड़ा दायक है। यहां के स्थानीय हैं इसलिए घर-परिवार छोड़ कहां जाएं। इसीलिए रोज इसी इंतजार में बैठे रहते हैं कि कभी तो आदेश आएगा और हमारा काम फिर से चल पड़ेगा।
2. विश्वास कर कोई सामान भी नहीं देता

एेसे ही एक श्रमिक मनोहर बताते हैं कि जब से फैक्ट्रियां बंद है तब से दुकानदार हम पर विश्वास करना छोड़ चुके हैं। पहले उधारी में सामान ले आते थे, अब तो वह भी नहीं मिलता। औद्योगिक क्षेत्रों का सन्नाटा खाने को दौड़ता है। हालात खराब है साहब आप ही कुछ करो।
3. रोज काम मिलता नहीं और परिवार पलता नहीं

हमारे लिए तो विशेष दिवस तब होगा, जब हमें रोज काम मिलना शुरू होगा। श्रमिक हरिराम बताते हैं कि अभी हालात एेसे हैं रोज काम मिलता नहीं और परिवार ठीक से चलता नहीं। जिंदगी पूरी इसी क्षेत्र में गुजार दी। दूसरे काम के बारे में जानकारी नहीं तो अब सिवाय इंतजार के क्या कर सकते हैं।
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