पत्रिका टीम ने छात्रावास में जाकर देखा तो हॉस्टल के कक्ष के दरवाजे टूटे हुए थे, कक्ष की दीवारों पर दरार थी। यहां की चारदीवारी भी जगह-जगह से टूटी है। इमारत पुरानी होने से दीवारों का पलस्तर भी झडऩे लगा है। बारिश के दिनों में तो छात्रों के लिए बड़ी मुसीबत बन जाती है। जब रात को सोते समय अचानक छत से पानी टपकने लगता है। यह हालत शहर के मध्य स्थित प्री-मेट्रिक हॉस्टल की है। हॉस्टल में रहने वाले छात्र संघ उपाध्यक्ष मुकेश चावड़ा ने बताया कि यहां पर रहने वाले अधिकांश ग्रामीण प्रवेश के दूर-दराज के बच्चे है। उनके पास इतना पैसा नहीं है कि शहर में कमरा किराए से लेकर रहकर पढ़ाई कर सके। इसीलिए मजबूरन उन्हें इसी हालत में जैसे-तैसे समझौता कर रहना पड़ता है। यह बात जरूर है कि यहां पर समय पर नाश्ता और चाय के बाद भोजन मिल जाता है। कई बार वार्डन को शिकायत की है कि दिवार का पलस्तर गिरता है और बारिश में पानी टपकता है, वह कहते है कि काम कराएंगे। लेकिन अभी तक तीन साल में कोई काम होते नहीं दिखा है।
सालभर हो गया हॉस्टल की मरम्मत के लिए एस्टीमेट बनाकर भेजा गया है। लेकिन अभी तक बजट के लिए स्वीकृति नहीं मिलने के चलते काम शुरू नहीं हुआ। एस्टीमेट करीब पांच लाख का है। जिसमें बाउंड्री वाल, फर्श, सीसीरोड, छत की रिपेयरिंग का कार्य होना है। हॉस्टल में फिलहाल चालीस बच्चे है।