ऐसा क्या हुआ इनके साथ यहां पढ़ें
मध्यप्रदेश राज्य अधिवक्ता परिषद एवं एनसीआर के अधिवक्ता संघों के अनुरोध पर बार कॉसिल ऑफ इंडिया निर्णय अनुसार मंगलवार को नीमच जिले के सभी अधिवक्ता न्यायालयीन कार्य से विरत रहे। इस दौरान 7 सूत्रीय मांगों को लेकर एक ज्ञापन जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रदीपकुमार व्यास को सौंपा। जिला अभिभाषक संघ उपाध्यक्ष प्रवीण मित्तल ने बताया कि अधिवक्ताओं के मूल अधिकारों के विपरीत अधिवक्ताओं की स्वतंत्रता पर नकेल कसने का प्रयास किया जा रहा है। मित्तल ने बताया कि बार कॉसिंल ऑफ इंडिया के निर्णय के पालन में मध्यप्रदेश राज्य अधिवक्ता संघ ने पूरे प्रदेश के अधिवक्ता संघों को मंगलवार को अपनी मांगों के समर्थन में न्यायालयीन कार्य से विरत रहने के निर्देश दिए थे। इसके तहत ही जिले के सभी न्यायालयों में मंगलवार को किसी प्रकार न्यायालयीन कार्य में अभिभाषकों ने भाग नहीं लिया। मित्तल ने बताया कि हमारे मांग है कि एडवोकेट एक्ट की धारा 34 समाप्त की जाए। जजेस एकाउंटेबिलिटी बिल लाया जाए। अभिभाषकों के विरूद्ध निर्णयों पर संविधान पीठ गठित की जाए। हायर एज्यूकेशन संशोधन बिल नहीं लाया जाए। एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट केंद्रीय अधिनियम के रूप में बनाया जाए। न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति उपरांत आयोगों में नियुक्ति पूर्णत: प्रतिबंधित किया जाए। न्यायाधीशों की नियुक्तियों में गुणवत्ता एवं पारदर्शिता का ध्यान रखा जाए। इस मांगों को लेकर जिला अभिभाषक संघ ने मंगलवार को दोपहर दो बजे जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रदीपकुमार व्यास को ज्ञापन सौंपा। इस अवसर पर जिला अभिभाषक संघ अध्यक्ष सुरेशचंद शर्मा, उपाध्यक्ष प्रवीण मित्तल, सहसचिव अजय सैनी, कोषाध्यक्ष संदीपकुमार लोढा, कार्यकारिणी सदस्य अर्चना जायसवाल सहित बड़ी संख्या में सदस्य उपस्थित थे। मित्तल ने बताया कि मंगलवार को जिला न्यायालय में किसी भी प्रकार का न्यायालयीन कार्य अभिभाषकों ने नहीं किया। इस दौरान अभिभाषक पर मनमाने निर्णय थापे जाने के विरोध में प्रदर्शन किया। वकीलों के कार्य से विरत रहने की वजह से किसी भी प्रकरण की सुनवाई नहीं हो सकी। सभी प्रकरणों की तारीखें आगे बढ़ा दी गई।
मध्यप्रदेश राज्य अधिवक्ता परिषद एवं एनसीआर के अधिवक्ता संघों के अनुरोध पर बार कॉसिल ऑफ इंडिया निर्णय अनुसार मंगलवार को नीमच जिले के सभी अधिवक्ता न्यायालयीन कार्य से विरत रहे। इस दौरान 7 सूत्रीय मांगों को लेकर एक ज्ञापन जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रदीपकुमार व्यास को सौंपा। जिला अभिभाषक संघ उपाध्यक्ष प्रवीण मित्तल ने बताया कि अधिवक्ताओं के मूल अधिकारों के विपरीत अधिवक्ताओं की स्वतंत्रता पर नकेल कसने का प्रयास किया जा रहा है। मित्तल ने बताया कि बार कॉसिंल ऑफ इंडिया के निर्णय के पालन में मध्यप्रदेश राज्य अधिवक्ता संघ ने पूरे प्रदेश के अधिवक्ता संघों को मंगलवार को अपनी मांगों के समर्थन में न्यायालयीन कार्य से विरत रहने के निर्देश दिए थे। इसके तहत ही जिले के सभी न्यायालयों में मंगलवार को किसी प्रकार न्यायालयीन कार्य में अभिभाषकों ने भाग नहीं लिया। मित्तल ने बताया कि हमारे मांग है कि एडवोकेट एक्ट की धारा 34 समाप्त की जाए। जजेस एकाउंटेबिलिटी बिल लाया जाए। अभिभाषकों के विरूद्ध निर्णयों पर संविधान पीठ गठित की जाए। हायर एज्यूकेशन संशोधन बिल नहीं लाया जाए। एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट केंद्रीय अधिनियम के रूप में बनाया जाए। न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति उपरांत आयोगों में नियुक्ति पूर्णत: प्रतिबंधित किया जाए। न्यायाधीशों की नियुक्तियों में गुणवत्ता एवं पारदर्शिता का ध्यान रखा जाए। इस मांगों को लेकर जिला अभिभाषक संघ ने मंगलवार को दोपहर दो बजे जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रदीपकुमार व्यास को ज्ञापन सौंपा। इस अवसर पर जिला अभिभाषक संघ अध्यक्ष सुरेशचंद शर्मा, उपाध्यक्ष प्रवीण मित्तल, सहसचिव अजय सैनी, कोषाध्यक्ष संदीपकुमार लोढा, कार्यकारिणी सदस्य अर्चना जायसवाल सहित बड़ी संख्या में सदस्य उपस्थित थे। मित्तल ने बताया कि मंगलवार को जिला न्यायालय में किसी भी प्रकार का न्यायालयीन कार्य अभिभाषकों ने नहीं किया। इस दौरान अभिभाषक पर मनमाने निर्णय थापे जाने के विरोध में प्रदर्शन किया। वकीलों के कार्य से विरत रहने की वजह से किसी भी प्रकरण की सुनवाई नहीं हो सकी। सभी प्रकरणों की तारीखें आगे बढ़ा दी गई।