कौन ले रिस्क, कर देते हैं अन्यत्र रैफर
जिला चिकित्सालय में बड़ी संख्या में गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों से महिलाएं प्रसव के लिए आती हैं। जिला चिकित्सालय की स्थिति बदहाल होने से यहां मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। विशेषकर उन महिलाओं को जिनका दूसरा और तीसरा प्रसव ऑपरेशन से होना है। जिन महिलाओं का दूसरा और तीसरा प्रसव ऑपरेशन से होना चाहिए उन्हें चिकित्सक कौन रिस्क ले कहकर अन्यत्र रैफर कर रहे हैं। इसक शिकायत कलेक्टर राजनीश श्रीवास्तव तक भी पहुंची थी। उन्होंने भी इसे गंभीरता से लिया था। उन्होंने दूसरा और तीसरा प्रसव ऑपरेशन से करने के सख्त निर्देश दिए थे। इसके बाद भी चिकित्सकों ने ऑपरेशन करना प्रारंभ नहीं किया। इसका खामियाजा गरीब और ग्रामीण मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
जिला चिकित्सालय में बड़ी संख्या में गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों से महिलाएं प्रसव के लिए आती हैं। जिला चिकित्सालय की स्थिति बदहाल होने से यहां मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। विशेषकर उन महिलाओं को जिनका दूसरा और तीसरा प्रसव ऑपरेशन से होना है। जिन महिलाओं का दूसरा और तीसरा प्रसव ऑपरेशन से होना चाहिए उन्हें चिकित्सक कौन रिस्क ले कहकर अन्यत्र रैफर कर रहे हैं। इसक शिकायत कलेक्टर राजनीश श्रीवास्तव तक भी पहुंची थी। उन्होंने भी इसे गंभीरता से लिया था। उन्होंने दूसरा और तीसरा प्रसव ऑपरेशन से करने के सख्त निर्देश दिए थे। इसके बाद भी चिकित्सकों ने ऑपरेशन करना प्रारंभ नहीं किया। इसका खामियाजा गरीब और ग्रामीण मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
35 हजार से अधिक आता है ऑपरेशन पर खर्च
जिला चिकित्सालय में जहां मरीजों को नि:शुल्क सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। यहां तक प्रसव के दौरान शासन की ओर से महिलाओं को आर्थिक सहयोग भी किया जाता है वहीं दूसरी और शासकीय चिकित्सकों की हठधर्मिता के चलते मरीजों को आर्थिक शोषण हो रहा है। जो ऑपरेशन जिला चिकित्सालय में नि:शुल्क (या नाममान खर्च पर) हो सकते हैं उसके उन्हें निजी अस्पतालों में 35 से 40 हजार रुपए तक खर्च करना पड़ते हैं। जिला चिकित्सालय से प्रतिमाह औसत 15 से 20 महिलाओं को दूसरा और तीसरा प्रसव ऑपरेशन से नहीं करने की वजह से अन्यत्र रैफर किया जा रहा है। इसकी जानकारी जिला प्रशासन और जिला चिकित्सालय के वरिष्ठ अधिकारियों तक को है, लेकिन अब तक किसी ने महिलाओं के हित में कोई ठोस निर्णय नहीं लिया है।
जिला चिकित्सालय में जहां मरीजों को नि:शुल्क सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। यहां तक प्रसव के दौरान शासन की ओर से महिलाओं को आर्थिक सहयोग भी किया जाता है वहीं दूसरी और शासकीय चिकित्सकों की हठधर्मिता के चलते मरीजों को आर्थिक शोषण हो रहा है। जो ऑपरेशन जिला चिकित्सालय में नि:शुल्क (या नाममान खर्च पर) हो सकते हैं उसके उन्हें निजी अस्पतालों में 35 से 40 हजार रुपए तक खर्च करना पड़ते हैं। जिला चिकित्सालय से प्रतिमाह औसत 15 से 20 महिलाओं को दूसरा और तीसरा प्रसव ऑपरेशन से नहीं करने की वजह से अन्यत्र रैफर किया जा रहा है। इसकी जानकारी जिला प्रशासन और जिला चिकित्सालय के वरिष्ठ अधिकारियों तक को है, लेकिन अब तक किसी ने महिलाओं के हित में कोई ठोस निर्णय नहीं लिया है।
हां, नहीं हो रहा दूसरा और तीसरा ऑपरेशन से प्रवस
हां, यह बात सही है कि जिला चिकित्सालय में महिला चिकित्सक दूसरा और तीसरा प्रसव में ऑपरेशन नहीं करती हैं। पूर्व में ऐसी घटना हो चुकी है जिसको लेकर महिला चिकित्सक दूसरा और तीसरा प्रसव ऑपरेशन से करने से डरने लगी हैं। अब डाक्टर रिस्क नहीं लेना चाहते हैं। तत्कालीन कलेक्टर ने आदेश अवश्य दिए हैं, लेकिन रिस्क होने की वजह से कोई ऑपरेशन नहीं करना चाहता। अनहोनी होने पर परिजन चिकित्सकों पर हावी हो जाते हैं। इस प्रकार के विवाद से चिकित्सक बचना चाहते हैं।
– डा. एसएस बघेल, सीएमएचओ
हां, यह बात सही है कि जिला चिकित्सालय में महिला चिकित्सक दूसरा और तीसरा प्रसव में ऑपरेशन नहीं करती हैं। पूर्व में ऐसी घटना हो चुकी है जिसको लेकर महिला चिकित्सक दूसरा और तीसरा प्रसव ऑपरेशन से करने से डरने लगी हैं। अब डाक्टर रिस्क नहीं लेना चाहते हैं। तत्कालीन कलेक्टर ने आदेश अवश्य दिए हैं, लेकिन रिस्क होने की वजह से कोई ऑपरेशन नहीं करना चाहता। अनहोनी होने पर परिजन चिकित्सकों पर हावी हो जाते हैं। इस प्रकार के विवाद से चिकित्सक बचना चाहते हैं।
– डा. एसएस बघेल, सीएमएचओ