यह बात कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि वक्ता कामरेड बादल सरोज ने कही। उन्होंने कहा कि मई दिवस के आरंभ से लेकर आज तक हर श्रमिक अपने देखे हुए सपनों को साकार करने के संकल्प के रूप में मनाता आया है। यह मानवता का दिवस है। आरंभ में यह सारी दुनिया एक थी। शोषण के स्वार्थों ने इससे राज्य और देशों में बांट दिया। यह सीमाएं क्षेत्र विशेष के शोषण के बंटवारे से अधिक और कुछ नहीं है। पुरातात्विक और ऐतिहासिक तथा वैज्ञानिक खोजों ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि मानवता का आरंभ अफ्रीका से हुआ। जोहांसबर्ग के पास किए गए पुरातात्विक खनन में विश्व की प्रथम माता का कंकाल प्राप्त हुआ है। इससे यह साबित होता है कि दुनिया के सभी मनुष्य उसी माता की संतती हैं अर्थात मनुष्य और मनुष्य में जो भेद किया जाता है। वह शोषण की मंशा को पूर्ण करने के लिए किया जाता है। इतिहास साक्षी है कि जब मजदूर वर्ग की सत्ता स्थापित होती है तो शोषण की अमरबेल शुष्क हो जाती है। जब मजदूर वर्ग की सत्ता आती है तो मशीनीकरण का उपयोग पूंजीपतियों के लाभ के लिए नहीं बल्कि मजदूरों के लाभ के लिए किया जाता है। जलसे का आगाज निरंजन गुप्त राही के गीत भैया अब तो जागो से हुआ। कार्यक्रम में शायर आलम तौकीर ने अपना कलाम पेश किया। प्रियंका कविश्वर, कॉमरेड किशोर जेवरिया, कामरेड शैलेंद्रसिंह ठाकुर, कामरेड गोपालकृष्ण मोड़, कामरेड कृपालसिंह मंडलोई तथा विजय बैरागी ने अपने विचार व्यक्त किए। संचालन कामरेड कैलाशचंद्र सेन ने किया। आभार अहमद हुसैन मुन्ना ने प्रकट किया।