खुशबूदार फुहारों से महका भक्ति पांडाल
तीखी धूप और तेज गर्मी के बाद भी श्रद्धालुओं का उत्साह कम नहीं था, जिले ही नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश सहित अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु कथा सुनने पहुंचे। हजारों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की दिक्कत नहीं हो, इसलिए पूरे पांडाल में इत्र की खशबू के साथ पानी की फुहारें चल रही थी। जिससे पूरा वातावरण महक रहा था, वहीं किसी को गर्मी का अहसास भी नहीं हो रहा था।
हर प्रसंग का हो रहा भी जीवंत चित्रण
कथा के दौरान विभिन्न प्रसंगों का जीवंत चित्रण कलाकारों द्वारा किया जा रहा था। जिसमें भक्त नरसी की भक्ति, शिव को स्नान कराना आदि का चित्रण किया गया। वहीं दूर खड़े या बैठे श्रद्धालुओं को भी मंच पर बैठी कथा वाचक जया किशोरी के साथ ही कलाकारों द्वारा दी जा रही प्रस्तुति दिखे, इसलिए करीब आधा दर्जन से अधिक एलईडी सिस्टम लगाए हुए थे। संगीतमय कथा में भजनों की स्वरलहरियां दूर दूर तक बिखर रही थी।
नृसिंह मेहता की भक्ति का सुनाया प्रसंग
कथा का वाचन करते हुए जया किशोरी ने कहा कि भगवान की भक्ति करने वाले भक्त के मन में कोई कामना नहीं होती है। भक्ति तो निष्काम होती है। लेकिन वर्तमान में स्वार्थ की भक्ति हो रही है। भक्ति में लोग अपना स्वार्थ खोजते हैं। स्वार्थ में भगवान प्राप्त नहीं होता है। क्योंकि जहां स्वार्थ होता है। वहां भक्ति नहीं होती है। नृसिंह मेहता निष्काम भक्त थे। जिन्होंने कभी भगवान से कोई कामना नहीं की। उन्होंने सुदामा की कृष्ण के प्रति भक्ति का उदाहरण देते हुए कहा कि जब सुदामा भगवान कृष्ण से मिलने पहुंचे और उन्हें जो 3 मुठ्ठी चावल दिए। भगवान उसी से प्रसन्न हो गए। क्योंकि भगवान किसी वस्तु की चाह नहीं रखते। उन्हें तो भक्त की भावना से मतलब होता है। इंसान संसारिक मोह माया में ही फंसा हुआ है। जबकि उसे प्रभु के साथ मोह लगाना चाहिए। ईश्वर के साथ मोह लगाने से इस नश्वर संसार से मुक्ति हासिल हो सकती है । उन्होंने कहा कि जिस प्रकार हम अपने मां-बाप, पुत्र, भाई-बहन व रिश्तेदारों से प्रेम भाव रखते हैं । उसी प्रकार हमें परमात्मा से भी अपनापन रखना चाहिए ।
भक्ति में सच्चाई हो तो भगवान जरूर मिलते हैं
नृर्सिंह मेहता के जीवन का वर्तान्त सुनाते हुए कथा वाचक जया किशोरी ने कहा कि भक्त नृर्सिंह का जन्म गुजराज के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे जन्म से गूंगे बहरे थे और बचपन में ही माता-पिता का एक आपदा में निधन हो गया था। जिसके कारण उनका पालन-पोषण दादी ने किया और दादी ने उनको ठीक करने के लिए खूब जतन किए। लेकिन उनकी विकृति खत्म नहीं हुई। एक दिन दादी उन्हें लेकर शिव मंदिर पहुंची। जहां पर उन्हें एक संत दिखे। जब संत की अराधना खत्म हुई और दादी ने उन्हें नृर्सिंहजी की स्थिति से अवगत कराया तो उन्होंने नृर्सिंहजी को आशीर्वाद देते हुए कहा कि आपका बालक बहुत बड़ा भक्त बनेगा। लेकिन दादी का संत से कहना था कि महाराज आप इसे ठीक कर दिजिए। फिर क्या संत ने जैसे ही नृर्सिंह मेहता के कान में राधे-कृष्ण कहा, नृर्सिंह मेहता बोल उठे। उनकी भाभी ने नृर्सिंहजी को बहुत प्रताडि़त किया। यह प्रताडऩा नृर्सिंहजी के विवाह के बाद भी जारी रही और एक दिन भाभी ने उन्हें घर से निकाल दिया और वे जंगल चले गए। जहां उन्होंने लगातार 7 दिनों तक शिवभक्ति की और 8 वें दिन भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि मांगो तो तुम्हें क्या चाहिए। लेकिन भक्त के मन में तो भगवान बसे हैं। नृर्सिंहजी ने कहा प्रभु मुझे कुछ नहीं चाहिए मुझे तो राधा-कृष्ण के दर्शन करवा दो। उन्होंने कहा कि इसलिए कहा जाता है कि भक्ति में सच्चाई है तो भगवान जरूरी मिलते हैं।