जहां अतिथि का सम्मान होता है व देवता का निवास होता है -स्वामी सत्यानंद महाराज
नीमच । परमात्मा भक्ति ज्ञान को जाने बिना संसारिक ज्ञान अधूरा है भगवान से प्रेम बिना अषांति दूर नहीं हो सकती है भक्ति मती मॉं मीराबाई की भक्ति का संसार में कोई सानि नहीं है फि ल्म अभिनेत्री की सुन्दरता बीस वर्षो तक रहती है लेकिन मीरा की भक्ति वर्शो से अमर है, इसलिये हम प्रभु भक्ति में ध्यान लगायें बेटी है तो कल है।जहॉं अभाव है वह भगवान का भाव धारण करना चाहिये । पृथ्वी का वातावरण प्रदूषित हो रहा है मानव का कद एवं उम्र घट रही है चिंतन का विशय है विवाह की आठ विधियॉं होती है विवाह सम्बंध बराबरी के गुणों में होना चाहिये । व्यर्थ विचारों को लायेगें तो सत्य संकल्प कैसे पूरा होगा इसलिये षुद्ध पवित्र विचार लायेगें तो मानव जीवन में कल्याण होगा भगवान की भक्ति को पहले सुनना पढ़ता है तभी प्रभु से प्रेम उत्पन्न होता है सुख-दुख दोनों साथ रहते है अंहकार को कम करें तो दीनता को भी दुर करना चाहिये । समाज में समानुपात हो जायेगा । पहले अतिथि को भगवान मानते थे लेकिन आज अतिथी के सम्मान में कमी रहती है जो चिंतन का विशय है यह बात स्वामी सत्यानंद महाराज ने कही वे गणेश मंदिर, शीतलामाता मंदिर प्रांगण ग्वालटोली, बरूखेड़ा मार्ग मॉं अन्नपूर्णा श्रमजीवी हलवाई संघ द्वारा गणेश मंदिर की स्थापना वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में गुरूवार शनिवार को बोल रहे थे। उन्होंनें कहां कि भागवत कथा में राम-सीता विवाह का संगीतमय वर्णन प्रस्तुत करते हुए कहां कि कथा में श्रद्धालुओं ने भक्ति भाव के साथ कथा की ज्ञान गंगा में डुबकी लगाई । और राम-सीता विवाह में जमकर नृत्य का आनंद लिया इस दौरान श्रद्धालुओं ने जय-जय श्रीराम, जय-जय श्रीराम के जयकारे से भक्ति पांडाल भक्ति मय हो गया ।