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विदेशियों ने देखा कैसे होती है नीमच में जैविक खेती

locationनीमचPublished: Feb 05, 2019 07:25:06 pm

Submitted by:

Mahendra Upadhyay

-यूनाईटेड किंगडम से आए विदेशियों ने किया निरीक्षण -बासनिया के ग्रामीण कर रहे 10 सालों से जैविक खेती

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विदेशियों ने देखा कैसे होती है नीमच में जैविक खेती

नीमच. जैविक खाद् से तैयार होने वाले खड़े मसाले की खेती और जैविक खाद् को तैयार करने का तरीका देखने के लिए जिले के छोटे से गांव बासनिया में यूनाईटेड किंगडम से विदेशी पहुंचे। उन्होंने करीब दो घंटे रूककर खेती के साथ ही जैविक खाद् तैयार करने के तरीके को जाना, बताया जाता है कि वे इंडिया से उन खड़े मसालों को खरीदते हैं। जिन्हें शुद्धता के साथ तैयार किया जाता है। ऐसे में जिस बॉम्बे की कंपनी से वे मसाला खरीदते हैं, उन्हीं के मार्फत नीमच जिले के गांव बासनिया में पहुंचकर उन्होंने जैविक खेती का निरीक्षण किया।
बतादें की आज के परिपेक्ष्य में खेती की लागत बढ़ रही है। वहीं रसायनों के बढ़ते उपयोग से भोजन भी अपनी गुणवत्ता पर खरा नहीं उतर रहा है। ऐसे में जहां इंडिया में जैविक खेती की ओर किसानों का रूझान बढ़ रहा है। वहीं जैविक खेती से तैयार उपजों व मसालों के प्रति विदेशियों का भी रूझान है। ऐसे में नीमच जिले के मनासा विकासखंड के ग्राम बासनिया के किसान भागीरथ बद्रीलाल नागदा ने स्वयं जैविक खेती के साथ ही जैविक खाद् बनाने में अपनी पहचान बनाई है। उन्होंने जिले में आत्मा योजना के तहत आयोजित संगोष्ठियों से जानकारी प्राप्त कर अपने क्षेत्र के कृषकों को भी जैविक खेती की और अग्रसर किया।
जानकारी देते हुए भागीरथ नागदा ने बताया कि एक बार मनासा में आत्मा योजनान्तर्गत आयोजित संगोष्ठी में मुझे वर्मी कम्पोस्ट बनाने के बारे में जानकारी मिली और इसके साथ ही उद्यानिकी विभाग की वर्मी कम्पोस्ट के लिए योजना का भी पता चला। जिसमे बड़ी वर्मी कम्पोस्ट इकाई लगाने पर 50 प्रतिशत छूट का प्रावधान था। मैंने विभागीय अधिकारियों से संपर्क कर इस बारे में आवश्यक जानकारी ली और अपने फार्म पर वर्मी कम्पोस्ट इकाई का निर्माण किया। पर्याप्त संख्या में पशु होने से वर्मी कम्पोस्ट के लिए मेरे पास पर्याप्त गोबर की उपलब्धता थी। मेरी वर्मी कम्पोस्ट यूनिट सफलता पूर्वक चल निकली और मैंने वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग अपने खेतों में करना आरम्भ कर दिया। धीरे धीरे रासायनिक खाद का उपयोग कम करते-करते बंद कर दिया। इसी दौरान मनासा विकासखंड के ब्लॉक तकनिकी मैनेजर आरएस लोधा ने मुझे बताया की आप परंपरागत कृषि विकास योजना से जुडि़ए। मैंने अपने आस पास के कृषकों को प्रेरित करते हुए 50 लोगों का समूह बनाया जो जैविक खेती में रूचि रखते थे। सभी 50 कृषकों के यहां वर्मी कम्पोस्ट पिट बनवाए तथा उन्हें केंचुए भी उपलब्ध करवाए। आज मेरी वर्मी कम्पोस्ट यूनिट से प्रतिवर्ष मुझे 200-250 बैग वर्मी कम्पोस्ट मिलता है। जो में अपने खेतों में इस्तेमाल करने के साथ-साथ प्रति बैग 500 रुपए में लहसुन और अफीम बोने वाले कृषकों को बेचता हूं जिससे मुझे 1,00,000 रुपए की आय होती है। इसके साथ ही में अन्य कृषको को केंचुआ भी बेचता हूं। जिससे मुझे 25 से 30 हजार रुपए की आय हो जाती है। इस प्रकार केवल वर्मी कम्पोस्ट और केंचुआ बेचने से खर्चा काटकर मुझे 8 0, 000 से 1,00,000 रुपए की बचत होती है। इसी प्रकार जैविक खेती अपनाने से लगभग 50,000 रुपए रासायनिक उर्वरको का प्रयोग नहीं करने से बच जाते है। इस प्रकार वर्मी कम्पोस्ट और जैविक खेती करने से औसतन प्रतिवर्ष एक से सवा लाख रुपये मेरी आय में बढ़ोतरी हो गयी है।
वर्जन.
बासनिया के किसान भागीरथ नागदा द्वारा जैविक खेती में अच्छा कार्य किया जा रहा है। उनके द्वारा योजनाओं का लाभ लेकर खेती और जैविक खाद् को बढ़ावा दिया जा रहा है। उनके द्वारा कई किसानों को जैविक खेती के गुर भी सीखाए गए हैं।
-आरएस लोधा, ब्लॉक टेक्निकल मैनेजर, आत्मा
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