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video बारिश और ओलावृष्टि के बाद अब गर्मी की मार से अफीम काश्तकार परेशान

locationनीमचPublished: Mar 13, 2019 05:48:29 pm

Submitted by:

Mahendra Upadhyay

– अधिक गर्मी के चलते सफेदी मस्सा रोग हो रहा है डोडो में – स्प्रिकंलर सिस्टम से कर रहे पानी की बौछार

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video बारिश और ओलावृष्टि के बाद अब गर्मी की मार से अफीम काश्तकार परेशान

नीमच। मालवा अंचल में बारिश और ओलावृष्टि की मार से किसान ठीक तौर पर उबरा नहीं है, इन दिनों गर्मी के बढ़ते तापमान ने अफीम काश्तकारों की दिलों की धड़कन बढ़ा दी है। तेज गर्मी के चलते अफीम डोडे में सफेद मस्सी का रोग होने लगा है। जिससे एक सफेद परत छा जाती है और डोडे से दूध काफी कम मात्रा में निकलता है। इन दिनों किसानों को चिंता सता रही है कि वह ५९ किलो अफीम सरकार को कैसे जमा कराएंगे।

शहर से दस किलोमीटर दूर रेवली देवली गांव निवासी काश्तकार डॉ. मोहन नागदा ने बताया कि अफीम की खेती किसान के लिए नवाजात शिशु को पालने से भी कठिन है।अभी कुछ समय पहले बारिश और ओलावृष्टि से काश्तकारों को काफी नुकसान हुआ था। बारिश के पानी में एसिड होने के कारण डोडे के लिए काफी नुकसानदायक होता है। बारिश के पानी से डोडे काले हो जाते है और खराब हो जाते है। अभी गर्मी का तापमान बढऩे से डोडे सफेद पड़ रहे है और उसके पत्ते पीले पड़ कर नष्ट हो रहें हैं। गर्मी में सफेद मस्सा रोग अफीम पौधो को हो रहा है। जिससे डोडे से दूध की मात्रा काफी कम आती है। इन सभी से बचने के लिए तापमान बनाए रखने के लिए स्प्रिंकलर सिस्टम से फसल पर पानी की बौछार की जा रही है।
तोते और रोजड़े भी अफीम काश्तकार के दुश्मन
काश्तकार नागदा ने बताया कि अफीम की फसल के सबसे बड़े दुश्मन तोते और रोजड़े भी है। तोते रोजना नुकसान पहुंचा रहे थे। करीब पांच सौ डोडे को नुकसान पहुंचा रहे थे। इससे बचने के लिए पूरी फसल पर नेट लगाया गया है। वहीं रोजड़ो से बचने के लिए भी अफीम फसल के चारो और फेसिंग करवाई गई है। क्योकि एक बार रोजड़ों को डोडे का स्वाद लग जाता है तो फिर वह फेसिंग तोड़कर भी फसल खाने आते है। जिससे काफी नुकसान होता है। यह नुकसानी किसान के माथे होती है। विभाग तो आजकल मार्फिन मापदंड मांगता है, जो कि किसान को भी समझ में नहीं आता है और मापदंड स्पष्ट नहीं है।
जिले में अफीम किसान ११ हजार ५८३
नीमच जिले को नारकोटिक्स ने तीन डिवीजन में बांट रखा है। जिसमें नीमच फस्र्ट डिवीजन में नीमच और जावद का क्षेत्र आता है। जिसमें १७८ गांव और ३ हजार ५७२ काश्तकार है। नीमच सैंकड डिवीजन में रामपुरा, सिंगोली और जीरन क्षेत्र आते है। जिसमें १९८ गांव में ४ हजार ५११ काश्तकार है। नीमच थर्ड डिवीजन में मनासा क्षेत्र आता है। जिसमें १३० गांव और ३ हजार ५०२ किसान है।
प्रति 10 आरी की खेती में 70 से 8 0 हजार तक का खर्चा आता
किसान 10 आरी में बोवनी, सिंचाई, दवाए मजदूरी, अफ ीम लेकर विभाग तक पहुंचाने की प्रक्रिया में करीब 70 से 8 0 हजार रुपए खर्च करता है। खेती मौसम पर ही निर्भर रहती आई है। 10 आरी के खेत में से औसत साढ़े 6 किलो से 7 किलो तक अफीम निकलती है। मौसम पूरी तरह से अनुकूल रहता है तो उत्पादन अच्छा होता है। मौसम से फ सल प्रभावित होती है तो उत्पादन पर भी असर पड़ता है।
नुकसानी होता है सर्वे
विभाग ने बारिश व ओलावृष्टि में फसल नुकसानी के चलते किसानों के आवेदन लेकर जांच करता है। उसके अनुसार ही उसका मापदंड तय किया जाता है। अभी तक सबसे अधिक मंदसौर जिले से ३५१० आवेदन, नीमच से ५५१ और रतलाम से २११ आवेदन प्राप्त हुए हैं। अफीम की खेती के लिए काफी एतिहायत बरतनी होती है।
– प्रमोद सिंह, डीएनसी नारकोटिक्स विभाग नीमच।

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