काश्तकार नागदा ने बताया कि अफीम की फसल के सबसे बड़े दुश्मन तोते और रोजड़े भी है। तोते रोजना नुकसान पहुंचा रहे थे। करीब पांच सौ डोडे को नुकसान पहुंचा रहे थे। इससे बचने के लिए पूरी फसल पर नेट लगाया गया है। वहीं रोजड़ो से बचने के लिए भी अफीम फसल के चारो और फेसिंग करवाई गई है। क्योकि एक बार रोजड़ों को डोडे का स्वाद लग जाता है तो फिर वह फेसिंग तोड़कर भी फसल खाने आते है। जिससे काफी नुकसान होता है। यह नुकसानी किसान के माथे होती है। विभाग तो आजकल मार्फिन मापदंड मांगता है, जो कि किसान को भी समझ में नहीं आता है और मापदंड स्पष्ट नहीं है।
नीमच जिले को नारकोटिक्स ने तीन डिवीजन में बांट रखा है। जिसमें नीमच फस्र्ट डिवीजन में नीमच और जावद का क्षेत्र आता है। जिसमें १७८ गांव और ३ हजार ५७२ काश्तकार है। नीमच सैंकड डिवीजन में रामपुरा, सिंगोली और जीरन क्षेत्र आते है। जिसमें १९८ गांव में ४ हजार ५११ काश्तकार है। नीमच थर्ड डिवीजन में मनासा क्षेत्र आता है। जिसमें १३० गांव और ३ हजार ५०२ किसान है।
किसान 10 आरी में बोवनी, सिंचाई, दवाए मजदूरी, अफ ीम लेकर विभाग तक पहुंचाने की प्रक्रिया में करीब 70 से 8 0 हजार रुपए खर्च करता है। खेती मौसम पर ही निर्भर रहती आई है। 10 आरी के खेत में से औसत साढ़े 6 किलो से 7 किलो तक अफीम निकलती है। मौसम पूरी तरह से अनुकूल रहता है तो उत्पादन अच्छा होता है। मौसम से फ सल प्रभावित होती है तो उत्पादन पर भी असर पड़ता है।
विभाग ने बारिश व ओलावृष्टि में फसल नुकसानी के चलते किसानों के आवेदन लेकर जांच करता है। उसके अनुसार ही उसका मापदंड तय किया जाता है। अभी तक सबसे अधिक मंदसौर जिले से ३५१० आवेदन, नीमच से ५५१ और रतलाम से २११ आवेदन प्राप्त हुए हैं। अफीम की खेती के लिए काफी एतिहायत बरतनी होती है।
– प्रमोद सिंह, डीएनसी नारकोटिक्स विभाग नीमच।