लक्षकार ने बताया कि वर्ष १९८४ की बात उन्हें अभी तक अच्छी तरह याद है कि उनकी मामीजी नासी बाई को लकवा हो गया था। वहीं परिवार वाले उनको ***** माता दर्शन के लिए लाए थे। छह लोगों से भी बमुश्किल उनका यहां पर लाया गया था। काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। तभी से यहां आने वाले रोगियों के लिए उनके मन में कुछ न कुछ करने का भाव था। रिटायर्डमेंट के बाद वह खाली हो गए और उन्होंने अब अपना समय इन रोगियों को माताजी के दरबार तक ऑटो में निशुल्क ले जाने के सेवा कार्य को चुना है। उन्होंने बताया कि इस सेवा में उनका आर्थिक रूप से योगदान लगता है। अन्य यात्री जहां शुल्क देकर यात्रा करते हैं, वहीं नेत्रहीन विकलांग और लकवे के रोगियों के लिए ऑटो की सुविधा निशुल्क रहती है ।
छगनलाल लक्षकार ने बताया कि उन्होंने सैकेंड हैंँड ऑटो लेकर यह सेवा एक फरवरी से शुरू की थी। अभी ऑटो में मेटिनेंस को लेकर दिक्कत आ रही है। वह इस ऑटो को देकर कंपनी से नया ऑटो लेने के लिए भी बात करके आए है। प्र्रयास चल रहा है, लगातार वह यह सेवा देते रहेंगे।