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-स्वाईन फ्लू से पीडि़त जिला चिकित्सालय पहुंचने से पहले जा रहे उदयपुर

locationनीमचPublished: Oct 04, 2018 11:55:39 am

Submitted by:

harinath dwivedi

कागजों में स्वाइन फ्लू वार्ड, हकीकत में भर्ती आम मरीज-पिछले साल हुई थी पांच लोगों की मृत्यु, इस साल सामने आए तीन केस

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-स्वाईन फ्लू से पीडि़त जिला चिकित्सालय पहुंचने से पहले जा रहे उदयपुर

नीमच. जहां पिछले साल स्वाइन फ्लू से करीब पांच लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। वहीं इस साल भी स्वाइन फ्लू की दस्तक हो चुकी है। लेकिन जमीनी स्तर पर कोई तैयारी नजर नहीं आ रही है यह हम नहीं कह रहे हैं यह स्थिति खुद हालात बयां कर रहे हैं। स्वाइन फ्लू के नियंत्रण के लिए अलग से ओपीडी और वार्ड रहते हैं। लेकिन जिला चिकित्सालय में स्वाइन फ्लू की ओपीडी के पते नहीं है। वहीं दूसरी और एक कक्ष के बाहर कागज चस्पा कर स्वाइन फ्लू वार्ड का नाम जरूर दिया गया है। लेकिन वास्तव में वहां मरीज सांस, पेटदर्द सहित अन्य बीमारी के भर्ती हंै।
वर्ष 2017 में हुई थी ५ लोगों की मृत्यु
बतादें की वर्ष 2017 में स्वाइन फ्लू की आशंका के चलते करीब 26 लोगों के सेम्पल लिए गए थे। जिसमें से 02 पॉजीटिव पाए गए थे। वहीं 24 नेगेटिव थे। जिन दो लोगों को स्वाइन फ्लू पॉजीटिव आया था, उसमें एक 60 वर्षीय महिला निवासी ग्राम ढाणी व दूसरा मरीज 63 वर्षीय पुरूष निवासी ग्राम पानोली था। जिन्हें समय पर उपचार देकर बचा लिया गया था। वहीं 5 लोगों की स्वाईन फ्लू के कारण मौत हुई थी। जिसमें 4 मरीजों की उदयपुर में व १ की कोटा में उपचार के दौरान मृत्यु हुई थी। इसमें से अधिकतर नीमच जिले के निवासी होकर राजस्थान में निवास करते हुए सीधे राजस्थान में ही उपचार कराने गए थे।
2018 में सामने आए तीन केस
इसी प्रकार वर्ष 2018 में अभी तक करीब तीन केस आए हैं। जिसमें से एक 6 फरवरी को मनासा तहसील के ग्राम देंथल का था, जो राजस्थान में ही प्रभावित हुआ था वहीं राजस्थान के उदयपुर में ही उसकी मृत्यु हुई थी। इसी प्रकार एक केस में प्रभावित महिला का पता जरूर नीमच का था, लेकिन वह सालों से कोटा रहते हुए कोटा में ही स्वाइन फ्लू से प्रभावित हुई थी। तीसरे केस में 42 वर्षीय स्कीम नंबर 36 बी नीमच के निवासी को 28 सितंबर को स्वाइन फ्लू होने की जानकारी आई थी। जिसकी 30 सितंबर को मृत्यु हो गई। इस प्रकार जहां गत वर्ष 2 जिले के मरीजों में स्वाइन फ्लू नजर आया था। वहीं दूसरी और इस बार भी करीब दो मरीज जिले के प्रभावित हुए हैं। लेकिन जिम्मेदारों द्वारा स्वाइन फ्लू से बचाव के लिए विशेष तैयारी नहीं की है।
प्रभावित मरीज के क्षेत्र में हुआ सर्वे, नहीं मिला कोई प्रभावित
जिस क्षेत्र में स्वाइन फ्लू से प्रभावित व्यक्ति निवास करता था। उसकी पत्नी को सर्दी जुकाम था। जिसे विभाग द्वारा दवाई देने पर कवर हो गया। वहीं परिवार के अन्य सभी व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वस्थ्य हैं। वहीं दूसरी और उक्त क्षेत्र में 28 से 30 सितंबर तक तीन दिन तक सर्वे किया गया। जिसमें कहीं कोई व्यक्ति प्रभावित नहीं पाया गया।
यह रहते हैं लक्षण
स्वाइन फ्लू के प्रारंभिक लक्षण सर्दी जुकाम, उल्टी दस्त, जी मचलना, जी घबराना रहता है। यह प्रथम स्टेच रहती है। जिसमें आसानी से नियंत्रण हो जाता है। वहीं दूसरी स्टेच में हाई रिस्क रहता है। यानि उक्त लक्षणों के साथ ही अगर किसी व्यक्ति को कोई पुरानी बड़ी बीमारी है जिसका वह लंबे समय से उपचार या दवाईयां ले रहा है। वह हाई रिस्क केटेगिरी में आता है। ऐसे में मरीजों का काफी ध्यान रखा जाता है। वहीं तीसरी स्टेच में उक्त दोनों अवस्था के साथ ही सांस लेने में तकलीफ होना, नाखून नीले पडऩा, बलगम में खून आना आदि लक्षण होते हैं।
बचाव के तरीके
सर्दी जुकाम होने पर तुरंत जांच कर उपचार करवाएं। भीड़ भाड़ वाले क्षेत्र से दूर रहकर घर पर ही आराम करें। अपने कपड़े रूमाल आदि का उपयोग अन्य को नहीं करने दें। इंफेक्शन नहीं फैलने दें। परिवार के लोगों से भी दूरी बनाकर रखें। ताकि स्वाइन फ्लू जैसी बीमारी से बचा जा सके। चूकि आम व्यक्ति को स्वाइन फ्लू होने पर नियंत्रण किया जा सकता है। लेकिन जिन लोगों को पहले से बीपी, शुगर, केंसर, ह्दय रोग, किडनी, लीवर सहित अन्य लंबे समय वाली बीमारी है व गर्भवती महिला, 65 साल से ऊपर के वृद्ध और ५ साल से कम के बच्चों को हाई रिस्क रहती है। इस कारण इस केटेगिरी के व्यक्तियों को जरा भी लक्षण नजर आए तो तुरंत उपचार लें। ताकि स्वाइन फ्लू जैसी बीमारी से बचा जा सके।
तुरंत जांच के चक्कर में जाते हैं बाहर
जिन लोगों की स्वाइन फ्लू के कारण मृत्यु होना पाया गया है। उनमें से अधिकतर मरीज सीधे उदयपुर या कोटा उपचार कराने पहुंचे हैं। जिसका मुख्य कारण जांच में समय लगना भी है। क्योंकि जहां जिला चिकित्सालय से मरीज का सेंंपल भोपाल भेजा जाता है। जिसकी जांच होकर रिपोर्ट आने में कम से कम करीब 24 घंटे का समय लगता है। क्योंकि सेम्पल एम्स भोपाल भेजे जाते हैं। वहीं उदयपुर में मरीज पहुंचते ही सेम्पल लेकर तुरंत जांच कर ली जाती है। इस कारण अधिकतर लोग स्थानीय उपचार लेने की अपेक्षा सीधे उदयुपर के लिए रवाना हो जाते हैं। हालांकि जिला चिकित्सालय में भी स्वाईन फ्लू की पर्याप्त दवाईयों के साथ ही मरीज व परिजन के लिए मास्क, सेम्पल लेने केे लिए कीट आदि की व्यवस्था है।
वर्जन.
जिसकी स्वाइन फ्लू के कारण उदयपुर में मृत्यु हुई थी। उसके परिवार सहित आसपास के क्षेत्र में किसी को स्वाइन फ्लू नहीं है। वहां के क्षेत्र का सर्वे किया जा चुका है। ट्रामा सेंटर में स्वाइन फ्लू का वार्ड भी है। स्वाइन फ्लू की ओपीडी अलग से नहीं है। लेकिन संबंधित को निर्देशित किया गया है। कि जिसमें भी स्वाइन फ्लू के लक्षण आए उसकी विस्तार से जांच की जाए।
-डॉ. आरएस बघेल, सीएमएचओ
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