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दादा गुरुदेव के स्मरण से मिट जाते हैं कष्ट, महापूजा में उमड़े श्रद्धालु

locationनीमचPublished: Nov 18, 2018 10:55:24 pm

Submitted by:

harinath dwivedi

दादा गुरुदेव के स्मरण से मिट जाते हैं कष्ट, महापूजा में उमड़े श्रद्धालु

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दादा गुरुदेव के स्मरण से मिट जाते हैं कष्ट, महापूजा में उमड़े श्रद्धालु

नीमच. दादा गुरूदेव के स्मरण मात्र से रोग, कष्ट संकट मिट जाते है । दादा गुरुदेव महापूजन का फल कभी निष्फल नहीं जाता है । महापूजन का प्रतिफल आत्म कल्याण करता है और सुख समृद्धि प्रदान करता है। दादा गुरुदेव महापूजन अंहकार मिटाकर विन्रमता से जीवन जीना सिखाता है। पूजन आत्मा को शांति देता है।
यह बात साध्वी गुणरंजना श्रीजी मसा ने कही वे 18 नवम्बर सुबह 9 बजे विकास नगर, महावीर जिनालय में आयोजित दादा गुरूदेव महापूजन के मध्य आयोजित धर्मसभा में बोल रही थी । उन्होंने कहा कि गुरुदेव ने साधना से 64 चौकियां लगाई थी। जो आज भी प्रासंगिक है जब-जब जीवन में गुरु प्रभु मर्यादा खत्म होती है तब-तब संकट कष्ट आते हंै। मर्यादा में रहकर जिनशासन की सर्मपित भाव से सेवा करना चाहिए । चन्दन पूजा करने से मानव के भीतर शीतलता आती है। पदमावती माता तु है जगत जननी, दादा गुरू तुम दिन दया के सागर हो, मैं चन्दन हूं तेरे चरणों का, मैं फूल बनकर तेरे चरणों में पड़ जाऊ आदि मंत्रौच्चारण के साथ महापूजन किया गया । इस अवसर पर तेरे चरणों का करने आए वंदन, ओम पदमावती, पधारो-पधारो, तुम नाकोड़ा भैरव पधारो आदि भजन प्रस्तुत किए ।
दादा गुरूदेव महापूजन के लाभार्थी स्व. ख्यालीलाल-राजबाई, स्व. हीरालाल-निर्मलादेवी की स्मृति में रिखब-अनिता, सुनील-मैना, अनिल-ऋतु, सिद्धार्थ-नमिता, रवि-संयम, शुभम, अनुज, अदिती, शुभी, सार्थक, समर्थ परिवार पिपलिया रावजी थे । कार्यक्रम में श्रीसंघ अध्यक्ष राकेश आंचलिया, चार्तुमास समिति अध्यक्ष प्रीतम खिमेसरा सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए।

जीवन में सुकर्म करने वालों को नहीं होता मौत का भय
नीमच. जिसने जन्म लिया है उसे एक दिन मरना है जो जीवन में शुुभ कर्म करते हैं उन्हें मौत का भय नहीं होता । रावण समसता था कि दुनिया में मेरे जैसा कोई नहीं । मन में अंहकार था परन्तु अभिमान किसी का रहा नहीं व रहने वाला नहीं । केवल ज्ञानी से जाना कि एक दिन मरना है तो अमरता का नशा उतरने लगा । अगर हमारे मन में किसी के प्रति बुरे भाव या विचार आते है तो अगले के भावों में विचारों में भी वैसा ही परिवर्तन आता है । खुश रहने के लिए इच्छाओं पर काबु करना जरूरी है।
यह बात साध्वी उपेन्द्रयशा श्रीजी मसा ने कही वे रविवार को सुबह पुस्तक बाजार, आराधना भवन में आयोजित चार्तुमास धर्मसभा में बोल रही थी। उन्होंने कहा कि संसार की वस्तुओं से जो सुख प्राप्त होता है वह क्षणिक तथा दुखरूपी ही है । क्योंकि जिस सुख के भीतर दुख छिपा हो वह सुख भी दुख ही है । यह सत्य है कि संसार का एक दुख यदि सुख में बदल भी जाए तो वह सुख अनेक प्रकार के दुखों की परम्परा को जन्म देता है । जब तक आत्मा संसार से मुक्त नहीं हो जाती तब तक दुख रहेंगे। श्रीसंघ सचिव मनीष कोठारी ने बताया कि 20 नवम्बर को जैन भवन से प्रात: 9 बजे नाकोड़ा तीर्थोद्वारक मेवाड़ केसरी आचार्य हिमाचलसूरीश्वर मसा की 32वीं पुण्यतिथि मनाई जाएगी । प्रवचन में 9 बजे गुणानुवाद होगा । 32 दीपक प्रज्जवलित किए जाएंगे। साथ ही 32 लक्की ड्रा खोले जाएंगे।

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