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यहां कंठ तर करने से पहले चलने लगती है महिलाओं की सांस

locationनीमचPublished: Mar 20, 2019 08:53:00 pm

Submitted by:

Subodh Tripathi

यहां कंठ तर करने से पहले चलने लगती है महिलाओं की सांस

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यहां कंठ तर करने से पहले चलने लगती है महिलाओं की सांस

नीमच. यूं तो गांव में आधा दर्जन से अधिक हैंडपंप हैं। लेकिन पानी ऊगलने का काम दो ही हैंडपंप कर रहे हैं। जिसमें से एक हैंडपंप हाईवे के इस तरफ तो दूसरा हैंडपंप हाईवे की दूसरी तरफ हैं। ऐसे में कई बार महिलाओं को अपने व परिवार की प्यास बुझाने के लिए जान जोखिम में डालकर हाईवे क्रास कर पानी भरना पड़ता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि इन हैंडपंप से पानी निकलना भी किसी चुनौती से कम नहीं है। क्योंकि काफी देर तक चलाने के बाद कहीं पानी निकलता है। ऐसे में कई बार हैंडपंप चलाने वालों की सांस तक फूल जाती है।
यह हालात महू नसीराबाद हाईवे पर स्थित ग्राम पंचायत डूंगलावदा के हैं। यहां कागजों में तो ७ से अधिक हैंडपंप दर्शाए गए हैं। लेकिन वजूद सिर्फ दो हैंडपंपों का बचा है। वह भी काफी देर तक चलाने के बाद पानी देते हैं। ऐसे में कई बार दो दो महिलाओं को एक साथ हैंडपंप चलाना पड़ता है। तब जाकर कहीं एक एक दो दो हंडे, गगरे ग्रामीणों को पानी मिल पाता है। ऐसे हालात जब गर्मी की दस्तक के साथ नजर आ रहे हैं। तो उस समय क्या होगा, जब गर्मी चरम पर होगी, ओर भू-जल स्तर धरातल में पहुंच जाएगा।
गांव में स्थित हैंडपंप के हालातों पर नजर डाली तो हालात आश्चर्य जनक नजर आए। यहां एक हैंडपंप का हत्था ही सालों से गायब नजर आया, वहीं एक हैंडपंप के अंदर मोटर डालने के बाद भी वह पानी देने का नाम नहीं ले रहा है। वहीं एक हैंडपंप पर महिलाओं और बच्चों की कतार पानी भरने के लिए लगी हुई थी। यहां हैंडपंप काफी देर तक चलाने के बाद काफी धीमी गति से पानी निकलता है। ऐसे में ग्रामीणों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
हैंडपंप पर पानी भरते हुए सीताबाई, कैलाश कुंवर, लक्ष्मी कुंवर, कौशल्याबाई, देव कन्या बाई, नंदू बाई, राम कन्या आदि महिलाओं ने बताया कि पूरा गांव इस एक हैंडपंप के भरोसे चल रहा है। यह भी कई बार खराब हो जाता है। गांव में पेयजल का अन्य कोई स्रोत नहीं है। आसपास कोई कुआ या कुंडी भी नहीं है। जहां से पानी ला सकें। इस कारण जब हैंडपंप जवाब दे जाता है तो पानी टैंकर से खरीदकर पीना पड़ता है। जिसमें करीब 250 से 300 रुपए प्रति टैंकर के देने पड़ते हैंं। लेकिन टैंकर भी वही मंगा पाता है जिस के घर में टैंक हो, अन्यथा फिर एक दो पानी की कैन दूर दराज या दूसरे गांव से लेकर आनी पड़ती है।
गांव में 600 से अधिक मतदाता है। वहीं करीब 1 हजार से अधिक लोग निवास करते हैं। गांव नेशनल हाईवे पर होने के बावजूद जनप्रतिनिधियों का इस ओर ध्यान नहीं है। गांव में एक दो ही हैंडपंप चालु है। जिससे सुबह के समय महिलाओं की कतार पानी भरने के लिए लगती है। इस बारे में कई बार जिम्मेदारों को अवगत कराया है। लेकिन कोई नतिजा नहीं निकला है। वर्ष 1998 में यहां नल के लिए ग्रामीणों की रसीदे भी बनाई थी, लेकिन आज तक नल के अते पते नहीं है। पूरा गांव हैंडपंप के भरोसे है। आश्चर्य की बात तो यह है कि पशुओं के पानी के लिए भी पूरे गांव में कोई सुविधा नहीं है। वहीं किसी के यहा मौत हो जाती है तो श्मशान पर भी शवयात्रा के साथ में टैंकर ले जाना पड़ता है।
-दिनेश गुर्जर, ग्रामीण, डूंगलावदा
फिलहाल ग्रामीणों को पानी मिल रहा है। दिक्कत आने पर हैंडपंप में मोटर लगवाएंगे, वहीं दूसरी ओर पीएचई को आवेदन दे रखा है। जब भी बोरवेल की गाड़ी आएगी बोर करवाएंगे। हैंडपंप बंद होने पर उन्हें तुरंत दुरूस्त किया जाता है। हालांकि थोड़ी समस्या तो है लेकिन हमारा प्रयास रहेगा कि ग्रामीणों को पेयजल के लिए किसी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़े।
-रानीकुंवर विक्रम सिंह सौंधिया, सरपंच
गांव में पानी की दिक्कत नहीं आए, इसलिए ट्यूबवेल लगाने की योजना है, वहीं एक सिंगल फेस मोटर है, जिसे लगाया जाएगा, पिछले साल भी लगाई थी। वर्तमान में गांव में 5 हैंडपंप चालु है।
-दिलीप कुमार, सचिव, ग्राम पंचायत डूंगलावदा
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