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रबी सीजन की फसलों का बढ़ेगा रकबा, लेकिन खेतों में नहीं पैर रखने की जगह

locationनीमचPublished: Oct 16, 2019 12:17:35 pm

Submitted by:

Subodh Tripathi

रबी सीजन की फसलों का बढ़ेगा रकबा, लेकिन खेतों में नहीं पैर रखने की जगह

रबी सीजन की फसलों का बढ़ेगा रकबा, लेकिन खेतों में नहीं पैर रखने की जगह

रबी सीजन की फसलों का बढ़ेगा रकबा, लेकिन खेतों में नहीं पैर रखने की जगह

नीमच. इस बार भले ही अतिवृष्टि के कारण खरीफ की फसलें चौपट हो गई हों। लेकिन रबी की फसलों का ग्राफ पिछले साल की अपेक्षा अधिक रहेगा। क्योंकि अत्यधिक बारिश होने के कारण अभी भी खेतों की मिट्टी भरपूर पानी से लबरेस है। हालांकि इसी कारण रबी सीजन की बोवनी भी लेट हो रही है। क्योंकि खेतों में अत्यधिक नमी होने के कारण हल चलाने लायक स्थिति नहीं है। ऐसे में अन्नदाता उस स्थिति का इंतजार कर रहे है जब हकाई जुताई करने की स्थिति तैयार हो जाए।
इस बार बढ़ेगा कृषि और उद्यानिकी फसलों का ग्राफ
इस बार बारिश अधिक होने के कारण खेतों में अभी भी पर्याप्त नमी है, इस कारण खरीफ की फसल भी कई स्थानों पर कट नहीं पाई है। वहीं दूसरी ओर खेतों में हकाई जुताई भी नहीं हो पा रही है। किसानों ने बताया कि हर बार नवरात्रि दशहरे तक किसान बोवनी कर के निपट चुका होता था, लेकिन इस बार जमीन गीली होने के कारण बोवनी नहीं हो पा रही है। लेकिन यह बात तो तय है कि इस बार जमीन में अत्यधिक नमी होने के कारण बोवनी का रकबा पिछले साल की तुलना में अधिक होगा।

वर्ष 2017-18 में करीब 34 हजार हेक्टेयर में लहसुन की बोवनी हुई थी। इसके बाद वर्ष 2018-19 में करीब 24 हजार 102 हेक्टेयर में बोवनी की गई थी। चूकि पिछले साल पानी की कमी थी, वहीं लहसुन के दाम भी कमजोर थे, इस कारण लहसुन की बोवनी का ग्राफ कमजोर रहा, लेकिन इस साल खेतों में पर्याप्त नमी और लहसुन के दाम ऊंचे होने के कारण लहसुन की बोवनी का ग्राफ करीब 30 हजार हेक्टेयर तक पहुंच सकता है।

इस प्रकार पिछले साल कुल 119.62 हजार हेक्टेयर में रबी सीजन की फसलों की बोवनी हुई थी। जो बढ़कर इस बार करीब 127.28 हजार हेक्टेयर में होने का लक्ष्य है।

रबी सीजन की फसलों की बोवनी के लिए अक्टूबर नवंबर माह उपयुक्त समय है। किसान 25 से 30 डिग्री टेम्प्रेचर में बोवनी करें। बोवनी करने से पहले बीजोपचार अवश्य करें। चूकि इस बार खेतों में पर्याप्त नमी है और पानी भरपूर है, इस कारण रबी सीजन की फसलें अच्छी होगी।
-डॉ एसएस सारंग देवोत, कृषि वैज्ञानिक
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