मध्यप्रदेश में 4300, राजस्थान में 13 हजार
प्रायवेट स्कूल संचालकों की सबसे बड़ी मांग है कि आरटीई का कानून देशभर के स्कूलों में एकसाथ लागू हुआ था। ऐसे में मध्यप्रदेश में ही सबसे अधिक समस्या क्यों उत्पन्न हो रही है। समीपस्थ राजस्थान में आरटीई के तहत स्कूलों का एक रुपया तक बकाया नहीं है। हर साल दो किश्तों में राशि का भुगतान किया जाता है। इतना ही नहीं वहां आरटीई के तहत प्रति छात्र 13 हजार रुपए दिए जाते हैं, जबकि मध्यप्रदेश में मात्र 4300 रुपए का ही भुगतान किया जाता है। इसमें भी नियमित रूप से भुगतान नहीं होता है। अधिकांश स्कूलों का वर्ष 2017-18 और 2018-19 को आरटीई को भुगतान अटका पड़ा हैै। कुछ स्कूलों में तकनीकी कारणों से बच्चों की जानकारी शिक्षा पोर्टल पर दर्ज नहीं होने की वजह से वर्ष 2016-17 से ही राशि बकाया है। आरटीई के तहत राशि का भुगतान नहीं होने से ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूल संचालक सबसे अधिक परेशान हो रहे हैं।
प्रायवेट स्कूल संचालकों की सबसे बड़ी मांग है कि आरटीई का कानून देशभर के स्कूलों में एकसाथ लागू हुआ था। ऐसे में मध्यप्रदेश में ही सबसे अधिक समस्या क्यों उत्पन्न हो रही है। समीपस्थ राजस्थान में आरटीई के तहत स्कूलों का एक रुपया तक बकाया नहीं है। हर साल दो किश्तों में राशि का भुगतान किया जाता है। इतना ही नहीं वहां आरटीई के तहत प्रति छात्र 13 हजार रुपए दिए जाते हैं, जबकि मध्यप्रदेश में मात्र 4300 रुपए का ही भुगतान किया जाता है। इसमें भी नियमित रूप से भुगतान नहीं होता है। अधिकांश स्कूलों का वर्ष 2017-18 और 2018-19 को आरटीई को भुगतान अटका पड़ा हैै। कुछ स्कूलों में तकनीकी कारणों से बच्चों की जानकारी शिक्षा पोर्टल पर दर्ज नहीं होने की वजह से वर्ष 2016-17 से ही राशि बकाया है। आरटीई के तहत राशि का भुगतान नहीं होने से ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूल संचालक सबसे अधिक परेशान हो रहे हैं।
राशि जारी करने के लिए मांगी जाती है रिश्वत!
निजी शिक्षण संस्थाओं की ओर से कलेक्टर को की गई शिकायत में स्पष्ट शब्दों में लिखा गया है कि नोडल अधिकारी द्वारा सत्यापन उपरांत भी प्रभारी द्वारा समय पर राशि जारी नहीं की जाती हैै। व्यक्तिगत रूप से फोन लगाकर कार्यालय बुलाकर परेशान किया जाता है। विलंब से आने वाले प्रपोजल पर अधिकारी द्वारा बड़ी राशि की मांग की जाती है। इस संबंध में कलेक्टर से शिकायत करने के बाद भी आज तक प्रतिपूर्ति प्रभारी को जिम्मेदारी से मुक्त नहीं किया गया है। कलेक्टर को की गई शिकायत में यह भी आरोप लगाए गए हैं कि फीस प्रतिपूर्ति की कार्यवाही 5 बार में ही पूर्ण हो सकती थी, लेकिन इसमें भी अधिकारी ने अपनी मर्जी से 16 बार पूरा किया है। कलेक्टर को यह भी बताया गया कि डीपीसी ऑफिस द्वारा शाला त्यागी बच्चों के संबंध में पूर्ण दस्तावेज कार्यालय में उपलब्ध कराने के बाद भी पिछले 4 माह से स्वीकृत नहीं किए गए है। इनमें जिले के कुल 237 स्कूलों के इतने ही बच्चे शामिल हैं। दूसरी ओर आरटीई पोर्टल एवं आधार में दर्ज नाम में भिन्नता होने पर आधार के नाम को वास्तविक नाम मानने हेतु पूर्ण दस्तावेज कार्यालय में देने के बाद भी उन्हें भी स्वीकृत नहीं किया जा रह है। जिले में इस तरह के कुल 2 हजार 91 विद्यार्थी है। इनमें से एक हजार 963 के वास्तविक दस्तावेज उपलब्ध कराने के बाद भी स्वीकृत नहीं किए गए हैं। चौकाने वाली बात यह है कि इस संबंध में तीन बार शिकायत करने के बाद भी अब तक संबंधित अधिकारी के खिलाफ किसी प्रकार की वैधानिक कार्रवाई नहीं की गई है।
निजी शिक्षण संस्थाओं की ओर से कलेक्टर को की गई शिकायत में स्पष्ट शब्दों में लिखा गया है कि नोडल अधिकारी द्वारा सत्यापन उपरांत भी प्रभारी द्वारा समय पर राशि जारी नहीं की जाती हैै। व्यक्तिगत रूप से फोन लगाकर कार्यालय बुलाकर परेशान किया जाता है। विलंब से आने वाले प्रपोजल पर अधिकारी द्वारा बड़ी राशि की मांग की जाती है। इस संबंध में कलेक्टर से शिकायत करने के बाद भी आज तक प्रतिपूर्ति प्रभारी को जिम्मेदारी से मुक्त नहीं किया गया है। कलेक्टर को की गई शिकायत में यह भी आरोप लगाए गए हैं कि फीस प्रतिपूर्ति की कार्यवाही 5 बार में ही पूर्ण हो सकती थी, लेकिन इसमें भी अधिकारी ने अपनी मर्जी से 16 बार पूरा किया है। कलेक्टर को यह भी बताया गया कि डीपीसी ऑफिस द्वारा शाला त्यागी बच्चों के संबंध में पूर्ण दस्तावेज कार्यालय में उपलब्ध कराने के बाद भी पिछले 4 माह से स्वीकृत नहीं किए गए है। इनमें जिले के कुल 237 स्कूलों के इतने ही बच्चे शामिल हैं। दूसरी ओर आरटीई पोर्टल एवं आधार में दर्ज नाम में भिन्नता होने पर आधार के नाम को वास्तविक नाम मानने हेतु पूर्ण दस्तावेज कार्यालय में देने के बाद भी उन्हें भी स्वीकृत नहीं किया जा रह है। जिले में इस तरह के कुल 2 हजार 91 विद्यार्थी है। इनमें से एक हजार 963 के वास्तविक दस्तावेज उपलब्ध कराने के बाद भी स्वीकृत नहीं किए गए हैं। चौकाने वाली बात यह है कि इस संबंध में तीन बार शिकायत करने के बाद भी अब तक संबंधित अधिकारी के खिलाफ किसी प्रकार की वैधानिक कार्रवाई नहीं की गई है।
550 बच्चों की राशि का होना है भुगतान
शिक्षा के अधिकार के तहत जिले के विभिन्न स्कूलों के करीब 550 बच्चों की 22-25 लाख रुपए की राशि जारी की जाना है। लोकसभा चुनाव में अधिकारियों के व्यस्त रहने की वजह से राशि जारी नहीं हो पा रही है। जहां तक विभाग के मातहत अधिकारी पर राशि की मांग करने का आरोप है तो यह बात पूरी तरह गलत है। जिस दिन हमारे पास नोटसीट आती है उसे उसी दिन पूरी करके आगे की कार्यवाही के लिए सीईओ को प्रेषित कर देते हैं।
डा. पीएस गोयल, डीपीसी
शिक्षा के अधिकार के तहत जिले के विभिन्न स्कूलों के करीब 550 बच्चों की 22-25 लाख रुपए की राशि जारी की जाना है। लोकसभा चुनाव में अधिकारियों के व्यस्त रहने की वजह से राशि जारी नहीं हो पा रही है। जहां तक विभाग के मातहत अधिकारी पर राशि की मांग करने का आरोप है तो यह बात पूरी तरह गलत है। जिस दिन हमारे पास नोटसीट आती है उसे उसी दिन पूरी करके आगे की कार्यवाही के लिए सीईओ को प्रेषित कर देते हैं।
डा. पीएस गोयल, डीपीसी
आरटीई के तहत भुगतान करने के लिए शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा राशि की मांग किए जाने के संबंध में मेरे पास अब तक कोई शिकायत नहीं आई है। यदि ऐसी कोई शिकायत मिलती है तो इस बारे में सख्त कार्रवाई की जाएगी। आरटीई के तहत राशि का भुगतान क्यों नहीं हो पा रहा है इस बारे में जानकारी लूंगा।
– राजीव रंजन मीना, कलेक्टर
– राजीव रंजन मीना, कलेक्टर