क्रोध पर नियंत्रण किए बिना नहीं मिलता है मोक्ष मार्ग
नीमच। धेर्य बिना किसी भी कार्य में सफलता नहीं मिलती है ।विनय विवेक और संयम से ही मुक्ति का मार्ग मिलता है ।क्रोध पर नियंत्रण किए बिना मोक्ष मार्ग नहीं मिलता है। महावीर ने क्रोध को जीत लिया था इसीलिए केवल ज्ञान को प्राप्त किया।
नीमच
Published: May 30, 2022 10:26:09 pm
यह बात प्रज्ञा महर्षि ज्ञाननिधि पं उदय मुनि महाराज ने कही। वे वर्धमान जैन स्थानक भवन में सोमवार सुबह धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि महावीर स्वामी मृत्यु से भी नहीं डरते थे जीव को मृत्यु से भय नहीं रखना चाहिए। त्रियंच योनि व देव गति से भी मोक्ष नहीं होता है। मनुष्य गति से ही मोक्ष होता है। मनुष्य शरीर हड्डियों का ढांचा हो तभी तपस्या सफल होती है। निरंतर ध्यान साधना से मोक्ष का मार्ग मिलता है। यदि मनुष्य पांच इंद्रियों के भोग भोक्ता है तो वह मोक्ष मार्ग की ओर नहीं जा सकता क्योंकि कमाना खाना भोगना और मर जाना के मध्य मोक्ष का मार्ग नहीं मिलता है। मनुष्य के वास्ते पहचान शरीर से नहीं ज्ञान से होती है। मनुष्य की पहचान कर्मों व उसकी क्रिया से होती है। आत्मज्ञान के कारण ही महावीर को पहचाना गया। चंड कोशीया नाग की बाम्बी के सामने महावीर स्वामी जाकर खड़े हो गए नाग ने उनके पैर पर चार पांच बार विष से डंक लगाएं लेकिन महावीर गंभीर मुद्रा में खड़े रहे उन्होंने बिल्कुल भी क्रोध नहीं किया तब नाग ने महावीर की गंभीरता धैर्य निर्भयता को देखकर स्वयं ही बोध ले लिया। नाग ने सोचा कि दूसरा साधारण मनुष्य होता तो सांप द्वारा डसने पर पत्थर मारता लेकिन महावीर निर्भय होकर खड़े रहे।महावीर ने बोध दिया नहीं। नाग ने बोध ग्रहण कर लिया इसलिए मनुष्य का व्यवहार गुण ही शिक्षा का संदेश दे सकता है। संत जैन उपाश्ररो में ताले नहीं लगाते हैं लेकिन लोग अपने मकान में 3 ताले लगाते हैं लगाने के बाद भी उसको देखते हैं कि लगा के नहीं कहीं चोरी तो नहीं हो जाएगी। संत के पास कुछ नहीं होने के बाद भी वह चैन की नींद सोता है। लोगों के पास बहुत कुछ होने के बाद भी इस चैन की नींद नहीं सो पाते हैं ।संसार असार है। संसार दुख देता है। संसार में सुख होता तो चक्रवर्ती राजा दीक्षा नहीं लेते हैं संसार में सुख नहीं दुख ही दुख होता है ।संसार दुःख का सागर है। संसार स्वार्थी है यहां कोई अपना नहीं है ।इसका उदाहरण हमने कोरोना काल में देखा कि पति बीमार है तो अलग कक्ष में बंद है। पिता बीमार है तो भी अलग कक्ष में बंद है और मजबूर परिवार जन उसका उपचार करा कर अपनी जान बचाने में लगे रहे कि कहीं कोरोना की बीमारी नहीं फैल जाए। इसलिए संसार स्वार्थ का सागर है। यहां कोई किसी का नहीं होता है मानव अप कीर्ति भय, वेदना भय, वैभव धन भय है सभी से भयभीत रहता है ।सम्यक जीव को मृत्यु से भी भय नहीं लगता है। महावीर समयक जीव थे मृत्यु से भी नहीं डरे थे।मनुष्य की वास्तविक पहचान उसके शरीर से नहीं ज्ञान से होनी चाहिए। मनुष्य की पहचान कर्मों से होती है कपड़ों से नहीं।आत्मा का अनुभव नहीं होता है। वेदना का अनुभव होता है। भय यह सब पुण्य का उपार्जन करता है तप से व्यक्ति देव बनता है। पांच महाव्रत का पालन करना है। निजर्रा करना होता है। पांच महाव्रत का पालन करना संयम है। आत्मा का शुद्ध होना आवश्यक है। संयम का पालन करना ही आत्मा की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। संयम का लक्ष्य भी मोक्ष होता है। स्वादिष्ट भोजन भी पाखाना बनता है ।मनुष्य का शरीर मिट्टी खाता है मिट्टी बन जाता है। मनुष्य का शरीर नसवार भंगूर होता है। मिट्टी का पुतला होता है यह एक दिन नष्ट होता है और मिट्टी में मिल जाता है। मनुष्य की मृत्यु शाश्वत सत्य है ।आत्मा अजर अमर है ।विष शरीर को मार सकता है आत्मा को नहीं।

पं उदय मुनि महाराज वर्धमान जैन स्थानक भवन में सोमवार सुबह धर्म सभा में बोल रहे थे
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