दु:ख का कारण बनती है नकारात्मक सोच की कल्पना
यह बात साध्वी धैर्य निधिश्रीजी ने कही। वे इंदिरा नगर स्थित श्री वासुपूज्य स्वामी मंदिर के धार्मिक ध्वजा महोत्सव के उपलक्ष्य में बुधवार सुबह आयोजित अमृत धर्म प्रवचन सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि कभी कभी हमारे शरीर में कोई रोग होता है तो हम बिना डाक्टर से जांच पड़ताल की बातचीत किए बिना ही उस रोग को लेकर दूसरे मरीज के बारे में चिंतन कर बिना कारण ही हम दु:खी हो जाते हैं, इसलिए जब तक किसी भी रोग के बारे में सही जांच नहीं हो जाए तब तक उसके बारे में चिंता फिकर नहीं करना चाहिए। संसार का कोई भी रोग ऐसा नहीं है जिसका उपचार नहीं होता इसलिए किसी भी रोग के होने पर दु:खी नहीं होना चाहिए। हर रोग धर्म तपस्या धर्म अध्यात्म से ठीक हो सकता है। तपस्या की अनुमोदना दान से करना चाहिए। आज हमारे पास जो खुशियां हैं हम उसी खुशी में समय बिताना चाहिए। कल के लिए दु:खी नहीं होना चाहिए। मृत्यु पूर्व व्यक्ति परिवारजनों को धन संपत्ति का हिसाब समझाने में लगा रहता है, जबकि मृत्यु पूर्व पाप कर्म नहीं होना चाहिए। मृत्यु से पूर्व अंतिम समय मनुष्य को प्रभु स्मरण में बिताना चाहिए, तभी उसकी आत्मा का कल्याण हो सकता है। अन्यथा मनुष्य को पशुयोनि में जन्म लेना पड़ सकता है। नकारात्मक सोच की कल्पना दु:ख का कारण बनती है।
यह बात साध्वी धैर्य निधिश्रीजी ने कही। वे इंदिरा नगर स्थित श्री वासुपूज्य स्वामी मंदिर के धार्मिक ध्वजा महोत्सव के उपलक्ष्य में बुधवार सुबह आयोजित अमृत धर्म प्रवचन सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि कभी कभी हमारे शरीर में कोई रोग होता है तो हम बिना डाक्टर से जांच पड़ताल की बातचीत किए बिना ही उस रोग को लेकर दूसरे मरीज के बारे में चिंतन कर बिना कारण ही हम दु:खी हो जाते हैं, इसलिए जब तक किसी भी रोग के बारे में सही जांच नहीं हो जाए तब तक उसके बारे में चिंता फिकर नहीं करना चाहिए। संसार का कोई भी रोग ऐसा नहीं है जिसका उपचार नहीं होता इसलिए किसी भी रोग के होने पर दु:खी नहीं होना चाहिए। हर रोग धर्म तपस्या धर्म अध्यात्म से ठीक हो सकता है। तपस्या की अनुमोदना दान से करना चाहिए। आज हमारे पास जो खुशियां हैं हम उसी खुशी में समय बिताना चाहिए। कल के लिए दु:खी नहीं होना चाहिए। मृत्यु पूर्व व्यक्ति परिवारजनों को धन संपत्ति का हिसाब समझाने में लगा रहता है, जबकि मृत्यु पूर्व पाप कर्म नहीं होना चाहिए। मृत्यु से पूर्व अंतिम समय मनुष्य को प्रभु स्मरण में बिताना चाहिए, तभी उसकी आत्मा का कल्याण हो सकता है। अन्यथा मनुष्य को पशुयोनि में जन्म लेना पड़ सकता है। नकारात्मक सोच की कल्पना दु:ख का कारण बनती है।
सुख का कारण बनती है सकारात्मक भावना
साध्वीश्रीजी ने कहा कि सकारात्मक भावना सुख का कारण बनती है। हमारे विचार जैसे होते हैं वैसे ही घटना घटती हैं इसलिए हम अच्छे विचार रखे। हम सदैव अच्छे विचार रखना चाहिए। नेगेटिव विचार रखना ही नहीं चाहिए। हमेशा सकारात्मक और अच्छे विचार हम सोचे भी तो अच्छे ही अच्छा होगा। आत्मा को केंद्र में रखकर धर्म अध्यात्म का पुण्य परमार्थ के कार्य करना चाहिए। नियम नहीं रखेंगे तो पाप कर्म बढ़ता है। छोटे छोटे नियम का संकल्प लें तो पाप कर्म नहीं बढ़ता है। 50 प्रकार की सब्जियां वनस्पति जीव से जुड़ी हैं। 20 प्रकार के फल वनस्पति का पाप हमें लग सकता है। जीव दया का संकल्प नहीं लेंगे तो पाप कर्म बढ़ता रहेगा। नवकार मंत्र जीवन का अमृत बीमा योजना है। इसे हमें अपनाना चाहिए। हम यदि जीवन का कल्याण चाहते हैं तो 500 सामायिक का संकल्प लें। उसका पुण्य लाभ हमें मिलना शुरू हो जाता है। परमात्मा को केंद्र में स्थान में रखकर जीवन जीना चाहिए तो मोक्ष मिल सकता है। क्रोध सदैव अस्थाई रहता है। क्षमा सदैव स्थाई भाव में रहती है। पूरे दिन भूखे रहने से कष्ट नहीं होता है पूरे दिन भोजन करने से कष्ट हो सकता है।
साध्वीश्रीजी ने कहा कि सकारात्मक भावना सुख का कारण बनती है। हमारे विचार जैसे होते हैं वैसे ही घटना घटती हैं इसलिए हम अच्छे विचार रखे। हम सदैव अच्छे विचार रखना चाहिए। नेगेटिव विचार रखना ही नहीं चाहिए। हमेशा सकारात्मक और अच्छे विचार हम सोचे भी तो अच्छे ही अच्छा होगा। आत्मा को केंद्र में रखकर धर्म अध्यात्म का पुण्य परमार्थ के कार्य करना चाहिए। नियम नहीं रखेंगे तो पाप कर्म बढ़ता है। छोटे छोटे नियम का संकल्प लें तो पाप कर्म नहीं बढ़ता है। 50 प्रकार की सब्जियां वनस्पति जीव से जुड़ी हैं। 20 प्रकार के फल वनस्पति का पाप हमें लग सकता है। जीव दया का संकल्प नहीं लेंगे तो पाप कर्म बढ़ता रहेगा। नवकार मंत्र जीवन का अमृत बीमा योजना है। इसे हमें अपनाना चाहिए। हम यदि जीवन का कल्याण चाहते हैं तो 500 सामायिक का संकल्प लें। उसका पुण्य लाभ हमें मिलना शुरू हो जाता है। परमात्मा को केंद्र में स्थान में रखकर जीवन जीना चाहिए तो मोक्ष मिल सकता है। क्रोध सदैव अस्थाई रहता है। क्षमा सदैव स्थाई भाव में रहती है। पूरे दिन भूखे रहने से कष्ट नहीं होता है पूरे दिन भोजन करने से कष्ट हो सकता है।