scriptदीपावली रोशन करने के लिए मिट्टी से दो-दो हाथ | Two hands of clay to light up Diwali | Patrika News

दीपावली रोशन करने के लिए मिट्टी से दो-दो हाथ

locationनीमचPublished: Oct 13, 2019 12:27:28 pm

Submitted by:

Virendra Rathod

दीपावली रोशन करने के लिए मिट्टी से दो-दो हाथ

दीपावली रोशन करने के लिए मिट्टी से दो-दो हाथ

दीपावली रोशन करने के लिए मिट्टी से दो-दो हाथ

नीमच। दीपावली को लेकर कुम्हार मिट्टी के दीए, करवे और खिलौने बनाने में जुट गए हैं। शहर ग्वालटोली समीप कुम्हार मोहल्ले में सुबह से लेकर रात तक मिट्टी के दीएए खिलौने और अन्य सामान बनाने में जुटे हैं। दीपोत्सव में मिट्टी के दीप महत्वपूर्ण माने जाते हैं। जिसे बनाने का कार्य कुम्हार करते हैं और सैकड़ों मिट्टी के दीप बनाते हैं ताकि दीपोत्सव में हर घर में दीप जलाए जा सके। चारों तरफ रोशनी हो और मां लक्ष्मी की पूजा की जाए। यह कार्य कुम्हार सदियों से करते आ रहे हैं और दीपोत्सव का पर्व जैसे-जैसे नजदीक आता है। उनका कार्य जोरों पर होता है। पूरा परिवार जुटकर इस कार्य को करते हैं।

पिछले दो तीन सालों से नागरिकों द्वारा चीनी सामानों से दूरी कुम्हारो के लिए फ ायदेमंद रहा है। इलेक्ट्रॉनिक चकाचौंध के इस युग में तरह-तरह के जगमग रोशनी के साधनों से मिट्टी के दीए का वर्चस्व कायम तो है, लेकिन इससे कुम्हारों का जीवन यापन नहीं हो पा रहा। कुम्हारी व्यवसाय में इतनी आमदनी नहीं हो पाती कि मिट्टी के दीये व अन्य चीजे बनाकर जीविकोपार्जन किया जा सके। फि र भी पूर्वजों की परंपरा को बनाए रखने के लिए दीपावली के समय दीपक बनाने के काम के पीछे मन में यही सोच रहती है कि दीया कुछ घरों को रोशनी करने के साथ माता लक्ष्मी को समर्पित होगी।

मेहनताना भी नहीं निकलता है
ग्वालटोली निवासी मुन्नी बाई प्रजापति पति दीनानाथ प्रजापति ने बताया कि वह पिछले तीन माह से दीपावली में घर-घर रोशनी पहुंचाने के लिए दीयों के साथ बच्चों के लिए खिलौने बनाने के लिए पूरे परिवार के साथ लगा हुआ है। बारिश के कारण दिए नहीं बन पाए और इन्हें सुखाने में भी समय लगता है। मिट्टी को तरासने और उससे दीयों के अलावा मिट्टी के बर्तन, खिलौनें बनाने में परिवार को काफ ी मेहनत करनी पड़ती है। उन्हें धूप में सुखाने के बाद रंग कर आग में पकाना पड़ता है। इसके बाद भी सही कीमत नहीं मिल पाती है। पूरा परिवार इस काम में लगा रहता है। इस दौर में मेहनताना निकालना भी मुश्किल है। इस बार दीवाली में ८00 रुपए हजार दीए की कीमत रहेगी। वहीं करवे मात्र पांच रुपए में बेचे जा रहे है। वही इन पर रंग रोगन और सजावट करने के बाद बाजार दुकानदार 30 से 40 रुपए में बेचता है। लेकिन मजदूर को तो सिर्फ पांच रुपए ही मिलता है। दीपावली आते-आते मांग बढ़ जाती है। लेकिन इसका फ ायदा वही लोग उठा पाते हैं, जो स्टॉक पहले से कर लेते हैं।

चाइनीज लाइटों के आगे फ ीकी पड़ी दीयों की रोशनी
नकुल प्रजापति ने बताया कि हाल के वर्षों में मिट्टी के सामान की मांग में आई कमी के चलते कुम्हारों की रुचि लगातार इस पेशे में घटती जा रही है। पहले दीपावली के समय बड़ी संख्या में मिट्टी के दीपों सामान का कारोबार होता था। लेकिन अब मिटटी के सामान दीयों का बाजार लगातार मंदा होता जा रहा है। अब चाइनीज इलेक्ट्रानिक लाइट, इलेक्ट्रानिक दीयों सामान ने मिटटी की वस्तुओं को अंधकार में धकेल दिया है। लोग चीन के बने लाइट, दीप, गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति, खिलौने आदि को ज्यादा महत्व देने लगे हैं। इससे कुम्हार समाज के लोग निराश है और धीरे-धीरे इस पेशे से मुंह मोड़ते जा रहे है।

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