हरिया बहुत परेशान था। गधा उसे बहुत प्रिय था। लेकिन वह अकेला उसे कुएं से बाहर नहीं निकाल सकता था। उसने सोचा कि रास्ते में आने वाले लोगों की मदद ली जाए। जो भी उस रास्ते से गुजरा, हरिया ने उससे मदद की गुहार लगाई। बहुत से लोगों ने हरिया की मदद का प्रयास किया, लेकिन वे गधे को कुएं से बाहर नहीं निकाल सके। गधा अपनी भावुक निगाहों से अपने बेबस मालिक की ओर देख रहा था।
समय गुजरता देख हरिया ने वहां के राजा से मदद लेने का विचार बनाया। वह दौड़कर राजमहल पहुंच गया। राजा ने हरिया की बात ध्यान से सुनी और अपने कुशल श्रमिकों को औजारों के साथ कुएं पर जाने और गधे को निकालने का आदेश दिया। कुएं के पास पहुंचने पर श्रमिकों के प्रमुख ने एक मांग की। दरअसल वह भ्रष्ट था। उसने गधे को निकालने के बदले हरिया से सौ स्वर्ण मुद्राएं मांगीं।
‘मेरे पास इतना धन नहीं है!’, हरिया ने कहा। ‘तुम्हें धन देना ही पड़ेगा, नहीं तो हम इस कुएं को मिट्टी से बंद कर देंगे और राजा से कहेंगे कि तुम्हारा गधा मर चुका था, इसलिए हमने उसे कुएं में ही दफना दिया।’ हरिया परेशान था। गधा भी। अचानक हरिया को एक उपाय सूझा। वह कुएं के पास पहुंचा और गधे से कुछ कहा। फिर श्रमिकों के पास आकर उसने गधे को दफनाने की अनुमति दे दी।
श्रमिक मिट्टी लाकर कुएं में डालने लगे। गधा अपने मालिक की सलाह के अनुसार डालने वाली मिट्टी को झटकार कर ऊपर आता गया। कुछ देर बाद कुआं इतना भर गया कि गधा छलांग लगाकर बाहर निकल आया।
हरिया और गधे की समझदारी देख श्रमिकों का प्रमुख हैरान हो गया। उसे अपनी गलती का अहसास हो गया था। उसने हरिया के हाथ जोड़े और कहा कि वह उसकी शिकायत राजा से नहीं करे। उसने इसके लिए क्षमा भी मांगी।