‘अपनी जुबान की ताकत कभी भी अपने माता पिता पर मत आजमाओ, जिन्होंने तुम्हें बोलना सिखाया है।’
– आचार्य चाणक्य आचार्य चाणक्य के इस कथन का अर्थ है कि बोलते समय हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आप किसके सामने और क्या बोल रहे हैं। जीभ बहुत शक्तिशाली होती है और लोग अक्सर इसका इस्तेमाल बिना सोचे-समझे करते हैं जिससे उन्हें बाद में पछताना पड़ता है। जिस तरह धनुष से निकलने वाले बाण को वापस नहीं लिया जा सकता, उसी प्रकार मूँह से निकलने वाले शब्द को वापस नहीं लिया जा सकता। इसलिए बोलने से पहले हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आपके सामने कौन है।
असल जिंदगी में कई बार ऐसा होता है कि जब लोग गुस्से में होते हैं तो उनके माता-पिता उनके बुरे शब्दों का निशाना बन जाते हैं। वे अपने माता-पिता से ऐसे शब्द भी बोलते हैं जो दिल को दुखाने वाले होते हैं, हालांकि, उनका वास्तव में यह मतलब नहीं होता है। लेकिन उस समय जीभ आपके समझ पर हावी हो जाती है।
आचार्य चाणक्य का उपदेश है कि मनुष्य को अपने माता-पिता पर अपनी जीभ की शक्ति का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए क्योंकि उन्होंने ही बोलना सिखाया है। क्रोध में अंधा होना ही दुर्भाग्य लाता है। एक बार जब गुस्सा शांत हो जाता है, तो केवल पछताना ही आता है। ऐसा भी कहा जाता है कि ऐसा व्यक्ति पाप का शिकार हो जाता है। इसी कारण आचार्य चाणक्य ने कहा है कि कभी भी अपनी जीभ का बल अपने माता-पिता पर न आजमाएं, जिन्होंने आपको बोलना सिखाया है।