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…तो 53 साल बाद बदल जाएगी लोकसभा, दोगुनी हो सकती हैं सीटें

locationनई दिल्लीPublished: Nov 26, 2021 12:38:10 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

उत्तर प्रदेश को 63, महाराष्ट्र को 36 और प. बंगाल 31 सीटों का हो सकता सबसे अधिक फायदा, दक्षिण को नुकसान
लोकसभा में दक्षिण भारत का 1.9% व पूर्वोत्तर का 1.1% प्रतिनिधित्व घट जाएगा

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शैलेंद्र तिवारी / रमेश सिंह

नई दिल्ली.
53 साल बाद एक बार फिर लोकसभा का नया चेहरा देखने की उम्मीद उठ खड़ी हुई है। माना जा रहा है कि 1973 के परिसीमन के बाद अबकी बार के परिसीमन में लोकसभा की सीटें दोगुनी हो सकती हैं। दरअसल, नई संसद में लोकसभा के करीब 900 सदस्यों को बैठने के इंतजाम की जानकारी के बाद नए परिसीमन की चर्चा जोरों पर है। 2026 में नया परिसीमन प्रस्तावित है और इसके लिए 2021 की जनगणना को आधार बनाया गया है। साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में करीब 88 करोड़ मतदाता थे। नियमानुसार हर 10 लाख मतदाताओं पर 1 सांसद होना चाहिए। नए परिसीमन के बाद सीटें 545 से बढ़कर 900 से 1000 तक हो सकती हैं। आबादी के आधार पर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार जैसे राज्यों का प्रतिनिधित्व और बढ़ेगा। जिसका सीधा असर इन राज्यों में प्रभाव रखने वाली राजनीतिक पार्टियों पर भी पड़ेगा। बड़ा सवाल अब भी यही है कि क्या 47 साल बाद परिसीमन होगा? क्या अगला लोकसभा चुनाव परिसीमन के बाद होगा?
ऐसी होगी नई लोकसभा
आबादी के आधार पर नई लोकसभा में अनुमानित 888 सांसद होंगे। इसमें भी उत्तर प्रदेश के सांसदों की संख्या सबसे अधिक 143 होगी। इसमें 63 नए सांसद होंगे। दूसरी ओर पूर्वोत्तर के राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के सांसदों की संख्या में बढ़ोत्तरी की उम्मीद कम है।
10 राज्यों में 80 फीसदी सीटें बढ़ेगी
परिसीमन के बाद जिन 10 राज्यों के लोकसभा सीटों की सबसे अधिक बढ़ोतरी होगी उनमें उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि शामिल हैं। कुल सीटों की संख्या में बढ़ोतरी का करीब 80 फीसदी इन्हीं 10 राज्यों की होंगी।
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10 राज्य जिन्हें ज्यादा फायदा

राज्य वर्तमान में सीटें परिसीमन के बाद कितना बढ़ेगी
उत्तर प्रदेश 80 143 63
महाराष्ट्र 48 84 36
प.बंगाल 42 70 31
बिहार 40 70 30
राजस्थान 25 48 23
मध्यप्रदेश 29 51 22
कर्नाटक 28 49 21
तमिलनाडु 39 58 19
गुजरात 26 44 18
तेलंगाना 17 28 11

परिसीमन क्यों
संविधान के अनुच्छेद 81 के अनुसार लोकसभा व विधानसभाओं की सीमाओं को पुनर्सीमांकित करने को परिसीमन कहते हैं। परिसीमन कई वर्षों में बढ़ी आबादी का अच्छे से प्रतिनिधित्व व समुचित विकास के लिए किया जाता है। राज्य की आबादी के अनुपात में सीटों की संख्या तय की जाती है ताकि राज्यों को समान प्रतिनिधित्व मिल सके।
इससे पहले कब
1971 की जनगणना के आधार पर 1973 में परिसीमन किया गया था। यह संयोग ही था कि उस समय सीटों की संख्या पहले जैसी ही थी।

लक्षद्वीप जैसे राज्य परिसीमन मुक्त
60 लाख से कम आबादी वाले छोटे राज्यों को परिसीमन से छूट दी जाती है। लक्षद्वीप की आबादी एक लाख से कम है। ऐसे हर राज्य व केंद्र शासित प्रदेश को न्यूनतम एक सीट आवंटित होती है।

दक्षिण का घटेगा, उत्तर का बढ़ेगा प्रतिनिधित्व
परिसीमन के बाद नई लोकसभा में देश के पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, मध्य और पूर्वोत्तर लोकसभा में प्रतिनिधित्व का समीकरण बदल जाएगा। लोकसभा में दक्षिण भारत का -1.9% व पूर्वोत्तर का -1.1% प्रतिनिधित्व घट जाएगा। उत्तर भारत का प्रतिनिधित्व 1.6% बढ़कर 29.4% हो जाएगा। पूर्वी व पश्चिमी राज्यों का 0.5% प्रतिनिधित्व बढ़ेगा। इससे वहां मजबूत पैठ वाली पार्टियों को भी फायदा मिलेगा।
कितने फीसदी प्रतिनिधित्व
देश के हिस्से वर्तमान में परिसीमन के बाद
उत्तर 27.8 29.4
दक्षिण 24.1 22.2
पूर्वी 21.7 22.2
पश्चिम 14.4 14.9
मध्य 7.4 7.8
पूर्वोत्तर 4.6 3.5

— आंकड़े जनसंख्या के आधार पर फीसदी में हैं
…………..
कब—कब हुआ परिसीमन
साल सीटें जनगणना आधार
1952 494 1951
1963 522 1961
1973 543 1971
2002 543 2001
2026 प्रस्तावित

कब हो सकता है परिसीमन
2026 से पहले परिसीमन कराने के लिए अनुच्छेद 81 (3) में संशोधन करना होगा। यह 2002 में बनाया गया था, जिसमें तय किया गया था कि अगला परिसीमन 2026 में होगा और इसमें 2021 की जनगणना को आधार बनाया जाएगा। 2002 में हुए परिसीमन में भी सीटें बढ़ने की उम्मीद की गई थीं, लेकिन नहीं बढ़ सकी थीं। अबकी बार माना जा रहा है कि लोकसभा की सीटें बढ़ाई जाएंगी।

इसलिए अब तक था रोड़ा
परिसीमन न होने और सीटों को न बढ़ाने के पीछे की एक वजह यह भी बताई जा रही थी कि जनसंख्या नियंत्रण को गंभीरता से लागू करने वाले दक्षिण भारतीय राज्यों को नए परिसीमन से संभावित नुकसान। पहले से ही आशंका थी कि इससे दक्षिण को नुकसान होगा, लेकिन उत्तर भारत की सीटें बढ़ जाएंगी।
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