नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (एनएलयू) दिल्ली के आपराधिक सुधार वकालात समूह प्रोजेक्ट 39-ए की ओर से सोमवार को जारी 7वीं ‘भारत में मौत की सजा- वार्षिक सांख्यिकी रिपोर्ट’ में यह खुलासा किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार अहमदाबाद के बम विस्फोट कांड के इकलौते मामले में 38 कैदियों को एक साथ फांसी की सजा सुनाए जाने के कारण भी एक साल में सर्वाधिक कैदियों को मौत की सजा का आंकड़ा बढ़ा हुआ लगता है।
देश में 31 दिसम्बर 2022 तक 539 कैदी मौत की सजा पर थे। इनमें सर्वाधिक 100 उत्तर प्रदेश, 61 गुजरात, 39 महाराष्ट्र, 31 मध्यप्रदेश व 19 राजस्थान की जेलों में बंद हैं। राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक यह भी साल 2004 के बाद मौत की सजा के दायरे में आए कैदियों का सर्वाधिक आंकड़ा है।
उल्लेखनीय है कि पूर्व प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बैंच ने गत सितम्बर में मौत की सजा के मामलों में एक समान दृष्टिकोण के अभाव को इंगित करते हुए एक संवैधानिक पीठ को मामला भेजकर ‘वास्तविक, प्रभावी व अर्थपूर्ण’ दंड का फ्रेमवर्क तैयार करने की जरूरत बताई थी।
बड़ी अदालतों में पहुंचे 79 मामले
सुप्रीम कोर्ट व देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में फांसी की सजा के मामलों के निस्तारण के बारे में रिपोर्ट कहती है कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने 11 व उच्च न्यायालयों ने 68 मामले निपटाए। उच्च न्यायालयों ने फांसी की सजा के चार मामलों की पुष्टि की, जबकि 39 मामलों में 51 कैदियों की सजा कम कर दी गई और 19 मामलों में 40 कैदियों को रिहा कर दिया।
मुंबई अदालत ने उल्टा फैसला
मुंबई उच्च न्यायालय ने डकैती के एक मामले में उम्र कैदी की सजा को फांसी की सजा में भी बदला। सुप्रीम कोर्ट ने दो मामलों में सजा की पुष्टि की। पांच मामलों में 7 अभियुक्तों की सजा कम कर दी और तीन मामलों में पांच लोगों को रिहा कर दिया गया।