यह पुस्तक आने वाली पीढ़ियों को दिखाएगी दिशा: शर्मा
पुस्तक की सराहना करते हुए डॉ. शर्मा ने कहा कि यह पुस्तक केवल ज्वैलरी के बारे में नहीं बल्कि इसके पीछे के विज्ञान के बारे में बताती है। जिसमें विज्ञान, वास्तुशास्त्र, ज्योतिष और एक्यूप्रेश का विहंगम संगम है। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक आने वाली पीढ़ियों को दिशा दिखाएगी, ज्ञानवर्धन करेगी और इस संबंध में शोध के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण साबित होगी। इस अवसर पर डॉ. शर्मा ने ‘घाट्स ऑफ बनारस’ नाम का मोनोग्राफ और डॉ. गौतम चटर्जी की ‘अनटोल्ड स्टोरी ऑफ ब्रॉडकास्टिंग (ड्युरिंग क्विट इंडिया मूवमेंट)’ पुस्तक का विमोचन भी किया। बनारस के घाटों पर आधारित मोनोग्राफ में डा. सचिदानंद जोशी की कविताओं का भी उपयोग किया गया है।
अपनी पुस्तक के बारे में कोठारी ने कहा कि किसी भी देश में कोई भी परंपरा रातों-रात पैदा नहीं होती। बल्कि यह पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती रहती है। उन्होंने आभूषण की खुबियों की चर्चा करते हुए कहा कि यह केवल सौंदर्य का नहीं बल्कि निरोग रखने का भी साधन है। कार्यक्रम की शुरुआत में इंदिरा गांधी कला केंद्र के सदस्य-सचिव डा. सचिदानंद जोशी ने कहा कि ‘ज्वैलरी’ पुस्तक में जिस तरह का शोध किया गया है वह अद्वितीय है और बाकी अन्य पुस्तकें भी पाठकों को अलग अनुभव पैदा कराती है। कार्यक्रम में इंदिरा गांधी कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय, सांसद ओम बिरला, सांसद प्रवेश वर्मा, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोहन प्रकाश सहित कई गणमान्य हस्तियां मौजूद थीं। इस मौके पर कोठारी ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के संदर्भ ग्रंथालय में रखे जाने के लिए इसके अध्यक्ष राम बहादुर राय को अपनी पुस्तक ‘शब्द वेद’ भेंट की।
कर्म के लिए पहले मन में इच्छा पैदा करें- डॉ. कोठारी
इस अवसर पर ‘मा फलेषु कदाचन’ विषय पर डा. गुलाब कोठारी का वेद विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यान भी आयोजित हुआ। कोठारी ने कहा कि गीता विज्ञान का ग्रंथ है। इसका ज्ञान विवस्वान से लेकर अर्जुन तक सब पर समान रुप से लागू होता है। कर्म पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी कर्म को करने के लिए पहले मन में इच्छा का पैदा होना अनिवार्य है। इच्छा के लिए ज्ञान आवश्यक है। अत: ज्ञान और कर्म साथ रहते हैं।
उन्होंने कर्म के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि बीज का बोना कर्म है, हमारा अधिकार है। फल प्राप्त करना भी हमारा अधिकार है। किन्तु बीज से फल पर्यन्त जितनी क्रियाएं होती हैं, व्यवधान आते हैं, पेड़ बड़ा होता है, पत्ते-फल-फूल लगते हैं, उन सब में हमारी भूमिका नहीं है। मन और बुद्वि की चर्चा करते हुए डा. कोठारी ने कहा कि यदि मन अशांत, अस्थिर, चंचल, क्षोभित है, तो बुद्धि भी वैसी ही हो जाएगी। मन की सम-विषम स्थिति से बुद्धि भी व्यवसाय तथा अव्यवसाय रूप हो जाती है।