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बाबा साहेब के सपनों को साकार करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रही मोदी सरकार

locationनई दिल्लीPublished: Apr 14, 2020 04:41:15 pm

Submitted by:

Dheeraj Kanojia

भारत रत्न, बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जी के योगदान को न तो हमारा समाज भुला सकता है और न ही देश

बाबा साहेब के सपनों को साकार करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रही मोदी सरकार

बाबा साहेब के सपनों को साकार करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रही मोदी सरकार

आशीष सूद

भारतीय समाज के शोषितों-वंचितों को न्यायपूर्ण अधिकार और सम्मान दिलाने की लड़ाई के पर्याय रहे, संविधान शिल्पी, भारत रत्न, बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जी, जिनका आज (14 अप्रैल) अवतरण दिवस है, के योगदान को न तो हमारा समाज भुला सकता है और न ही देश। लेकिन, बाबा साहेब के मन में दबे, कुचले और वंचित समाज को आगे ले जाने की जो वास्तविक कल्पना थी, वह दशकों तक राह भटक गई थी।

आजादी के बाद से ज्यादा समय तक देश एवं राज्यों की सत्ता पर काबिज रहीं कुछ पार्टियों ने अंबेडकर को सिर्फ एक नारा बना दिया। शोषितों-वंचितों को सामाजिक न्याय दिलाने का दायरा सिर्फ आरक्षण तक सीमित रह गया। जिस आरक्षण का प्रावधान बाबा साहेब ने सिर्फ 10 साल के लिए किया था, वह 70 साल तक जारी रहने के बाद भी यदि अपना लक्ष्य साधने में नाकामयाब रहा है, तो इससे स्पष्ट है कि पूर्व की सरकारों की नीतियों में खामियां रही थीं।

वास्तव में, संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 के अंतर्गत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को दिये जाने वाले आरक्षण को कुछ राजनीतिक पार्टियों के लिए अपना चुनावी हथियार बना लिया था। लेकिन, मोदी सरकार ने पिछले वर्षों में शोषितों-वंचितों के विकास के लिए जिस तरह से जमीनी स्तर पर कारगर प्रयास किये हैं, उनसे न केवल वंचितों को सम्मान मिला है और उनका सशक्तिकरण हुआ है, बल्कि सामाजिक समरसता के बाबा साहब के सपनों को साकार करने की राह भी प्रशस्त हुई है।

2011 की जनगणना के अनुसार भारत में अनुसूचित जाति के लोगों की जनसंख्या 16.6 प्रतिशत है। अगर हम सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति के लोगों के प्रतिनिधित्व की बात करें, तो यह संख्या 1950 में 2.18 लाख थी, जो 1991 में 6.41 लाख हो गयी। इस तरह सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है, विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, सरकारी बैंकों और सरकारी बीमा कंपनियों में। केंद्र सरकार ने जुलाई 2019 में लोकसभा में एक लिखित प्रश्न के जवाब में बताया था कि केंद्रीय सेवाओं में अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या 1 जनवरी 2016 तक 17.49 प्रतिशत है, जो निर्धारित प्रतिशत से ज्यादा है।

संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों में अनुच्छेद 16 (4) के तहत देश के वंचित लोगों को नौकरियों में आरक्षण दिया गया है। अनुच्छेद 15 (4) के तहत उन्हें केंद्र और राज्य द्वारा संचालित शिक्षण संस्थानों में आरक्षण दिया गया। संविधान की धारा 330, 332 और 334 के तहत अनुसूचित जाति के लोगों को संसद, विधानसभा और विधान परिषद् में आरक्षण दिया गया। बावजूद इसके, उन्हें आरक्षण मिलना सिर्फ एक प्रक्रिया बन कर रह गई है और बाबा साहब के सपने अधूरे रह गये हैं।

इसलिए, मोदी सरकार ने नीतियों में कुछ आधारभूत बदलाव किये हैं। डेवलपमेंट एक्शन प्लान फॉर शेड्यूल्ड कास्ट के अंतर्गत वर्ष 2019-20 के लिए सरकार ने 37 मंत्रालयों, विभागों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए 342 योजनाओं के माध्यम से 81340.74 करोड़ रुपए निर्धारित किये, जिनमें 13 अप्रैल 2020 तक 70645.21 करोड़ रुपए निर्गत किये जा चुके हैं। वित्त वर्ष 2018-19 में कुल निर्धारित धनराशि 56618.25 करोड़ रुपये थी, जिनमें से 53107.34 करोड़ रुपये खर्च किये गये। एलोकेशन फॉर वेलफेयर ऑफ शेड्यूल्ड कास्ट के अंतर्गत देश के पांच बड़े मंत्रालयों ने डेवलपमेंट एक्शन प्लान फॉर शेड्यूल्ड कास्ट के लिए निर्धारित से अधिक राशि जारी की। ऊर्जा मंत्रालय ने 127 प्रतिशत, वाणिज्य मंत्रालय ने 119 प्रतिशत, शहरी विकास मंत्रालय ने 111 प्रतिशत, सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय ने 111 प्रतिशत और शूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय ने 110 प्रतिशत जारी किए। चालू वित्त वर्ष यानी बजट में 2020-21 में अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग के लोगों के कल्याण के लिए कुल 85,000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।

मोदी सरकार की प्रतिबद्धता न केवल अनुसूचित जाति के लोगों को सम्मान के साथ उनका अधिकार दिलाने की है, बल्कि अंबेडकर समेत सभी दलित विचारकों को उनका उचित स्थान और सम्मान दिए जाने की भी है। इसी मंशा के तहत पंच तीर्थ की परिकल्पना करके उन्हें विकसित करने का कार्य शुरू किया गया। इनमें महू (मध्य प्रदेश) में अंबेडकर की जन्मस्थली में स्मारक बनाया जाना, लंदन के उस घर को खरीदकर उसे स्मारक में बदला जाना जहां वे पढ़ाई के दौरान रहे थे, नागपुर की दीक्षा भूमि, दिल्ली में महापरिनिर्वाण स्थल और मुंबई की चैत्य भूमि शामिल है। सरकार ने दिल्ली में डॉ अंबेडकर फाउंडेशन का निर्माण पूरा करा दिया है।

यहां तक कि मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और 35ए को हटाए जाने को भी अंबेडकर के सपनों का नाम दिया, जो इस देश में ‘एक राष्ट्र के लिए एक संविधान’ की बात करते थे और किसी विशेष व्यवस्था के खिलाफ थे। ऐसा इसलिए भी, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण लागू नहीं था। यहां तक कि पंजाब से बुलाए गए दलितों को नागरिकता तक से वंचित रखा गया था।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने 2018 के एक ‘मन की बात’ कार्यक्रम में 14 अप्रैल से 5 मई तक को अंबेडकर के नाम किया, एक सप्ताह का ‘ग्राम स्वराज अभियान’ चलाया, वायब्रेन्ट सिटी की परिकल्पना का श्रेय भी उन्हें दिया। मोदी जी ने कहा कि जब हम जल संसाधनों की बात करते हैं, तो मुझे अंबेडकर याद आते हैं, क्योंकि उन्होंने सिंचाई और जलमार्गों के लिए काफी लगन और मेहनत के साथ काम किया था।

इस तरह वर्तमान केंद्र सरकार ने न केवल अंबेडकर जी की सुध ली है, बल्कि उनके विचारों को पुनर्जीवित किया है और उनके सपनों को साकार करने के लिए सही दिशा में कदम उठाए हैं। इन कदमों ने उन लोगों का भी सशक्तिकरण किया है, जो दशकों से अपने को विकास की धारा से अलग महसूस करते थे। यह काम उन्हें इस बात का एहसास दिलाए बिना ही किया गया कि सरकार उन पर किसी तरह का उपकार कर रही है या उनके अधिकार उन तक पहुंचा रही है। श्रीमान् रामनाथ कोविंद जी जैसी ग्रामीण और सामाजिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति का राष्ट्रपति निर्वाचित होना पूरे समाज को न केवल बल देता है, सशक्तिकरण भी करता है।

गरीबों के कल्याण के लिए देशभर में लगभग 20.50 करोड़ जनधन खाते खोले गये, मुद्रा योजना के अंतर्गत 15.56 लाख लोगों को 7.23 लाख करोड़ रुपए ऋण दिये गये, 8 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त एलपीजी सिलिंडर दिया गया। देश में 9.16 करोड़ शौचालयों के निर्माण ने 5.5 लाख गांवों को खुले में शौच से मुक्त किया है। मोदी सरकार 2022 तक गरीबों के लिए 3 करोड़ घरों के निर्माण की योजना पर तेजी से काम कर रही है। पूरे देश में लगभग 5.8 लाख गावों में बिजली पहुंच गई है। करीब 10. 74 करोड़ परिवारों को आयुष्मान भारत योजना के तहत फायदा मिला है, जिनमें लाभार्थियों की तादाद करीब 50 करोड़ है। सरकार की इन विभिन्न योजनाओं का मकसद आम लोगों को सामूहिक फायदा पहुंचने की है, जिनके सबसे ज्यादा लाभार्थी अनुसूचित जाति के लोग हैं। लेकिन, अनुसूचित जाति के लोगों तक यह फायदा उन्हें इस बात का एहसास दिलाए बिना पहुंचाया गया है, कि वे किसी वर्ग विशेष से हैं। सरकार यह भी कहती रही है कि यह वंचितों पर सरकार की कृपा नहीं है, बल्कि यह तो उनका अधिकार है। क्या बाबा साहेब वंचितों के लिए ऐसे ही ससम्मान सशक्तिकरण की लड़ाई नहीं लड़ रहे थे?

(लेखक दिल्ली भाजपा के प्रचार-प्रसार विभाग के प्रमुख, पूर्व महामंत्री एवं जनकपुरी के पूर्व निगम पार्षद हैं।)

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