अपने संबोधन में केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एनडीएमए, सभी मुख्यमंत्रियों की अध्यक्षता में एसडीएमए और एक समग्र एकीकृत दृष्टिकोण के साथ आपदा प्रबंधन को विश्वास के साथ केन्द्र और राज्य सरकारों ने ज़मीन पर उतारा है। नब्बे के दशक से पहले हमारा राहत-केन्द्रित दृष्टिकोण था, इसमें जान-माल बचाने की कोई गुंजाइश नहीं थी और न ये योजना का हिस्सा था। अब अर्ली वॉर्निंग, स्क्रिय निवारण, शमन और पूर्व तैयारी आधारित जान-माल को बचाने के वैज्ञानिक कार्यक्रम पर हमने काफ़ी काम किया है। आज विश्व में आपदा मोचन के क्षेत्र में हम बराबरी पर और कई क्षेत्रों में आगे भी खड़े हैं।
अमित शाह ने कहा कि वर्ष 2016 में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एनडीएमए की एनडीएमपी योजना शुरू की। ये देश में तैयार की गई पहली राष्ट्रीय आपदा योजना है और सेन्डाई आपदा जोखिम निम्नीकरण फ़्रेमवर्क-2015 से 2030 के सभी मानकों से मैच करती है। पहली बार सरकार की सभी ऐजेंसियों, विभागों के हॉरीज़ॉन्टल और वर्टिकल एकीकरण की योजना बनाई गई और इसका परिणाम हमारे सामने है। इस योजना में पंचायत, शहरी, स्थानीय निकाय के स्तर तक सरकार को और अलग अलग सरकारी विभागों को, कलेक्टर को नोडल ऐजेंसी बनाकर जोड़ा गया है। 2016 में इस योजना में 11 आपदाओं का समावेश किया गया था और 2019 में 17 आपदाओं का इसमें समावेश किया गया है। यह बताता है कि हम निरंतर हर प्रकार की आपदाओं पर काम कर रहे हैं और आपदाओं से होने वाली मृत्युओं की संख्या में हम बहुत कमी लाए हैं और यह हमारी बहुत बड़ी उपलब्धि है।
दुनियाभर के आपदा मोचन और आपदा प्रतिक्रिया क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं के बीच भी एनडीआरएफ़ ने अपना सिक्का जमाकर अपना स्थान निश्चित किया है और ये देश के लिए यह बहुत गौरव की बात है। कई बार पड़ोसी देशों में जाकर भी एनडीआरएफ़ ने मानवता की दृष्टि से उनकी मदद की है और विश्व में भारत का संदेश पहुंचाया है।
शाह ने कहा कि भारत में वर्ष 2000 से 2022 तक का समय आपदा प्रबंधन के क्षेत्र के लिए स्वर्णिम काल माना जाएगा। बीस साल के इतने कम अंतराल में भारत में बहुत लंबी यात्रा करके हम एक यशस्वी स्थान पर पहुंचे हैं। आपदा प्रबंधन हमारे देश में कोई नई बात नहीं है, हम सबने भगीरथ के बारे में सुना है कि उन्होंने गंगा को पृथ्वी पर उतारा। लेकिन आज उत्तराखंड की पहाड़ियों से गंगा को बंगाल के सागर तक जाते हुए देखते हैं तो पता लगता है कि किसी ने साइंटिफ़िक तरीक़े से सोचकर ये रास्ता बनाया और बाढ़ प्रबंधन का बहुत बढ़िया काम करने के साथ ही जल प्रबंधन भी मज़बूती के साथ किया है।
एनडीआरएफ़ के भगीरथ प्रयासों के कारण आज हम 20 साल से भी कम समय में ही बहुत बड़ी यात्रा तय कर चुके हैं। 1999 के ओडिशा के सुपर साइक्लोन को सबने देखा है जिसमें दस हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हुई थी, 2001 के गुजरात भूकंप में हज़ारों लोगों की जान गई थी, लेकिन आज हम ऐसे स्थान पर खड़े हैं कि कितने भी साइक्लोन आ जाएं, मौत को हम एक प्रतिशत से भी कम पर ले आए हैं।
26 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में एसडीआरएफ का गठन हो चुका है। एसडीआरएफ के गठन के समय ही एनडीआरएफ उसके प्रशिक्षण के साथ जुड़ता है, इसी कारण इतने बड़े देश में एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और पंचायत स्तर पर प्रबंधन के क्षेत्र में एकरूपता लाने में सफलता मिली है। फेडरल स्ट्रक्चर का सम्मान करते हुए हमने इस सफलता को प्राप्त किया है। अब तक लगभग 21,000 से ज्यादा एसडीआरएफ कर्मियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि जो कॉमन अलर्ट प्रोटोकोल लागू किया गया है उसका भी बहुत बड़ा फायदा हुआ है और नॉर्थ ईस्ट के क्षेत्र में नेसेक के द्वारा फ्लड मैनेजमेंट, सड़क एलाइनमेंट और इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण में पानी के प्रवाह को देखकर इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया जाए और पानी के प्रवाह को इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण से रोका न जाए, इस तरह भी बाढ़ की बहुत अच्छी मैपिंग की गई है।
