कोविड-19 से पहले भी दुनिया सीखने के संकट का सामना कर रही थी। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 10 में से 6 बच्चे साधारण पाठ पढऩे, समझने में असमर्थ थे। भारत में 2017-21 तक राष्ट्रीय मूल्यांकन के आधार पर 5वीं कक्षा के लिए औसत भाषा स्कोर 319 से घटकर 309 और औसत गणित स्कोर 310 से 284 हो गया।
कोरोना ने लर्निंग पोवर्टी के संकट के साथ-साथ शिक्षा में असमानता को और गहरा दिया है। रिपोर्ट के अनुसार साक्षरता की मूल बातों के साथ संख्यात्मकता और अन्य मूलभूत कौशल नहीं सीख पाने से दुनियाभर के करोड़ों बच्चों और उनके समाज का भविष्य खतरे में होगा।
स्कूल बंद रहने से बढ़ी समस्या लंबे समय तक स्कूल बंद रहने और घरेलू आय में कमी से लैटिन अमरीका और कैरेबियाई क्षेत्र में बच्चों की शिक्षा पर असर पड़ा है। करीब 80 फीसदी बच्चे प्राथमिक स्कूल की आयु पूरी करने के बाद पढऩे में असमर्थ हैं। दक्षिण एशिया में 78 फीसदी बच्चे लर्निंग पोवर्टी से प्रभावित हैं। उप-सहारा अफ्रीका में लर्निंग पोवर्टी में वृद्धि कम रही, क्योंकि इस क्षेत्र में स्कूल कम समय के लिए बंद हुए थे।
रेपिड फ्रेमवर्क पर काम करती दुनिया
बच्चों को स्कूल में बनाए रखना। घाना मेें एक टास्क फोर्स बनाकर बैक टू स्कूल कैंपेन चलाया गया।
सीखने का मूल्यांकन। मैक्सिको ने कोरोना महामारी के दौरान सीखने की हानि को मापने के लिए छह लाख बच्चों का मूल्यांकन किया।
बुनियादी चीजों को पढ़ाने में प्राथमिकता देना। फिलीपींस और इंडोनेशिया जैसे देशों ने इस ओर ध्यान दिया है।
कैच-अप लर्निंग के माध्यम से निर्देश की दक्षता बढ़ाना। इसके लिए नेपाल और जाम्बिया जैसे देशों ने प्रभावी शिक्षण के तरीकों को अपनाया, ताकि छूटी हुई पढ़ाई को पूरा किया जा सके।
मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखना। लाइबेरिया ने 30 मिनट का एक रेडियो प्रोग्राम बनाया है, जो विद्यार्थियों को अपनी भावनाओं को दर्शाने में मदद करता है।