कही ये खास बातें-
– जून के आंकड़ों के मुताबिक आर्थिक और औद्योगिक स्थिति में सुधार के संकेत
– श्रम सुधार संबंधी तीनों नए कोड इस वर्ष तक लागू होने की उम्मीद
– प्रवासी मजदूरों के राष्ट्रीय डेटाबेस की कमी महसूस हुई है, इसे दूर किया जाएगा
– बिना ठेकेदार के आने वाले प्रवासी मजदूरों को कानूनी लाभ दिलाने की तैयारी
– श्रम कानूनों में निवेश बढ़ाने और श्रमिक हितों की रक्षा करने वाले सुधार की कोशिश
आज हमारे सामने दोहरी चुनौती है, श्रमिकों का रोजगार खतरे में है तो उद्योगों का बचे रहना भी जरूरी है। श्रम मंत्री के तौर पर आप इस स्थिति को किस तरह देखते हैं?
गंगवार- देश के श्रम मंत्री के नाते श्रमिक हितों का संरक्षण मेरा मुख्य दायित्व है। लेकिन इस कठिन समय में हम उद्योगों और अर्थव्यवस्था को मजबूत करके ही श्रमिक हितों की रक्षा कर सकेंगे। साथ ही रोजगार बचा सकेंगे। मझे भरोसा है कि सरकार के प्रयासों, उद्योग जगत के सहयोग और कामगार बंधुओं की कड़ी मेहनत के बल पर हम अपने उद्योगों के साथ-साथ रोजगार की स्थिति को मजबूत करने में सफल होंगे।
कुछ राज्यों ने कई श्रम नियमों को स्थगित कर दिया। इससे उद्योगों को कितनी मदद मिलेगी और कर्मचारियों पर क्या प्रभाव होगा?
गंगवार- श्रम कानूनों में कुछ परिवर्तन राज्य बिना केंद्र की अनुमति भी कर सकते हैं। किसी भी राज्य सरकार ने सभी श्रमिकों को श्रम कानूनों के दायरे में हटाने की बात नहीं की है। केवल नए संस्थानों को श्रम कानूनों के कुछ प्रावधानों से सहुलियत देने की बात की है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि नए संस्थानों को भी न्यूनतम मजदूरी, समय पर वेतन देना, सामाजिक सुरक्षा संबंधित प्रावधानों का पालन करना ही होगा। मैं आपके माध्यम से यह यकीन दिलाना चाहता हूं कि किसी भी राज्य में श्रमिक को उनके बेसिक राइट्स से वंचित नहीं होने दिया जाएगा।
श्रम कानून पूरी तरह से समाप्त किया जाए यह न तो केंद्र का और ना किसी राज्य सरकार का उद्देश्य हो सकता है।
श्रम संबंधी कानूनों में व्यापक बदलाव की केंद्र की योजना की क्या स्थिति है?
गंगवार- दूसरे राष्ट्रीय श्रम आयोग की अनुशंसा के क्रम में श्रम सुधारों की प्रक्रिया 2004 में ही शुरू हो गई थी लेकिन इसे तेजी से आगे बढ़ाने का कार्य सन 2014 में प्रधानमंत्रीजी के नेतृत्व में बनी एनडीए की सरकार ने किया। 44 श्रम कानूनों को चार श्रम संहिताओं (कोड) में बदलने का संवेदनशील काम है। इसके लिए राज्य सरकार, ट्रेड यूनियनों, नियोक्ताओं आदि सभी से व्यापक विमर्श किया गया है।
अब तक कोड ऑफ वेजेज संसद से पारित हो चुका है और लागू करने के लिए नियम बनाकर कानून मंत्रालय को भेज दिया गया है। अन्य तीन कोड जिनमें सामाजिक सुरक्षा और औद्योगिक संबंध के कोड भी हैं, संसद में पेश किए जा चुके हैं। दो पर संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट भी मिल गई है। उम्मीद करता हूं कि वर्तमान वर्ष 2020 में ये तीनों कोड भी संसद की स्वीकृति प्राप्त कर लेंगे।
बड़े पैमाने पर संगठिन और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का रोजगार छिन चुका है। सरकार के पास क्या आंकड़े हैं?
गंगवार- रोजगार बचा रहे इस उद्देश्य से उद्योगों को कई सहूलियतें दी गई हैं। ईपीएफओ और ईएसआइसी के अंशदान जमा करने की समयावधि में ढील दी गई। दूसरी तरफ मजदूरों की समस्याओं जैसे वेतन ना मिलने या नौकरी से निकाले जाने की शिकायतों के निदान के लिए मेरे मंत्रालय ने क्षेत्रीय स्तर पर 20 कंट्रोल रूम्स बनाए और सीधी सहायता पहुंचाई।
अब देश लॉकडाउन से निकल कर अनलॉक की तरफ बढ़ चला है। इसके साथ ही बहुत से नियोक्ता अब कामगारों को वापस बुलाने के लिए आगे आ रहे हैं। जून महीने में प्राप्त आंकड़ों पर नजर डालेंगे तो देखेंगे कि आर्थिक और औद्योगिक क्षेत्र में सुधार के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं। इसका सकारात्मक प्रभाव रोजगार सृजन में भी देखने को मिलेगा।
भारत में आय या रोजगार छिन जाने पर कोई सुरक्षा की व्यवस्था नहीं। जिनका रोजगार छिना, उनके लिए क्या कदम उठाए?
गंगवार- लोगों को स्थानीय स्तर पर उनके गांवों कस्बों में ही रोजगार के अवसर कराने के लिए आत्मनिर्भर भारत में बड़े कदम उठाए गए हैं। बड़ी संख्या में स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर मिलेंगे।
साथ ही 20 जून से देश के 116 जिलों में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान की शुरुआत माननीय प्रधानमंत्री जी ने की है। इसके अंतर्गत अगले 125 दिनों में 50 हजार करोड़ रुपए से ग्रामीण क्षेत्रों में लोक संपत्ति का निर्माण प्रवासी मजदूरों की ओर से किया जाएगा। एक तरफ गांवों में पहुंचे प्रवासी मजदूरों को रोजगार मिलेगा वहीं ग्रामीण क्षेत्र में लोक संपत्ति का भी निर्माण होगा। इस योजना से श्रमिक के आत्मसम्मान की रक्षा भी होगी साथ ही गांव का विकास भी होगा। मनरेगा में हमने मजदूरी 182 रुपए से बढ़ाकर 202 रुपए कर दी है।
एक राज्य से दूसरे राज्य गए श्रमिकों के आंकड़ों और इनके हित का ध्यान रखते हुए भविष्य में क्या बदलाव किए जाएंगे?
गंगवार- दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए महसूस किया गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर एक नेशनल डाटा बेस हो जिसके आधार पर प्रवासी मजदूरों को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिल सके। उनकी स्किल मैपिंग भी की जाए जिससे उनके योग्यता अनुरूप रोजगार देने में सहूलियत हो। नियोक्ताओं को भी पता चल सके कि किस स्थान पर किस स्किल के मजदूर उपलब्ध हैं।
भवन और अन्य निर्माण श्रमिक (बीओसीडब्ल्यू) कोष का लाभ भी मजदूर को एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने पर भी मिलता रहे यह सुनिश्चित करना होगा। इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कर एक्ट की परिभाषा में परिवर्तन की आवश्यकता है। बिना कांट्रेक्टर की माध्यम से एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने वाले श्रमिकों को भी इसके दायरे में लाने की आवश्यकता है ताकि इन्हें भी इस अधिनियम के तहत कल्याणकारी प्रावधानों का लाभ मिल सके। हम जो ओक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन (ओएसएच) कोड बना रहे हैं, उसमें ये सभी बदलाव करने का प्रयास किया जाएगा।
क्या लॉकडाउन से पहले प्रवासी मजदूरों के बारे में बेहतर तैयारी जरूरी नहीं थी?
गंगवार- प्रवासी मजदूर भाइयों से अपेक्षा की गयी कि वो अपने स्थान पर ही रुके रहें। ताकि बीमारी ज्यादा नहीं फैले। परंतु सरकार ने इस विकट परिस्थिति को पूरी जिम्मेदारी से संभाला।
श्रमिकों का वापस लौटना कितना मुश्किल होगा?
गंगवार- कुछ क्षेत्रों से ऐसी जानकारी प्राप्त हो रही है कि नियोक्ता घर लौटे श्रमिकों को टे्रन या हवाई जहाज का किराया भेज कर आने का प्रबंध कर रहे हैं। सरकार का प्रयास है कि विश्वासपूर्ण वातावरण बने जिससे प्रवासी मजदूर जल्द से जल्द काम पर लौट आएं। साथ ही जो मजदूर भाई बहन नहीं लौटना चाहते उन्हें स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर गरीब कल्याण रोजगार अभियान से मिले। पूरे देश में असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों का डाटा बेस भी बनाया जाएगा, जसके अंतर्गत कोई भी मजदूर स्वयं को रजिस्टर करवा सकता है। इसके माध्यम से उनकी स्किल-मैपिंग भी की जाएगी।
पीएफ बचत पर कैसा प्रभाव देखा गया? क्या बड़ी तादाद में लोगों ने इससे रकम निकाली है?
गंगवार- लॉकडाउन को ध्यान में रखते हुए मार्च में इपीएफ अंशधारकों को जमा राशि का 75 प्रतिशत तक निकालने की सुविधा प्रदान की गयी। इसके अंतर्गत करीब 20 लाख लोगों ने 5 हजार 680 करोड़ रुपए निकाले हैं। इस दौरान एडवांस क्लेम सेटल करने की समयावधि सिर्फ 72 घंटे रखी गई, जो आम तौर पर 10 दिन होती है।
श्रम कानूनों में बदलाव का संघ परिवार का मजदूर संगठन बीएमएस खूब विरोध कर रहा है।
गंगवार- श्रम सुधारों का उद्देश्य एक सरल और पारदर्शी व्यवस्था देना है। श्रमिकों के हितों की रक्षा हो और अधिक निवेश का वातावरण पैदा हो। बीएमएस एवं अन्य टे्रड यूनियनों से हमने निरंतर संवाद का सिलसिला जारी रखा है। मुझे आशा है कि बीएमएस भी श्रमिकों के लिए रोजगार के अवसर पैदा हों, उसके लिए सरकार के साथ अवश्य सहयोग करेगा।