शोधकर्ताओं का कहना था कि अलबामा में सिफलिस रोग फैलने के बाद चिकित्सकों ने अश्वेतों के इलाज से इनकार कर दिया था। संस्था की ओर से इन मृतकों पर मौत के बाद बीमारी का अध्ययन किया गया।
रिपोर्ट के मुताबिक इस संस्था ने मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए आर्थिक मदद भी की थी। गरीबी और नस्लवाद से तबाह हुए लोगों के लिए यह बड़ी सहायता थी। बताया जाता है कि इस मदद के लिए लोगों को अपने मृतक परिजन के शवों के परीक्षण की अनुमति देनी होती थी। इससे वे बीमारी के बारे में शोध कर सकें। बाद में इस अध्ययन को टस्केगी सिफलिस नाम दिया गया।
लोगों के साथ धोखा हुआ : कोल्लर
मिलबैंक मेमोरियल फंड संस्था की शुरुआत न्यूयॉर्क में 1905 में हुई थी। इस संस्था के पास 2019 में करीब 90 मिलियन डॉलर (703 करोड रुपए) थे। संस्था बाल कल्याण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करती है। संस्था के वर्तमान अध्यक्ष क्रिस्टोफर एफ. कोल्लर कहते हैं कि 1930 में लोगों के साथ धोखा हुआ था। उसके लिए हम मृतकों के परिजनों से माफी मांगते हैं।
मिलबैंक मेमोरियल फंड संस्था की शुरुआत न्यूयॉर्क में 1905 में हुई थी। इस संस्था के पास 2019 में करीब 90 मिलियन डॉलर (703 करोड रुपए) थे। संस्था बाल कल्याण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करती है। संस्था के वर्तमान अध्यक्ष क्रिस्टोफर एफ. कोल्लर कहते हैं कि 1930 में लोगों के साथ धोखा हुआ था। उसके लिए हम मृतकों के परिजनों से माफी मांगते हैं।
संस्था की ओर से दिया जाएगा मुआवजा संस्था मिलबैंक मेमोरियल फंड ने टस्केगी सिफलिस अध्ययन की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद मृतकों के वंशजों से माफी मांगी है। संस्था की ओर से मृतकों के परिजनों को मुआवजा भी दिया जाएगा। बताया जाता है कि न्यूयॉर्क में अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद इस मामले की चर्चा होने लगी थी।