वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बर्फ तेजी से पिघल रही है। इससे दबे वायरस बाहर आ सकते हैं। अचानक वायरस का संक्रमण फैलेगा तो खतरा ज्यादा होगा। इसलिए वैज्ञानिक पहले ही इन वायरस को खोज कर उनकी स्टडी करना चाहते हैं, ताकि उनके संक्रमण से बचने का तरीका खोजा जा सके। वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसे वायरस आम तौर पर पानी वाले वातावरण में जिंदा रहते हंै। इनमें खुद को लंबे समय तक जिंदा रखने की अद्भुत क्षमता होती है।
तीन वायरस 27 हजार साल पुराने वैज्ञानिकों ने वायरस के सैंपल जमा किए गए हैं। इनमें से कुछ वायरस 48,500 साल पुराने हैं। तब से ये बर्फ में सो रहे थे। इनमें से तीन वायरस सबसे नए हैं। उनकी उम्र 27 हजार साल बताई गई है। इन्हें मेगावायरस मैमथ, पिथोवायरस मैमथ और पैंडोरावायरस मैमथ नाम दिया गया है। इन वायरस को मैमथ के मल से हासिल किया गया। मल मैमथ के बालों में लिपटा हुआ था।
भेडि़ए के पेट से भी दो नए खोजे गए बर्फ में मृत मिले एक साइबेरियाई भेडि़ए के पेट से भी दो नए वायरस खोजे गए हैं। इनका नाम पैकमैनवायरस लुपुस और पैंडोरावायरस लुपुस है। रूसी वैज्ञानिकों ने पिछले साल भी साइबेरियाई इलाके में करीब 24 हजार साल पुराने एक वायरस का पता लगाया था। यह साइबेरिया के आर्कटिक से सटे बर्फीले इलाके में जमी हुई मिट्टी में दबा था।