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दिल्ली की लैंडपूलिंग नीति पर स्वराज इंडिया ने उठाया सवाल- किसानों के लिए झुनझुने जैसी

लैंड पूलिंग नीति के तहत एजेंसियां एकत्र की गई जमीन पर ढांचागत सुविधाएं विकसित कर सकेंगी और जमीन का एक हिस्सा किसानों को हस्तांतरित कर सकेंगी। पूल की गई भूमि को डीडीए को हस्तांतरित करने की आवश्यकता नहीं होगी।

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दिल्ली की लैंडपूलिंग नीति पर स्वराज इंडिया ने उठाया सवाल- किसानों के लिए झुनझुने जैसी

नई दिल्ली। सरकारी लालफीताशाही का शिकार दिल्ली की लैंडपूलिंग पॉलिसी आखिरकार 18 साल बाद पास हुई, लेकिन वह भी सिर्फ-चुनावी वर्ष में किसानों के लिए झुनझुने जैसा है। पॉलिसी के नियम और शर्तों को लेकर दिल्ली देहात के किसानों में गहरी नाराजगी है। यह बात यहां स्वराज इंडिया ने कही है। स्वराज इंडिया ने रविवार को जारी एक बयान में कहा है, 'दिल्ली देहात के किसानों की कोई भी मांग डीडीए (दिल्ली विकास प्राधिकरण) बोर्ड ने नहीं मानी। बोर्ड ने न तो पांच एकड़ की शर्त हटाने की मांग मानी, न ही दो करोड़ रुपए प्रति एकड़ का विकास शुल्क हटाया। जबकि अधिकतर किसानों के पास पांच एकड़ से कम जमीन है।'

एफएआर घटाने से कम हुई फ्लैट्स की संख्या

स्वराज इंडिया दिल्ली देहात मोर्चा के अध्यक्ष राजीव यादव ने कहा, 'डीडीए द्वारा एफएआर (फ्लोर एरिया रेशियो) को 400 से घटाकर 200 करने से दिल्ली देहात के किसानों की जमीन की कीमत पहले से आधा दर पर आ गई है, जबकि पड़ोसी राज्य हरियाणा में 10 से 14 करोड़ रुपए प्रति एकड़ कीमत किसानों को मिल रही है।' बयान में कहा गया है कि एफएआर कम करने से पॉलिसी के तहत अब ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लिए केवल पांच लाख फ्लैट बनेंगे, जबकि पहले 10 लाख फ्लैट बनने थे। इससे कम आय वर्ग वालों के लिए भी अपने आशियाने की उम्मीद कम हो गई है।

एफएआर घटने के लिए केजरीवाल जिम्मेदार

पार्टी ने कहा है कि एफएआर घटने के लिए जिम्मेदार मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अध्यक्षता वाला दिल्ली जल बोर्ड है, जिसने नई कॉलोनी के लिए पानी उपलब्ध कराने से मना कर दिया। बयान में कहा गया है कि स्वराज इंडिया दिल्ली देहात मोर्चा नई पॉलिसी में सुधार के लिए गांव-गांव जाकर किसानों को जागरूक करेगी और किसानों की जायज मांगों के लिए संघर्ष जारी रखेगी।

क्या है लैंड पूलिंग पॉलिसी

लैंड पूलिंग नीति के तहत एजेंसियां एकत्र की गई जमीन पर सड़क, विद्यालय, अस्पताल, सामुदायिक केंद्र और स्टेडियम जैसी ढांचागत सुविधाएं विकसित कर सकेंगी और जमीन का एक हिस्सा किसानों को हस्तांतरित कर सकेंगी। बाद में निजी बिल्डरों की मदद से आवासीय परियोजना पर काम शुरू किया जा सकता है। पूल की गई भूमि को डीडीए को हस्तांतरित करने की आवश्यकता नहीं होगी।