4. बसपा के कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर काफी सक्रिय
5. मुस्लिम मतदाता प्रभावी भूमिका में और भाजपा के खिलाफ गोलबंद
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जीतेगा कौन? चुनावी इलाके में हों तो लाजमी है कि पहली दिलचस्पी तो यही अंदाजा लगाने में होगी। लेकिन उत्तर प्रदेश में इस मूल प्रश्न को टटोलते हुए आपको कई और प्रश्न मिल जाते हैं। तीसरे चरण की 59 सीटों पर हो रहे मतदान में कई बेहद दिलचस्प पहलू हैं।
देश की 9वीं सबसे बड़ी औद्योगिक नगरी कानपुर है जहां आप शहरी मतदाताओं के मार्फत भाजपा का सूचकांक आंकते हैं तो ललितपुर जैसे बेहद पिछड़े जिले हैं, जहां आप विकास के दावों को पूरी तरह उड़न-छू होते देखते हैं। मैनपुरी और इटावा जैसे यादवलैंड कहे जाने वाले जिले हैं जो इस बार कुछ बदले हालात में सूबे की राजनीति को प्रभावित करने को तैयार बैठे हैं। इत्र के लिए मशहूर कन्नौज और चूड़ियों का शहर फिरोजाबाद भी इस चरण में ही वोट कर रहा है।
क्यों कायम है भाजपा के लिए इस चरण में भी चुनौतीः
कानपुर के सीसामऊ बाजार में चाय की दुकान पर दोस्तों संग चर्चा कर रहे छात्र अभिराज शुक्ला कहते हैं यह मत समझिए कि यूपी में सिर्फ पहले और दूसरे चरण में ही पेंच था। अब वोटिंग नजदीक है तो तीसरा फेज और पेंचीदा दिख रहा है। मोदी-योगी के लिए यहां भी उतनी ही चुनौती हो सकती है। जिसे बहुत से लोग भाजपा का गढ़ मान रहे थे, वहां इनके स्टार प्रचारक तक को देखने लोग नहीं आ रहे। हालांकि वहीं मौजूद दूसरे युवा ललित कुमार कहते हैं ‘साइकिल हमेशा मंदिर के बाहर ही खड़ी रहेगी और फूल भगवान राम के चरणों में पहुंच चुका है।’ राम मंदिर, विकास और कानून-व्यवस्था के मुद्दे को और भी लोग प्रभावी बता रहे हैं।
यादवलैंड में लोगों ने कही क्या खास बातः
माहौल को भांपने चलते हैं यहां से लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर दूर इटावा। यहां सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की जन्मस्थली सैफई के बिल्कुल पास घनश्यामपुरा गांव में अपने घर के बाहर खाट पर बैठे लाल बहादुर यादव की बातें भी काफी दिलचस्प हैं। सैफई को यादव परिवार कभी नीदरलैंड बनाने में जुटा था जिस पर फिलहाल ब्रेक लगा हुआ है। यादव जी कहते हैं वोटिंग मशीन का बटन किस निशान पर दबता है यह आप इन कागज-पेन से कभी नहीं समझ पाएंगे। किस को किस योजना में क्या मिला इससे वोट नहीं पड़ेंगे। यहां लोगों को पता है कि अगर सत्ता अपने पास हो तो क्या-क्या हो सकता है। यहां लोगों के लिए यह भी जरूरी है कि कोई आपको आंख नहीं दिखाए और इसके लिए सत्ता का होना जरूरी है।
अखिलेश के परिवारवाद पर क्या है लोगों की रायः
यादवलैंड के नाम से जानी जाने वाली लगभग डेढ़ दर्जन सीटों पर यादव मतदाता प्रभावी भूमिका में हैं और यहां अखिलेश को पिता मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल यादव का भी पूरा सहारा मिल गया है। जबकि पिछले चुनाव में परिवार बिखरा हुआ था। भाजपा इसे परिवारवाद बता रही है। लेकिन मैनपुरी में रामीस खान कहते हैं ‘अखिलेश कोई बाप-दादा की हड्डियां नहीं बेच रहा। घर-परिवार की कद्र वे क्या जानें जिनके परिवार ही नहीं।’