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एक भी कड़ी टूटने न पाए…?

locationसूरतPublished: Jun 09, 2020 09:32:34 pm

Submitted by:

Dinesh Bhardwaj

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आपदा में अवसर और आर्थिक व्यवस्था जीरो से शुरू करने के दोनों वाक्य भली-भांति से याद रखकर आगे बढऩा होगा, क्योंकि सभी को यह ध्यान रखना होगा कि सूरत के कपड़ा कारोबार से जहां शहर की विलासिता और औद्योगिक समृद्धि की झलक पूरे देश और दुनिया में दिखती है, वहीं शहर के हजारों घरों में दोनों वक्त का चुल्हा भी इस कारोबार की वजह से ही जलता है

एक भी कड़ी टूटने न पाए...?

एक भी कड़ी टूटने न पाए…?

सूरत. भारतीय कपड़ा बाजार ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में सिंथेटिक वस्त्र निर्माण में सिरमौर सूरत कपड़ा मंडी कोरोना से उपजे संकटकाल में विकट दौर से गुजर रही है। पहले तो लॉकडाउन के दौरान सवा दो माह तक लगातार कपड़ा बाजार का बंद रहना और दूसरा ग्राहकी पूरी तरह से चौपट होना और अब तीसरे में जब बाजार खुला है तब कपड़ा उद्योग के विभिन्न घटकों का बगैर आपसी सामंजस्य के नई व्यापार नीति गढऩा…यह सब सूरत के कपड़ा कारोबार के लिए सुखद संकेत नहीं है। वर्तमान परिस्थिति में सभी के लिए जरूरी हो जाता है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आपदा में अवसर और आर्थिक व्यवस्था जीरो से शुरू करने के दोनों वाक्य भली-भांति से याद रखकर आगे बढऩा होगा, क्योंकि सभी को यह ध्यान रखना होगा कि सूरत के कपड़ा कारोबार से जहां शहर की विलासिता और औद्योगिक समृद्धि की झलक पूरे देश और दुनिया में दिखती है, वहीं शहर के हजारों घरों में दोनों वक्त का चुल्हा भी इस कारोबार की वजह से ही जलता है। ऐसे हालात में कपड़ा उद्योग के फैडरेशन ऑफ सूरत टैक्सटाइल ट्रेडर्स एसोसिएशन, फैडरेशन ऑफ गुजरात वीवर्स एसोसिएशन, साउथ गुजरात टैक्सटाइल प्रोसेसर्स एसोसिएशन ही नहीं बल्कि अन्य सभी छोटे-बड़े व्यापारिक संगठनों को उपरोक्त बातों को विचार करके ही नई व्यापार नीति बनाने के लिए आगे बढऩा ही होगा। नई व्यापार नीति की आवश्यकता आज सच में कपड़ा उद्योग के लिए जरूरी भी हो गई है, क्योंकि यहां सभी कपड़ा उद्योग से जुड़े व्यापारी इतना अवश्य याद कर लें कि सर्दी के सीजन में वे लुधियाना, सहारनपुर समेत अन्य मंडी में गर्म कपड़े खरीदने जाते हैं तो उन्हें भुगतान पहले ही करना पड़ता है। लुधियाना व अन्य मंडियों में भी तो गर्म कपड़े में ट्रेडर्स के अलावा अन्य घटक शामिल ही होंगे तो जब वे ऐसा कर सकते हैं तो सूरत कपड़ा मंडी के विभिन्न घटक आपसी सामंजस्य के साथ एक ठोस नई व्यापार नीति तो बना ही सकते हैं। प्रोसेसर्स व वीवर्स संगठनों ने पहले भी व्यापार नीति बनाई है और बातचीत के दौर भी चले हैं, लेकिन इसमें एक-दो घटक के प्रतिनिधि ही अब तक शामिल होते आए हैं और अब वक्त आ गया है कि कपड़ा उद्योग की सभी कडिय़ां एकसूत्र में बंधकर नई व्यापार नीति में अपने-अपने स्तर पर मान्य सुझाव के साथ शामिल हो ताकि कोरोना से उपजे संकटकाल में कपड़ा उद्योग को फिर से खड़ा करने में उन्हें फख्र महसूस हो सकें और कह सकें कि इस नई व्यापार नीति में हमारा भी उतना ही बड़ा योगदान है जितना किसी अन्य घटक का।
खुशी की बात है कि सोमवार तक कपड़ा उद्योग के प्रमुख घटकों के बीच नई व्यापारिक नीति को लेकर पनपते तनाव और विवाद पर मंगलवार को ही ठंडे छींटे मारने के सकारात्मक व्यापारिक प्रयास भी शुरू हो गए हैं। फिलहाल यह सकारात्मक व्यापारिक प्रयास फैडरेशन ऑफ गुजरात वीवर्स एसोसिएशन से जुड़े अन्य संगठनों के साथ शुरू किए गए हैं। यह भी स्वस्थ कपड़ा कारोबार के लिए अच्छे संकेत है। धीरे-धीरे इसमें कपड़ा उद्योग के अन्य घटकों को भी शामिल होना चाहिए। कपड़ा व्यापारियों का ही सेवा गतिविधि में सक्रिय संगठन सेवा फाउंडेशन ने भी आगे बढक़र तीनों घटकों को पत्र लिख एक मंच पर आकर सामंजस्य वार्ता शुरू करने की पैरवी की ह। यह सामंजस्य वार्ता कपड़ा उद्योग के सभी प्रमुख ही नहीं बल्कि सभी छोटे-बड़े घटकों के बीच होनी भी चाहिए क्योंकि कपड़ा कारोबार चेन सिस्टम आधारित है और इस चेन की एक भी कड़ी अब टूटी रहना स्वस्थ कपड़ा बाजार और समृद्ध कपड़ा कारोबार के लिए ठीक नहीं रहेगी। जो प्रयास शुरू हो चुके हैं उसमें सभी छोटे-बड़े घटक अपने अहं व ग्लानि भाव का त्याग कर कपड़ा कारोबार के लिए सकारात्मक तरीके से आगे आए, क्योंकि यहीं वक्त की जरूरत है।

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