इस घटना को लेकर दायर जनहित याचिका पर सोमवार को सुनवाई के दौरान लेकर खंडपीठ ने राज्य सरकार से नाराजगी जताते हुए कहा कि गुजरात में फायरसेफ्टी के अमलीकरण से अहमदाबाद महानगरपालिका सहित राज्य की आठ महानगरपालिकाओं को क्यों अलग रखा गया है। कानून बना है और बड़़ी महानगरपालिका इलाकों को ही इससे अलग रखा जाए तो इसका क्या मतलब है।
हाईकोर्ट ने पूछा कि यदि किसी निजी अस्पताल में आग लगे तो इमरजेंसी में अग्निशमन की कार्रवाई किस तरह से करनी है, इसकी कोई ट्रेनिंग दी गई है। यदि ऐसी कोई ट्रेनिंग नहीं दी गई तो इस तरह की दुर्घटना को कैसे टाला जा सकता है। फायर सेफ्टी के उपकरणों के नहीं चलने पर इसका जिम्मेदार किसे बताया जा सकता है। 2022 अस्पतालों में से यदि 91 अस्पतालों के पास फायर एनओसी हो तो इसे कैसे चलाया जा सकता है।
याचिकाकर्ता अमित पंचाल की ओर से दलील दी गई कि फायर सेफ्टी के मुद्दे पर वर्ष 1997 से लेकर 2001 तक हाईकोर्ट की ओर से कई आदेश दिए गए । इन आदेशों को सुप्रीम कोर्ट ने भी बहाली दी और फायर सेफ्टी को लेकर वर्ष 2011 के किए गए आदेश के अमल की बात कही। इसके बाद राज्य सरकार ने फायर सेफ्टी एक्ट लाने की बात आगे रखी, लेकिन इसके नियम नहीं बनाए थे। हालांकि बाद में फायर सेफ्टी के कानून बनाने पर इसमें महानगरपालिकाओं को अलग रखा गया।
उल्लेखनीय है कि गत छह अगस्त के तडक़े शहर के नवरंगपुरा इलाके में निजी कोविड अस्पताल में आग लगने से 8 कोरोना मरीजों की मौत हो गई थी। इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई।
उल्लेखनीय है कि गत छह अगस्त के तडक़े शहर के नवरंगपुरा इलाके में निजी कोविड अस्पताल में आग लगने से 8 कोरोना मरीजों की मौत हो गई थी। इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई।