जयपुर तो मैं अक्सर आता रहता हूं। लेकिन इंजीनियरिंग का कोर्स पूरा करने के बाद पहली बार एमएनआइटी आया हूं। मैनें सोचा पहले कुछ बन जाऊं, फिर यहां आऊं। बीईएल का सीएमडी बनने के बाद मेरी इच्छा यहां आने की हुई। हम इस पर विचार कर रहे हैं कि कैसे बीईएल एमएनआइटी के साथ मिलकर रिसर्च और रिक्रूटमेंट करे।
मेरा पूरा फोकस बीईएल में रिसर्च पर ही रहा है, इसलिए बीईएल से बाहर काफी कम इंटरैक्शन किया। एमएनआइटी एलुमिनाई के डायरेक्ट टच मे नहीं हूं, पर इसके वॉट्सऐप ग्रुप से जुड़ा हूं, जिसमें सारे मैसेज पढ़ता हूं। एमएनआइटी के सारे एलुमिनाई अच्छी-अच्छी जगहों पर अच्छे पोजीशन पर हैं। अब सबसे इंटरैक्ट करूंगा।
बीईएल में मेरा कैंपस सिलेक्शन हुआ था। कंपनी में मुझे आरएंडडी का ऑफर मिला, जो मेरे लिए ड्रीम जॉब था। मेरी हमेशा से ही रिसर्च-डेवलपमेंट में रुचि थी। पहले दिन से ही कंपनी के प्रति समर्पित रहा, कड़ी मेहनत की और अपने आप को बीईएल के विजन से को-रिलेट किया। इससे मेरा सफर आसान हो गया। मेरा प्रमोशन हमेशा समय से पहले होता रहा। काम भी अच्छे मिलते रहे। 30 साल तक अच्छी-अच्छी आरएंडडी की। प्रोजेक्ट मिलते गए, मैं काम करता रहा। डिफेंस सेक्टर में काम करने का थ्रिल रहता है कि आपने जो बनाया है, वह देश के जवानों के काम आ रहा है। इसलिए बीईएल में ही टिका रहा। प्रमोशन होते रहे और 35 साल बाद बीईएल का सीएमडी बन गया। मैं रिसर्च फील्ड से बीईएल का सीएमडी बनने वाला दूसरा व्यक्ति हूं।
बीईएल की शुरुआत ही डिफेंस सेक्टर में आत्मनिर्भरता के लिए हुई थी। शुरू-शुरू में हमने ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी लेकर डिफेंस प्रोडक्ट्स बनाने शुरू किए, क्योंकि उस समय हमारे पास टेक्नोलॉजी नहीं थी। दूसरी कंपिनयों से टेक्नोलॉजी ली और उसे समझकर उसका बाईप्रोडक्ट या एडवांस इंप्रूवमेंट प्रोडक्ट हमने बनाया। इसके बाद बाईएल ने सीआरएल लैब्स बनाए, जो फ्यूचरिस्टिक टेक्नोलॉजी पर फोकस्ड है, ताकि हमारे पास टेक्नोलॉजी संबंधी एज रहे और हम समय पर टेक्नोलॉजी डिलिवर कर पाएं। मैं खुद 20 साल सीआरएल में रहा। वहां मेंबर रिसर्च स्टाफ से शुरुआत कर चीफ साइंटिस्ट बनकर निकला और दूसरे असाइनमेंट पर गया। प्रोडक्ट के उत्पादन के लिए हमने मिशन मोड में मेक इन इंडिया को अपनाया। एसएसएमई और स्टार्टअप्स को अपने साथ जोड़ा और इसका पूरा फ्रेमवर्क बनाया। कुछ प्रोडक्ट्स हम खुद बनाते हैं और कुछ प्रोडक्ट एमएसएमई और स्टाटर्अप इकोसिस्टम के जरिए बनवाते हैं। पिछले साल हमने आरएंडडी पर 1268 करोड़ रुपए खर्च किए। इस साल हमारा टारगेट 1600 से 2000 करोड़ रुपए खर्च करने का है।
भारत को टॉप डिफेंस एक्सपोर्टर बनना ही है। यह अलग बात है कि इसमें कितने साल लगेंगे। हो सकता है 5 साल लगे, हो सकता है 10 साल लगे। मैक्सिमम 15 साल में तो हम नेट एक्सपोर्टर हो ही जाएंगे। फिर नेट एक्सपोर्टर से हमें वल्र्ड का लीडर बनना है। हम लॉकडिह मार्टिन जैसी दुनिया की टॉप कंपिनयों की पंक्ति में आ सकते हैं। हमारे पास वो क्षमता, वो विजन है कि अगले 15 साल में हम उस श्रंखला में आ जाएंगे। बीईएल टॉप 5 डिफेंस कंपिनयों में शामिल हो, इस दिशा में हम सिस्टेमैटिक प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए एक तरह हम इन्वेस्ट कर रहे हैं, साथ ही अलग-अलग कंपनियों के साथ कोलैबोरेट कर रहे हैं। हमारा इरादा ऐसा वल्र्ड क्लास प्रोडक्ट बनाने का है जिसे हम दूसरे देशों के एक्सपोर्ट कर सकें। एक्सपोर्ट की दिशा में सरकार हमें भरपूर समर्थन दे रही है।
एक्सपोर्ट को लेकर क्या लक्ष्य है?
पिछले 3-4 साल में भारत का और बीईएल का डिफेंस एक्सपोर्ट शानदार रहा है। दो साल पहले हमने 48 मिलियन डॉलर का एक्सपोर्ट किया था, पिछले साल 92 मिलियन डॉलर का किया और इस साल हम कम से कम 120 मिलियन डॉलर को पार कर जाएंगे। हम 200 मिलियन डॉलर तक का प्लान कर रहे हैं। बेल अगले 5 से 10 साल में देश के लिए जितना इक्विपमेंट बना रही है, उतना टर्नओवर विदेश से अर्जित करने का प्रयास करेगी।
डिफेंस एक्सपोर्ट में जो झिझक रहती है कि हमें समय पर पैसा मिलेगा या नहीं। लाइन ऑफ क्रेडिट या गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट इन्गेजमेंट में यह सिक्योरिटी रहती है कि पैसा हमें मिल जाएगा। बाकी जगह इस तरह के प्रॉसेस में जाने में और बड़े प्रोजेक्ट लेने में हमें डर रहता है। एमएनसी कंपनियां बिना लेटर ऑफ क्रेडिट के भी डीलिंग कर लेती हैं, क्योंकि उन्होंने उस तरह का बिजनेस देखा हुआ है। हमें भी उस तरह का भरोसा सरकार से चाहिए कि हमने अगर कोई इक्विपमेंट सप्लाई किया है तो उसका पैसा हमें समय पर मिल जाए। एक्सपोर्ट रिलेटेड इन्सेंटिव जो पहले होते थे, वे समय के साथ थोड़े कम हो गए हैं। इनको बढ़ाना और आसान करना जरूरी है, ताकि छोटी कंपनियां भी ज्यादा एक्सपोर्ट कर सके। इससे हम एक्सपोर्ट और तेजी से बढ़ा पाएंगे।
डिफेंस सेक्टर में उपकरणों के पेटेंट को लेकर एक झिझक थी कि हमें इसका पेंटेंट कराना चाहिए या नहीं, क्योंकि पेटेंट करने के प्रॉसेस में गोपनीयता भंंग होने का खतरा और सिक्योरिटी इंप्लिकेशन हो सकते हैं। लेकिन सरकार ने डिफेंस सेक्टर में मिशन रक्षा ज्ञानशक्ति मिशन मोड में चलाया, तब जाकर यह झिझक दूर हुई। आज की तारीख में हमारे पास पूरा पेटेंट के लिए एक पूरा इकोसिस्टम है, अब हमें मालूम है कि पेटेंट कैसे कराना है। अब हर साल हम 150 से 200 बैद्धि संपदा अधिकार (आइपीआर) फाइल कर रहे हैं। हमारे पास 252 पेटेंट हैं और अगले एकसाल में हमें 100 से 150 और पेटेंट मिल जाएंगे। हालांकि, हमारे यहां अभी आइपीआर के वैल्यूएशन का प्रॉसेस थोड़ा धीमा है। हमारे पास जो पेटेंट हैं, उसकी वैल्यू क्या है इसे स्ट्रीमलाइन करने की जरूरत है। आइपीआर वैल्यूएशन की दिशा में पूरा काम अभी नहीं हो पाया है।
बीईएल ने एचएएल के साथ मिलकर भारत में एक अच्छी फाउंड्री (निर्माण इकाई) स्थापित करने का प्रयास किया था। लेकिन इसमें कुछ तकनीकी और वित्तीय कठिनाइयाँ थीं, जिसके कारण हमें इस बड़े उत्पाद को छोडऩा पड़ा। वर्तमान की नैनोमीटर प्रौद्योगिकी में बहुत अधिक निवेश की आवश्यकता होती है, एक फैब्रिकेशन संयंत्र स्थापित करने में कई करोड़ रुपये लगते हैं। सरकार से आर्थिक सहायता मिलने के बावजूद, अपनी तरफ से बहुत अधिक निवेश करना पड़ता है। इसलिए, यह एक साहसिक कार्य है क्योंकि निवेश पर प्राप्ति में 10 से 15 साल लगते हैं। इसके अलावा, संचालन लागत भी काफी अधिक है। इसलिए, हमने सोचा कि कंपाउंड सेमीकंडक्टर फैब को सेमीकंडक्टर फैब से बदल दिया जाना चाहिए, जिसके लिए हम कुछ कंपनियों से बात कर रहे हैं।
इस पूरे प्रोग्राम में 96 फीसदी से अधिक प्रोक्योर घरेलू डिफेंस कंपनियों से होना है। इससे पूरे डिफेंस सेक्टर को फायदा होगा। इस 1.45 लाख करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट में से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से करीब 10,000 से 20,000 करोड़ का ऑर्डर बीईएल तो मिलने की उम्मीद है।