वे विश्वविद्यालय के पृथ्वी विज्ञान अध्ययन विभाग के सहयोग से, केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी), दक्षिण पश्चिमी क्षेत्र, बेंगलूरु द्वारा आयोजित भूजल विकास और प्रबंधन प्रथाओं में टियर-2 प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन करने के बाद संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, यह देखा गया है कि सिंचाई की लगभग 60 प्रतिशत मांग भूजल संसाधनों से पूरी होती है। भूजल के अंधाधुंध दोहन ने बोरवेल और खोदे गए कुओं जैसी भूजल संरचनाओं को और अधिक बढ़ा दिया है। भूजल विकास का औसत चरण 65 प्रतिशत है।
विविधता और जटिल जल-भूवैज्ञानिक परिवेश को ध्यान में रखते हुए, केन्द्रीय भूजल बोर्ड ने 2012 में राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण (एनएक्यूयूआइएम) कार्यक्रम के तहत भारत में विभिन्न जलभृत प्रणालियों का मानचित्रण करने के लिए एक व्यवस्थित दृष्टिकोण शुरू किया। इसका मूल विषय था अपने जलभृत को प्रबंधित करने के लिए अपने जलभृत को जानें।एनएक्यूयूआइएम का उद्देश्य सूक्ष्म स्तर पर जलभृत सूचना प्रणाली तैयार करना है। एनएक्यूयूआइएम के तहत कर्नाटक में एक लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की जलभृत प्रबंधन योजनाएं तैयार की गई हैं। ये प्रबंधन योजनाएं राज्य सरकार और हितधारकों को विभिन्न जल सुरक्षा योजनाएं बनाने और सतत विकास के लिए जलभृत-वार भूजल प्रबंधन रणनीतियां अपनाने में सक्षम बनाएंगी।