पापा जो दें हौसलों को उड़ान, चेहरे पर लाएं मुस्कान
ऑटो चालक पिता की बेटी भारती साहू की जुबानी उन्हीं की कहानी
मेरे पापा जैसे हों हर लडक़ी के पिता, आइएएस भारती साहू, यूपीएससी में 885वीं रैंक होल्डर


मेरा बचपन काफी अभाव में गुजरा। संघर्ष का दौर बहुत लंबा था। पिताजी भले ही पढ़े-लिखे नहीं हैं, लेकिन उनका सपना था हम सभी बहनें खूब पढ़े। हम सबकी पढ़ाई बहुत महंगी थी। लेकिन उन्होंने पढ़ाया। इसके लिए रात-दिन मेहनत की। यूपीएससी की तैयारी के बीच कई बार असफलताओं से दो-चार हुई। उन्होंने हिम्मत बधाई। सपने और जुनून को जिंदा रखने के लिए हौसला दिया। आज मैंने एक मुकाम पा लिया। फादर्स डे पर पापा के जज्बे को सलाम करती हूं। उनकी जैसी जीवटता हर पिता में हो। ताकि हर लडक़ी भारती साहू बन सके। पिता के प्रकाश को और फैला सके। यूपीएससी में 885 वीं रैंक हासिल कर मैं अभी नई दिल्ली में ट्रेनिंग कर रही हूं। लेकिन, दिमाग में भोपाल के सब्जी मंडी के पीछे राजवीर कॉलोनी का वह 600 वर्गफीट का मकान हमेशा मेरे जेहन में होता है। जहां हम पांच बहनें, छोटा भाई और मेरी मम्मी हर शाम पिता प्रकाश साहू के आने का इंतजार करते थे। वे लोडिंग ऑटो चलाते हैं, पहले ट्रक ड्राइवर थे। लेकिन उनके चेहरे पर कभी शिकन नहीं देखा। हमेशा हम सभी को खुश देखना चाहते हैं वे। पता नहीं कैसे इतने बड़े परिवार की जिम्मेदारी उठाते हैं वे। संघर्षों में भी पिताजी सभी बहनों को पढ़ाया-लिखाया। मैं भारती साहू सबसे छोटी हूं। यूपीएससी क्लियर कर अधिकारी बन गयी हूं। एक बहन टीचर है। दो बहनें यूपीएसई की तैयारी कर रही हैं। जबकि, एक बहन बीटेक कर रही है। भाई पिता के काम में हाथ बंटाता है। और हम बहनों के सपनों को साकार करने में पिता की मदद कर रहा है। मेरी कामना है मेरे पिताजी जैसी सोच वाला हर लडक़ी का पिता हो। ताकि उसके हौसलों को उड़ान मिल सके।
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