पर्यटन स्थली के रूप में मिल सकती है पहचान केवई नदी किनारे स्थित शिवलहरा की गुफाएं हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं लेकिन जहां यह गुफाएं देख रेख के अभाव में जर्जर हो रही हैं। वहीं दूसरी ओर सड़क पहुंच मार्ग न होने से लोगों को आने जाने में परेशानी भी उठानी पड़ती है। पर्यटन की दृष्टि से यह गुफाएं आज भी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है लेकिन वृहद स्तर पर इसका प्रचार प्रसार नहीं हो पाया है।
पौराणिक अवशेष भी मिले स्थानीय लोगों का कहना है कि शिवलहरा की गुफाएं वर्तमान में भी किसी पौराणिक घटनाओं को समेटे अप्रत्यक्ष वास्तविकताओं को दर्शाती नजर आती है। शिवलहरा की मान्यताओं की जांच में दिल्ली और भोपाल की पुरातत्व विभाग ने खोजबीन की थी। इसके बाद कुछ वर्ष पूर्व इंदिरागांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक की पुरातत्व विभाग की टीम ने भी दारसागर सहित शिवलहरा क्षेत्र में खोज की थी जिसमें पुरातत्व विभाग को चूड़ी, मिट्टी के बर्तन, मुद्राएं सहित अन्य अवशेष मिले थे। यहीं नहीं इंदिरागांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक पुरातत्व विभाग ने इन अवशेषों के आधार पर अनूपपुर जिले का 2500 वर्ष पूर्व अस्तित्व भी माना था।