बेतहाशा खर्च
यह कहा जाता है कि पैसा बनाने के लिए पैसा खर्च करना पड़ता है, लेकिन इस खर्च की सीमा तय करना जरूरी है। माइक्रोसॉफ्ट के साथ यही समस्या रही। कंपनी का 8.4 बिलियन डॉलर राइट-ऑफ करना पिछली तिमाही की कामयाबी पर पानी फेरने के लिए काफी था। कंपनी ने बाजार में पहले से ही धराशाही नोकिया को खरीदने के लिए 7.5 बिलियन डॉलर खर्च किए। इस लॉस को राइट ऑफ किया गया। इसके अलावा कंपनी ने जुलाई में डूबते मोबाइल बिजनेस में 7800 छंटनियों की भी घोषणा कर दी। यह भी कंपनी के लिए विपरीत ही साबित हुआ।
अवास्तविक उम्मीदें
एपल की यह सबसे बड़ी समस्या रही। आईफोन की सेल कमजोर होती गई, लेकिन कंपनी अपने आईफोन बिजनेस से अवास्तविक उम्मीदें लगाती रही। बेशक कंपनी ने 10.7 बिलियन डॉलर का मुनाफा दिखाया है और यह भी कहा है कि पिछले साल के मुकाबले उनकी आईफोन सेल इस साल 35 प्रतशत तक बढ़ी है, लेकिन यह नाकाफी रहा।
दरअसल निवेशकों को ज्यादा आईफोन सेल की उम्मीद थी करीब 50 मिलियन यूनिट रेंज की, लेकिन एपल के यह आंकड़े जारी होते ही निवेशकों की उम्मीद टूट गई और शेयर बाजार में एपल के शेयर महज 3 मिनट में लुढ़क गए। साथ ही कंपनी की मार्केट वैल्यू में भी करीब 60 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ। कंपनी जहां जनवरी-मार्च तिमाही में हर दिन 7 लाख आईफोन बेच रही थी, वह सेल अप्रेल-जून तिम ाही में 5.10 लाख ही रह गई।