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ओपिनियन

कब तक चलेगा?

अपराधी पकड़े,मुकदमा चला,सजा भी हुई लेकिन फांसी मिलने के बावजूद गैंगरेप और हत्या के दोषी अब तक जीवित हैं।

Mar 20, 2015 / 04:57 pm

शंकर शर्मा

Gangrep photo

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प.बंगाल में 71 वर्षीय नन से गैंगरेप का मामला अभी ठंडा पड़ा भी नहीं था कि 75 वर्षीय साध्वी से बलात्कार के बाद उसे मौत के घाट उतार दिया गया। बात प. बंगाल या देश की राजधानी तक ही सीमित नहीं, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक यही हाल दिखाई देता है।

बात हम नारी पूजा की भले करते हों,सीता, पार्वती और लक्ष्मी को पूजते भी हों लेकिन समाज की पाश्विक मानसिकता को उजागर महिलाओं पर बढ़ती हिंसा कर रही है। घरों में कन्या भ्रूण हत्या, तो घर से बाहर चेन छीनने, कहीं छेड़छाड़, तो कहीं “निर्भया” जैसी दरिंदगी देखने को मिलती है।

एक तरफ महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कानूनों को सख्त बनाया जा रहा है तो दूसरी तरफ नन और साघ्वियों से हैवानियत की ऎसी वारदातें सामने आ रही हैं कि सभ्य समाज शर्मसार हो रहा है। नेशनल क्राइम रिकाड्र्स ब्यूरो के चौंकाने वाले आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो महिलाओं के खिलाफ हिंसक वारदातों की संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ रही है। इनमें हत्या और दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध भी शामिल हैं।


देश में हर घंटे बलात्कार के चार मामले दर्ज किए जाते हैं। ज्यादातर मामलों की तो रिपोर्ट ही दर्ज नहीं होती। पंचायत से लेकर संसद तक महिलाओं की बढ़ती भागीदारी के बीच इस तरह की घटनाओं से यही साबित होता है कि सिर्फ कानून सख्त कर देने से अपराध रूकने वाले नहीं। कानूनी प्रक्रिया इतनी जटिल है कि अमूमन तो अपराध की रिपोर्ट ही दर्ज नहीं होती।

रिपोर्ट दर्ज हो भी गई तो बदनामी का डर और वकीलों के तीखे सवाल पीडित महिला और उसके परिवार को तोड़कर रख देते हैं। हर सरकार महिलाओं के लिए सुरक्षित जीवन का सपना दिखाती है लेकिन अखबारों-टीवी चैनलों की सुर्खियां उन सपनों को हर रोज धराशायी करते हैं।

इसका समाधान खोजना तो आखिर हमें ही पड़ेगा। बलात्कार और जघन्य हत्या के कितने मामलों में हत्यारों को सख्त सजा मिली है? दिल्ली में 16 दिसम्बर 2012 को हुई बलात्कार की घटना समूचे देश को दहला गयी लेकिन हुआ क्या? अपराधी पकड़े गए, मुकदमा चला, सजा भी हुई लेकिन फांसी की सजा मिलने के बावजूद गैंगरेप और हत्या के दोषी अब तक जीवित हैं।

इसे क्या माना जाए? इतने चर्चित मामले भी यूं ही लटकते रहे तो कानून का खौफ किसे होगा और क्यों? कानून कितना भी सख्त क्यों ना हो, बचाव के पतले रास्ते निकलते रहेंगे तो आम महिलाओं की बात तो दूर नन और साघ्वियों की आबरू भी यूं ही सरेआम उछलती रहेगी। और सरकारें सख्त कानून बनाने के खोखले दावे करके अपनी पीठ यूं ही थपथपाती रहेंगी। महिलाओं की जिंदगी सुरक्षित बनानी है तो कानूनी पेचीदगियों को कम करके कानून का खौफ पैदा करना ही होगा।

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