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ओपिनियन

सौ जूते-सौ प्याज

अब भी समय है। जहां मौका मिले हमें अतिक्रमण हटाकर पानी के
सरल बहाव का रास्ता साफ करना चाहिए। धीरे-धीरे उसके धरती में जाने के इन्तजाम
करने चाहिए

Jun 25, 2015 / 10:28 pm

शंकर शर्मा

Monsoon

Monsoon

तमाम तरह की शंका-आशंकाओं के बीच सुखद खबर यह है कि मानसून पूरी रफ्तार से आगे बढ़ रहा है। केरल से लेकर मुम्बई और छत्तीसगढ़ से लेकर राजस्थान तक अच्छी बरसात हो रही है। गुजरात में तो उसकी वजह से मरने वालों की संख्या 50 के आस-पास पहुंच गई है।

मानसून को लेकर डर और चिंता यहीं से शुरू होती है। एक वक्त था जब जनता सावन, मानसून और बरसात का इन्तजार करती थी। बरसात शुरू हुई नहीं कि किसान हल लेकर अपने खेतों की ओर दौड़ पड़ता था। छोटे-छोटे बच्चे ही नहीं, बड़े-बुजुर्ग तक बरसात का आनंद लेने सड़क से लेकर छत तक पर दौड़ पड़ते थे। और आज हालात इतने बदल गए कि बरसात आने से पहले ही हम उसे आपदा मानकर उससे बचने की योजनाएं बनाने लगते हैं। देश भर में हर साल हम करोड़ों नहीं अरबों-खरबों रूपए इस बात पर खर्च करते हैं कि बारिश से कोई नुकसान न हो, कोई विनाश नहीं हो। कारण चाहे वोट हो या भ्रष्टाचार की अंधी कमाई लेकिन हम इस बात की कभी कोई चिंता नहीं करते कि ऎसा होता क्यों है?

क्यों अमृत-सा बरसाती पानी हमारे लिए जहर बनता जा रहा है? क्यों हमारे खेत पानी के लिए तरस रहे हैं, क्यों भारत के घर-घर में पीने के पानी का संकट हो रहा है? देश की हों या प्रदेशों की सरकार, सरकार ही होती है। वह कारणों पर तो समय लगा सकती हैं लेकिन उपाय कुछ नहीं करती जबकि उपाय सीधे, सरल और बिना खर्च वाले हैं वर्ना कौन नहीं जानता कि राजस्थान हो या मध्य प्रदेश अथवा देश का कोई अन्य प्रदेश सभी में नदी-नालों के बहाव क्षेत्र में व्यापक निर्माण हो रहे हैं।

कौन नहीं जानता कि पानी की हर बून्द के धरती में जाने के सारे रास्ते हमने सीमेंट और कंक्रीट की परतें बिछाकर बंद कर दिए हैं। जब हम खुद ही प्रकृति के विरोध में खड़े हैं, उसकी राह में अवरोध खडे कर रहे हैं, तब फिर वह कैसे हमारा विकास करेगी?तब तो जहां होगा, विनाश ही होगा।

अब भी समय है। जहां मौका मिले हमें अतिक्रमण हटाकर पानी के सरल बहाव का रास्ता साफ करना चाहिए। धीरे-धीरे उसके धरती में जाने के इन्तजाम करने चाहिए। तभी जल संकट दूर होगा और तभी भी विनाश रूकेगा। अन्यथा तो हालत सौ जूते और सौ प्याज खाने जैसी होगी। जान-माल का नुकसान भी होगा और बचाव कार्यो पर अरबों-खरबों खर्च भी होंगे।


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