विश्वास भले ना होता हो, लेकिन सच तो यही है कि देश में 1900 से अधिक राजनीतिक दल रजिस्टर्ड हैं जिनमें से 1500 ने कभी चुनाव में भाग्य ही नहीं आजमाया। जानकारी चुनाव आयोग और सरकार के साथ-साथ राजनीतिक दलों को भी थी। लेकिन चुनाव आयोग चेता नहीं। अब चेता है तो चुनाव नहीं लडऩे वाले राजनीतिक दलों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने की तैयारियों में जुटा है। आयोग ने आशंका जताई है कि ये राजनीतिक दल कालेधन को सफेद करने के लिए बनाए गए हो सकते हैं।
देश में कालेधन का मुद्दा उछला तो चुनाव आयोग की आंखें खुलीं। देर से ही सही लेकिन अब भी कार्रवाई हो तो नई राह खुल सकती है। चुनाव आयोग ऐसे राजनीतिक दलों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने तक ही सीमित नहीं रहे। आयोग को अगर आशंका है कि इन दलों ने कालेधन को सफेद किया होगा तो इसकी गहन पड़ताल होनी चाहिए।
चुनाव नहीं लडऩे वाले इन डेढ़ हजार दलों को बनाने वाले लोग कौन थे? इनका उद्देश्य क्या था? दल बनाने से लेकर अब तक इन दलों को कितना चंदा मिला? चंदा देने वाले लोग कौन थे? राजनीतिक दलों ने इस चंदे का उपयोग किस कार्य के लिए किया? देश में कालेधन को सफेद करने के लिए अनेक हथकंडे अपनाए जाते हैं। साथ ही आयोग चुनाव लडऩे वाले बड़े-बड़े दलों के चंदे पर भी पैनी नजर रखे। राजनीतिक दल बैंक खातों में चंदे की राशि बहुत कम दिखाते हैं।
चुनावी खर्च पर जितना दिखाया जाता है, उससे कई गुना पैसा खर्च होता है। इस खेल पर नजर रखने की जरूरत भी है और इसके खिलाडिय़ों को शिकंजे में कसने की भी।
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