scriptGoogle के जरिये बैंकों को लगा दिया 100 करोड़ का चूना, जानिये कैसे | 100 crore fraud accused arrested by noida police | Patrika News

Google के जरिये बैंकों को लगा दिया 100 करोड़ का चूना, जानिये कैसे

locationनोएडाPublished: Oct 19, 2019 12:47:41 pm

Submitted by:

virendra sharma

Highlights
. स्कूलों में एडमिशन के लिए आईडी और फोटो लगी रद्दी से लेते थे लोन. 12 से अधिक बैंकों को लगाया चूना. फर्जी कंपनी के नाम खुलवाते थे सैलरी अकाउंट
 

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नोएडा. स्कूलों में अपने बच्चों के दाखिले के लिए आईडी और फोटो लगा रहे हैं, तो सावधान होने की आवश्यकता है। साइबर क्राइम और पुलिस ने स्कूलों से बच्चों के फार्म रद्दी में खरीदकर उनकी आईडी से फर्जी लोन करा बैंको को करोड़ का चूना लगाने वाले तीन को गिरफ्तार किया है।
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यहां तक फर्जी कंपनी बनाकर और उसमें कर्मचारियों की नियुक्ति दिखाकर उनके नाम पर फर्जी लोन लेकर दर्जन भर बैंकों को लगभग 100 करोड़ का चूना भी लगाया है। इनके पास से विभिन्न बैंकों के 127 क्रेडिट और डेबिट कार्ड, 86 पैन कार्ड, 23 मोबाइल फोन, बैंकों और कंपनियों के 10 फर्जी मोहर, 127 चेक बुक, विभिन्न बैंकों के 14 पासबुक, कार, 27 सिम कार्ड और दो वोटर आईडी बरामद हुआ है।
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साइबर क्राइम थाने की पुलिस ने अरिंदम मैती उर्फ आशीष सिंह, रवि कुमार उर्फ हरीश चंद्र और मोहम्मद शारिक को सर्विलांस के आधार पर सेक्टर-142 स्थित एडवांट टावर के सातवें फ्लोर पर छापा मारकर गिरफ्तार किया है। डिप्टी एसपी विवेक रंजन राय ने बताया कि ये पहले लोगों को लोन दिलाने का काम करते थे। उस दौरान उन्हें इस प्रक्रिया की खामियों का पता चला।
इन्होंने फरीदाबाद स्थित अनाज मंडी में एफआईएस ग्लोबल नाम की कंपनी खोली। पहले लोन दिलाने के काम की वजह से उनकी परिचय काफी लोगों से था। उनके कागजों के आधार उन्हें अपनी फर्जी कंपनी का कर्मचारी दिखाते और उनका सेलरी अकाउंट खुलवा देते थे। उसके बाद कंपनी का कर्मचारी होने के नाते उन्हें आसानी से लोन मिल जाता था। इन्होंने एक्सिस बैंक से 21 लोगों के नाम पर एक करोड़ 36 लाख रुपये का लोन लिया। पैसे लौटाने न पड़े, इसके लिए फरीदाबाद का आफिस बंद कर दिया।
उसके बाद इन्होंने नोएडा के सेक्टर-142 में विजडम डिजाइन प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी खोली। पूछताछ में गिरफ्तार अभियुक्तों ने बताया कि स्कूलों में बच्चों के एडमिशन के लिए जमा किए जाने वाले फार्म के साथ उनके परिजनों की आईडी भी जमा की जाती है। एडमिशन न होने पर उन फार्मों को आईडी के साथ कबाड़ियों को रद्दी के भाव बेच दिया जाता है। उसे ये लोग खरीद लेते थे और उसमें लगी फोटो को गूगल में सर्च कर उससे मिलती-जुलती फोटो निकाल लेते थे। बैंक अकाउंट खुलवाकर खातों से लोन ले लेते थे।
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