नोएडा। दादरी के चिटहेरा गांव में थाने के सामने चाय का ठेला लगाने वाला एक शख्स मौत के बाद भी दो जिंदगियां रोशन करने के साथ ही उन लोगों को सीख दे गया। जो पढे़ लिखे होने के बावजूद शरीर अंग दान करने में संकोच करते हैं। दसवीं तक पढार्इ के बाद चाय की दुकान लगाने वाले सुशील अग्रवाल ने दो साल पहले दधीचि देहदान केंद्र में मौत के बाद अपने देहदान के लिए पंजीकरण कराया था। बुधवार सुबह उनकी मौत के बाद उनके परिजनों ने इसकी सूचना दधीचि केंद्र को दी। जिसके बाद कुछ ही घंटों में चिटेहरा पहुंची डाॅक्टरों की टीम सुशील अग्रवाल की दोनों आंखों को ले गर्इ।
मूलरूप से दादरी के चिटहेरा निवासी सुशील अग्रवाल अपने चार बेटों के साथ रहते थे। वह यहां थाने के पास पिछले कर्इ वषों से चाय की दुकान लगाते थे। उनके बेटों ने बताया कि सुशील अग्रवाल ने दो वर्ष पहले ही एक दधीचि केंद्र में शरीर के अंग दान देने के लिए पंजीकरण कराया था। इसकी जानकारी उन्होंने अपने चारों बेटों को भी दे रखी थी।
नेत्रहीन को देख किया अंग दान देने का फैसला
सुशील के बेटे ने बताया कि दो साल पहले सर्दी के दिनों मेें पिता की दुकान के सामने एक नेत्रहीन नाले में गिर गया था। वह नेत्रहीन होने के कारण घंटों तक उसमें फंसा रहा। सुबह के समय दुकान खोलते समय सुशील अग्रवाल की उस पर नजर पड़ी। उन्होंने तुरंत नेत्रहीन को नाले से बाहर निकाल कर ठंड से कांप रहे। उस शख्स के कपडे़ बदलवा कर उसे चाय पिलार्इ। साथ ही उसे गत्वंय स्थान पर छोड़ा। इसी के अगले दिन अपने देहदान का फैसला लेकर सुशील ने अंगदान के लिए पंजीकरण कराया।
डायबिटीज के कारण हुर्इ मौत, टीम ने निकाली आंखें
कुछ समय पहले ही सुशील को डायबिटीज हो गर्इ। इसी के चलते 50 साल की उम्र में बुधवार सुबह उनका घर में ही देहांत हो गया। पिता की मौत के बाद तुरंत उनके बेटों ने इसकी जानकारी देहदान केंद्र के कार्यकर्ता मुकेश को दी। मुकेश ने सुबह करीब आठ बजे एम्स दिल्ली के डाॅक्टरों से संर्पक किया। तीन घंटे बाद चिटहेरा पहुंची। एम्स के दो डाॅक्टरों की टीम ने करीब आंधे घंटे के आॅपरेशन में मृतक सुशील की आंख का कार्नियां निकाल कर चले गए।
डायबिटीज की बीमारी के चलते नहीं लिए गए शरीर के अन्य अंग
सुशील अग्रवाल को डायबिटीज की बिमारी होने के चलते डाॅक्टरों की टीम ने उनके शरीर के अन्य अंग नहीं लिए। डाॅक्टरों की माने तो डायबिटीज की बीमारी के चलते शरीर के अन्य अंग खराब हो जाते हैं। वह किसी अन्य शख्स को नहीं लगा सकते। जबकि आंखों कार्नियां सही रहती है। जिन्हें डाॅक्टर की टीम निकाल कर ले गर्इ।