कहते हैं कि भगवान खुद हर जगह नहीं हो सकता इसलिए उसने मां बनाई। वहीं नोएडा में एक ऐसी भी मां हैं जिनके 400 बच्चे हैं।
Teachers Day Special : 400 से अधिक बच्चों का जीवन संवार चुकीं अंजिना राजगोपाल
राहुल चौहान@Patrika.comनोएडा। कहते हैं कि भगवान खुद हर जगह नहीं हो सकता इसलिए उसने मां बनाई। वहीं नोएडा में एक ऐसी भी मां और एक टीचर हैं जिन्होंने दो-चार नहीं बल्कि 400 से अधिक बच्चों का जीवन संवारा है। दरअसल, 5 सितंबर का दिन देशभर में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसकी बीच हम एक ऐसी महिला के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने न केवल सैकड़ों बच्चों को मां का प्यार दिया बल्कि एक टीचर के तौर पर उनका जीवन भी संवारा है।
यहां बात हो रही है नोएडा के सेक्टर-12 में रहने वाली अंजिना राजगोपाल की। जो ‘साईं बाल कुटीर’ अनाथालय की अध्यक्ष हैं और ये ऐसे लोगों का घर है जिसमें रहने वालों को कभी उनके ही अपनों ने ही ठुकरा दिया था। वहीं इस आश्रम में रहने वाले बच्चों में से कुछ ऐसे भी हैं जिनके मां-बाप गुजर गए तो रिश्तेदारों ने जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया।
61 वर्ष की हो चुकीं अंजना अभी तक 400 से अधिक बच्चों की जिंदगी बदल चुकी हैं और वर्तमान में वह करीब 60 बच्चों को अपने साथ रख उनके जीवन को रोशन करने में लगी हुई हैं। इतना ही नहीं, इन्हीं बच्चों के जीवन को सुनहरा बनाने के लिए अंजना ने शादी भी नहीं की और उनके पास रहने वाले सभी बच्चे उन्हें मां कहकर पुकारते हैं।
केरल के कोझिकोड में जन्मीं अंजिना राजगोपाल के पिता पीके राजगोपाल एक खदान कंपनी में मैनेजर थे। चार भाई और तीन बहनों में तीसरे नंबर की अंजना केवल 10वीं तक ही शिक्षा प्राप्त कर सकीं। वहीं मां और उसके बाद भाई की मौत ने उन्हें तोड़ दिया और वह पिता के साथ दिल्ली आकर मौसी के यहां रहने लगीं।
पुराने दिनों को याद कर अंजना बताती हैं कि 1988 की बात है जब बहादुर शाह जफर मार्ग स्थित प्यारे लाल भवन के पास कुछ युवक एक बच्चे को पीट रहे थे। वहीं इस घटना को देख वह उस बच्चे को घर ले आईं और उसका नाम रजत रखा। यह सबसे पहला बच्चा था जिसे उन्होंने अपने किराए के मकान में रखा। उन्होंने इसकी जानकारी पुलिस को भी दी और इसके बाद उन्होंने 1990 में बाल कुटीर नाम से एक अनाथालय की शुरुआत कर दी। जिसमें अनाथ बच्चों के आने का सिलसिला शुरू हो गया और आज यह शहर का जानामाना अनाथालय है। इसमें रहने वाले बच्चों सहित गांवों में गरीब बच्चों को शिक्षित करने के लिए जनसहयोग से उन्होंने एक स्कूल की स्थापना कराई। यहां बच्चों को 12वीं तक की शिक्षा दी जाती है।
अंजिना बताती हैं कि वह सभी बच्चों को अपने साथ घर में ही रखती हैं। यहां रहने वाले सभी बच्चों को शिक्षा समेत सभी सुविधाएं दी जाती हैं। जो बच्चे खुद सक्षम हो जाते हैं और अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं वह अपने हिसाब से जीवन जीने लगते हैं और यहां रहे कई बच्चों के अब परिवार भी बस गए हैं और वह दादी और नानी भी बन गईं हैं। आज भी वह बच्चे अपने परिवारों के साथ यहां आते रहते हैं।
वह कहती हैं कि आज मेरी उपलब्धि, संपत्ति और ताकत मेरे बच्चे हैं। इन सभी की उपलब्धि में ही मेरी उपलब्धि है और आज मैं जो भी हूं इन्हीं की वजह से हूं। अपने सभी बच्चों को जब मैं खुश देखती हूं तो मुझे लगता है कि मेरे पास दुनिया की सारी संपत्ति है।