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Dussehra 2021 : यूपी के इस जिले में हुआ था लंकेश का जन्म, रावण का पुतला नहीं जलाने का कारण सुन चौंक जाएंगे

locationनोएडाPublished: Oct 15, 2021 11:33:02 am

Submitted by:

lokesh verma

Dussehra 2021 : आज बड़ी धूमधाम से देशभर में बुराई पर अच्छाई का प्रतीक विजयदशमी पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा। जगह-जगह रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतलों का दहन किया जाएगा। लेकिन, यूपी के हाईटेक सिटी नोएडा स्थित बिसरख एक ऐसा गांव है, जहां विजयदशमी का पर्व नहीं मनाया जाता है। मान्यता है कि बिसरख ही रावण का जन्मस्थान है। इसलिए इस गांव में न तो दशहरा मनाया जाता है और न ही रावण के पुतले का दहन होता है।

नोएडा. आज बड़ी धूमधाम से देशभर में बुराई पर अच्छाई का प्रतीक विजयदशमी पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा। जगह-जगह रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतलों का दहन किया जाएगा। लेकिन, यूपी के हाईटेक सिटी नोएडा स्थित बिसरख एक ऐसा गांव है, जहां विजयदशमी का पर्व नहीं मनाया जाता है। मान्यता है कि बिसरख ही रावण का जन्मस्थान है। इसलिए इस गांव में न तो दशहरा मनाया जाता है और न ही रावण के पुतले का दहन होता है। आखिर यहां ऐसी भिन्न परंपरा क्यों है? इसके लिए टीम ‘पत्रिका’ ने बिसरख गांव का दौरा किया। पेश है ग्राउंड रिपोर्ट-
दरअसल, गौतमबुद्ध नगर जिला कलेक्ट्रेट से करीब 10 किमी की दूरी पर ग्रेटर नोएडा वेस्ट में बिसरख गांव स्थित है। गौतमबुद्ध नगर के जिला बनने से पहले यह गाजियाबाद जिले का हिस्सा था। स्थानीय लोगों का कहना है कि बिसरख गांव पहले जंगल क्षेत्र में आता था। गौतमबुद्ध नगर जिले में आने के बाद यहां विकास ने गति पकड़ी है। बिसरख गांव के आसपास अब बड़ी-बड़ी इमारतें हैं। गांव में पहुंचते ही जिले का सबसे पुराना थाना बिसरख पड़ता है। जिसका निर्माण अंग्रेजों के जमाने में हुआ था। इसी थाने के ठीक पीछे स्थित प्राचीन शिव मंदिर यानी रावण का मंदिर।
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प्राचीन अष्टभुजी शिवलिंग की मान्यता

ग्रामीणों का कहना है कि पहले इस गांव का नाम विश्वेश्वरा था। उन्होंने बताया कि त्रेतायुग में यहीं ऋषि विश्रवा का जन्म हुआ था, जो भगवान शिव के भक्त थे। ऋषि विश्रवा ने ही यहांं अष्टभुजी शिवलिंग स्थापित किया था। इसके बाद उनके घर रावण ने जन्म लिया था। रावण ने भी अष्टभुजी शिवलिंग की पूजा कर भगवान शिव से बुद्धिमान और पराक्रमी होने का वरदान प्राप्त किया था। ग्रामीणों का कहना है कि अष्टभुजी शिवलिंग की गहराई आज तक कोई नहीं जान पाया है। यहां खुदाई के बाद भी शिवलिंग का कोई छोर नहीं मिला था। उन्होंने बताया कि अब तक हुई खुदाई के दौरान यहां अन्य 25 शिवलिंग निकलेे हैं।
रावण को पापी कहने पर ग्रामीण दुखी

ग्रामीणों का कहना है कि हमें इस बात का दुख है कि रावण को पापी कहकर पुकारा जाता है। जबकि रावण परम तेजस्वी, बुद्धिमान, प्रकांड पंडित और क्षत्रिय गुणों वाला था। रावण हमारे लिए आदरणीय थे। उन्होंने बताया कि विजयदशमी के अलावा अन्य सामान्य दिनों में भी शिवभक्त यहां पूजा के लिए पहुंचते हैं। उन्होंने बताया कि ऐसी मान्यता है कि जो भी लोग यहां कुछ मांगते हैं, उनकी मन्नत जरूर पूरी होती है।
इसलिए नहीं होता रावण के पुतले का दहन

बिसरख मंदिर के पुजारी ने बताया कि यहां न तो रामलीला का आयोजन होता है और न ही दशहरे के दिन रावण का दहन किया जाता है। उन्होंने बताया कि करीब 70 वर्ष पहले यहां रामलीला का आयोजन किया गया था। बताते हैं कि आयोजन के दौरान एक पात्र की मौत हो गई थी और रामलीला अधूरी रह गई। उसके बाद से कभी यहां रामलीला नहीं हुई है। पुजारी का कहना है कि लोगों का मानना है कि रामलीला करने या रावण का पुतला दहन करने से गांव पर विपदा आ सकती है।
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