नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गुरुग्राम और गाजियाबाद में सुपरटेक की कई परियोजनाएं अटकी हुई हैं। इन कंपनियों में निवेश करने वाले बायर्स ने अपना आशियाना बनाने के लिए अपनी जिंदगी की गाढ़ी पूंजी लगाई है। उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा है कि कंपनी को दिवालिया घोषित करने के बाद क्या करें और कैसे अपनी जमा पूंजी को सुरक्षित करें। अगर कोई बिल्डर दिवालिया हो जाता है तो उससे जुड़े हुए बायर्स के पास क्या विकल्प हैं? आइए जानते हैं।
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Supertech bankrupt : सुपरटेक को दिवालिया घोषित होने से लगा बड़ा झटका, फैसले के खिलाफ अपील की तैयारी रकम वापसी की कर सकते हैं मांग प्रॉपर्टी के जानकार बताते हैं कि दिवालियापन कानून यूं तो यह कानून लेनदार और देनदार के बीच की समस्याओं को हल करने का एक प्रयास है, लेकिन यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि इस कानून से छोटे निवेशक, छोटे सप्लायर, छोटे जमाकर्ता एवं इस तरह के अन्य लोगों के अधिकारों को सुरक्षा मिलेगी, जो किसी भी बड़ी कंपनी के कार्य से प्रभावित होता है। कंपनी के दिवालिया होने पर या प्रोजेक्ट पूरा न होने पर रकम वापसी की मांग की जा सकती है।
अथॉरिटी की जिम्मेदारी जैसे सुपरटेक के करीब 25 हजार घर खरीदार अपने घर का कब्जा मिलने का इंतजार कर रहे हैं। ग्राहक अपना क्लेम लेने के लिए दावा फॉर्म भर सकते हैं। इसके लिए जितनी राशि बिल्डर को दी गई है, वह डिटेल भरें। कंपनी अगर दिवालिया हुई और प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ तो रकम वापसी की मांग की जा सकती है। हालांकि, यह कंपनी की रीस्ट्रक्चरिंग पूरी होने तक संभव नहीं है। पैसों की रिकवरी की प्रक्रिया रिवाइवल प्लान फेल होने पर ही हो सकती है। खरीदार अथॉरिटी पर रिकवरी के लिए दबाव बना सकते हैं या ग्राहक घर बनवाने की मांग भी रख सकते हैं। घर खरीदारों को इंसाफ मिले, यह संबंधित अथॉरिटी की जिम्मेदारी है।
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Logix bankrupt : सुपरटेक के बाद अब लॉजिक्स बिल्डर दिवालिया घोषित, नोएडा अथॉरिटी का 500 करोड़ बकाया ग्राहकों को घबराने की कोई जरूरत नहीं पीयूष सिंह कहते हैं कि इस मामले में ग्राहकों को घबराने की कोई जरूरत नहीं है। आईआरपी की तरफ से क्लेम मांगे जाएंगे, जिसे आपको 12 दिनों के अंदर सबमिट करना होगा। यह सुनिश्चित करेगा कि वह सभी लोग क्रेडिटर्स की कमेटी में शामिल किए जाएं और जब सुपरटेक के प्रोजेक्ट्स पर कोई फैसला किया जाएगा तो उन्हें वोटिंग का अधिकार भी होगा। किसी कंपनी के दिवालिया होने का मतलब उसकी बर्बादी नहीं है। दिवालिएपन के लिए आवेदन करते ही सरकार उस कंपनी में एक अधिकारी बिठा देती है, जो उसके कामकाज की निगरानी करता है और उसे समय से पूरा कराने की कोशिश करता है। सुपरटेक के मामले में एनसीएलटी ने हितेश गोयल को दिवाला समाधान पेशेवर नियुक्त किया है।